जहां मलिहाबादी दशहरी को पहले ही केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH) द्वारा जीआई (GI Tag) रजिस्ट्रेशन में सफलता मिली, वहीं संस्थान अब आम की कुछ और किस्मों को जीआई टैग दिलवाने की कोशिश में लगा हुआ है. संस्थान, मंडी परिषद की मदद से उत्तर प्रदेश की विशेष धरोहर गौरजीत, बनारसी लंगड़ा और चौसा को भी यह जीआई मान्यता दिलाने के लिए आगे बढ़ रहा है.
यूं तो इन यूपी के आम की किस्मों का कोई मुकाबला नहीं लेकिन जीआई रजिस्ट्रेशन के बाद देश और विदेश में इनका अच्छा मार्केट बनाने में आसानी होगी. इससे न केवल किस्मों को एक खास पहचान मिलेगी बल्कि आम उत्पादकों को भी अच्छा मुनाफा होगा. आम किसानों और बागवानों को अच्छी कीमत दिलाने के लिए भविष्य में यह रजिस्ट्रेशन सहायक होगा. विशेष भौगोलिक पहचान (geographical indication) मिलने से अन्य क्षेत्रों के उत्पादक नाम का अनिधिकृत उपयोग कर अपने फलों को नहीं बेच पाएंगे.
भारतीय आम की 9 किस्मों को मिल चुका है जीआई रजिस्ट्रेशन
आपको बता दें कि अभी तक देश में आम की कई किस्मों को जीआई रजिस्ट्रेशन मिल चुका है. मलिहाबाद, माल और काकोरी के दशहरी आम के साथ 9 आम की किस्मों का रजिस्ट्रेशन है. इसमें रत्नागिरी का अल्फांसो, गिर (गुजरात) केसर, मराठवाड़ा का केसर, आंध्र प्रदेश का बंगनापल्ली, भागलपुर का जरदालु, कर्नाटक के शिमोगा का अप्पीमिडी, मालदा (बंगाल) का हिमसागर, लक्ष्मण भोग और फजली शामिल हैं. यूपी के आमों की विविधता, गुणवत्ता एवं उत्पादन को देखते हुए केवल दशहरी को रजिस्ट्रेशन प्राप्त होना काफी नहीं है और इसी वजह से इन नई तीन किस्मों को आगे ले आया जा रहा है. पश्चिम बंगाल के आम की 3 किस्मों को भी रजिस्ट्रेशन प्राप्त हो चुका है.
जीआई टैग इसलिए है जरूरी...
जीआई रजिस्ट्रेशन प्राप्त आमों को बेचने के लिए विक्रेता धांधली भी करते हैं और मुनाफा मूल क्षेत्रों के उत्पादक को न मिलकर इन्हें ही मिलता है. ऐसे ही कर्नाटक या तमिलनाडु के अल्फांसो आम को रत्नागिरी अल्फांसो का नामदेना आसान है. कर्नाटक के अल्फांसो विक्रेता, रत्नागिरी अल्फांसो के नाम का फायदा उठाकर काफी अच्छा मुनाफा कमा ले जाते हैं. मलिहाबाद दशहरी के नाम से हरियाणा, हिमाचल, मध्य प्रदेश और कई अन्य प्रदेशों की दशहरी भी बेची जाती है. ऐसे में जीआई टैग के इस तरह के गलत इस्तेमाल को रोकने के साथ आवश्यक प्रमाणीकरण के आधार पर ही जीआई उपयोग करने की अनुमति देने की बात भी संस्थान द्वारा कही गयी.
आम बागवानों के लिए भी फायदेमंद
आपको बता दें कि इस जीआई सर्टिफिकेशन के बाद किसानों को उत्पाद की मार्केटिंग के लिए कम जूझना पड़ेगा. बाज़ार मे यह प्रमाणित करना कि यह जी आई सर्टिफाइड प्रोडक्ट है, उनके लिए काफी होगा. यह एक तरह से क्वॉलिटी का मानक भी माना जा सकता है. जीआई टैग वाले फलों को ई-मार्केटिंग में वरीयता प्राप्त हो सकती है. एफपीओ एवं प्रोड्यूसर्स ऑर्गेनाइजेशंस बनाने और उन्हें सफलता दिलाने के लिए यह आधार के रूप में कारगर साबित हो सकता है.
व्यापारियों को भी मिलेगी मदद
प्रमाणित क्षेत्रों से उत्पादित आम का व्यापार करने में व्यापारियों को भी काफी मदद मिलेगी. प्रमाणीकरण के आधार पर वे फलों को प्रीमियम दाम पर बेच सकेंगे और विदेशों में भी आसानी से अपनी जगह बना सकेंगे.
निर्यात में होगा सहायक
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीआई का विनियमन विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं पर समझौते के तहत किया जाता है. विदेशों में जी आई टैग का खास महत्व है. इससे ग्राहक उत्पाद को खरीदने में झिझक नहीं रखते क्योंकि यह एक अंतर्राष्ट्रीय मानक के आधार पर ही स्वीकृत होता है.
क्या है GI टैग?
GI टैग एक तरह की पहचान है जो उस वस्तु अथवा उत्पाद को दिया जाता है जो खास क्षेत्र का प्रतिनिधत्व करता है या यूँ कह लें कि किसी खास स्थान पर ही पाया जाता है. यानी वह उसका मूल स्थान होता है. भारत में, भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 सितंबर 2003 से प्रभावी हुआ है. अधिनियम में जीआई को भौगोलिक संकेतक के रूप में परिभाषित किया गया है. GI का मतलब है कि कोई भी व्यक्ति, संस्था या सरकार अधिकृत उपयोगकर्ता के अलावा इस उत्पाद के मशहूर नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकती. अभी तक 370 वस्तुओं का जीआई उत्पाद के रूप में कृषि, हस्तशिल्प, निर्मित, खाद्य सामग्री और प्राकृतिक वस्तुओं के तहत रजिस्ट्रेशन किया गया है.
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