किसानों के जीवन में हमेशा ही उथल-पुथल मचा रहता है, कुछ ऐसी ही खबर पूर्वांचल से भी आ रही है. पूर्वांचल में धान की फसल (Paddy Crops) को किसान एमएसपी (MSP) की कीमतों से नीचे बेच रहे हैं. जी हां, यूपी के किसान इसको 1100 रुपए प्रति क्विंटल (1100 rupees per quintal) बेचने के लिए मजबूर हो गये हैं.
जहां इस समय धान की कटाई जारी है वहीं किसानों को आगे आने वाले समय के लिए पैसों की सख्त जरुरत है. बता दें कि अब रबी सीजन की क्रॉप्स लगाने के लिए किसानों को अगर अभी मुनाफा नहीं मिल पाता है तो आगे उनके लिए समस्या खड़ी हो सकती है.
1940 रुपये है धान का एमएसपी (The MSP of paddy is Rs. 1940)
केंद्र सरकार ने न्यून्तम समर्थन मूल्य 1940 रुपये रखा हुआ है जबकि यहां के किसान इसको 1100-1200 रुपये तक में बेचने के लिए मजबूर हैं. इसी बीच व्यापारी से लेकर बिचौलिये तक किसानों का फायदा उठा रहें है. यदि यह सब ठीक नहीं होता, तो आगे भी किसान क़ानूनी गारंटी की मांग जारी रख सकते हैं.
एमएसपी क्यों है जरुरी? (Why is MSP necessary?)
ऐसे में राज्य सरकार के पोर्टल पर जिन किसानों ने रजिस्टर किया था वो एमएसपी रेट पर ही धान बेच रहे हैं, लेकिन जो व्यापारी हैं, वो उसे 1100 रुपये तक ही ले रहे हैं. जिन किसानों ने राज्य सरकार के पोर्टल पर रजिस्टर नहीं किया है उन्हें इस दुविधा का सामना करना पड़ रहा है और कम रेट में बेचना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें अब सरसों, गेंहू और सब्जियों की बुवाई के लिए पैसा चाहिए. साथ ही जिन किसानों की धान की फसल भीगी हुई है उन्हें भी सरकार लेने से मना कर रही हैं.
किसानों को एमएसपी रेट पर यदि उनकी फसल का भाव नहीं मिलता है तो ये उनके साथ एक धोखा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, किसान सिर्फ इतना चाहता है कि उसे उसकी उपज का सही दाम मिले, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. इसलिए वो एमएसपी की कानूनी गारंटी चाहते हैं. ताकि भुगतान न करने वालों पर कानूनी कार्रवाई हो.
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किसानों का हक़ (farmers' rights)
अगर कुछ लोग सस्ता अनाज लेकर महंगा बेच देते हैं तो ठीक है, लेकिन अगर किसानों को उनकी कीमत मिल जाए तो यह गलत क्यों है. किसानों के बिना देश का विकास सोच पाना भी गलत है क्योंकि जब तक किसानों को उनकी मेहनत का पूरा मूल्य नहीं मिलेगा, तब तक उनका विकास होना असंभव है.
एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट दिवेन्द्र शर्मा के मुताबिक, "पहले कहा जाता था कि सातवें वेतन आयोग के तहत खर्च की जाने वाली राशि अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर डोज है. जबकि सिर्फ 4 फीसदी लोग ही इसका फायदा उठा रहे हैं.
जब 4 फीसदी लोगों के घरों में ज्यादा पैसा आना अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर डोज हो सकता है, तो 14 करोड़ किसानों के घरों में ज्यादा पैसा जाएगा तो यह अर्थव्यवस्था के लिए रॉकेट डोज साबित होगा."
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