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दिल्ली चलो मार्च' को लेकर किसान संगठनों में मतभेद, मार्च में शामिल होने से परहेज किया, यहां पढ़ें पूरी रिपोर्ट

पंजाब में सबसे बड़े किसान संघ बीकेयू (एकता उग्राहां) ने प्रदर्शनकारी किसानों को अपना समर्थन देने की घोषणा की है, लेकिन मार्च में शामिल होने से परहेज किया है.

KJ Staff
किसान आंदोलन, सांकेतिक तस्वीर, फोटो साभार: फ्रिपिक
किसान आंदोलन, सांकेतिक तस्वीर, फोटो साभार: फ्रिपिक

उद्योगपति, सड़क किनारे ढाबे के मालिक और शंभू तथा खनौरी सीमाओं पर डेरा डाले किसान पिछले पांच महीनों से अवरुद्ध राजमार्गों को खोलने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, वहीं अधिकांश किसान यूनियनें 'दिल्ली चलो मार्च' में शामिल होने को लेकर बंटी हुई थीं, जो सड़कें साफ होने के बाद फिर से शुरू होने की संभावना है. इस मार्च की शुरुआत दो किसान यूनियनों ने की थी, जिनमें सरवन सिंह पंधेर के नेतृत्व वाली किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) और जगजीत सिंह दल्लेवाल की बीकेयू एकता सिद्धूपुर शामिल थीं.

बाद में कुछ अलग-अलग किसान यूनियनें भी उनके साथ शामिल हो गईं. हालांकि, बीकेयू (राजेवाल) और बीकेयू (एकता उग्राहां) जैसी बड़ी यूनियनों, संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम और एसकेएम-ऑल इंडिया) के सदस्यों ने खुद को मार्च से अलग कर लिया है.

वही पंजाब में सबसे बड़े किसान संघ बीकेयू (एकता उग्राहां) ने प्रदर्शनकारी किसानों को अपना समर्थन देने की घोषणा की है, लेकिन मार्च में शामिल होने से परहेज किया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रमुख किसान संघ बीकेयू राजेवाल के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने बुधवार को बताया कि वह किसानों द्वारा उठाई जा रही मांगों का समर्थन करते हैं, लेकिन 'दिल्ली चलो मार्च' में शामिल नहीं होंगे, जो हरियाणा पुलिस द्वारा कानून और व्यवस्था की समस्या का हवाला देते हुए क्रमशः शंभू और खनौरी में दिल्ली-अमृतसर (एनएच 44) और पटियाला-दिल्ली (एनएच -52) राजमार्गों को अवरुद्ध करने के बाद रोक दिया गया है.

राजेवाल ने एसकेएम के विघटन के पीछे साजिश का लगाया आरोप

बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि कुछ निहित स्वार्थी समूहों द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम और एसकेएम-ऑल इंडिया) को कमजोर करने की साजिश रची जा रही है. राजेवाल ने कहा, "इसका मतलब यह नहीं है कि अगर कुछ यूनियनें मार्च में शामिल नहीं हो रही हैं, तो किसान एकजुट नहीं हैं. लेकिन हमें अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए. दुर्भाग्य से, यह स्थिति नहीं होनी चाहिए थी. एसकेएम को शोर मचाकर तोड़ा गया", उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार किसानों के खिलाफ बल प्रयोग की कीमत चुकाएगी.

राजेवाल ने कहा, "हमें बेसहारा छोड़ दिया गया है. मैं कुछ नहीं कह सकता, लेकिन हमारी मांगें एक जैसी हैं. नुकसान बहुत बड़ा है, क्योंकि 400 किसान घायल हुए हैं. 45 किसान दम घुटने से मर गए, कुछ की आंखों की रोशनी चली गई और एक की मौत हो गई. ऐसा लगता है कि हम बहिष्कृत हैं और पंजाब देश का हिस्सा नहीं है."

किसान नेता का कहना है कि भजनलाल सरकार के बाद यह दूसरी बार है जब किसानों के साथ उनकी जायज मांगों को लेकर मारपीट की गई. राजेवाल ने कहा, "किसानों ने नहीं, बल्कि हरियाणा सरकार ने राजमार्गों को अवरुद्ध किया है. अगर हमने यातायात अवरुद्ध किया होता, तो हमारे खिलाफ राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 के तहत मामला दर्ज किया जाता, लेकिन दो प्रमुख राजमार्गों को अवरुद्ध करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है."

हरियाणा सरकार ने अर्धसैनिक बलों की तैनाती बढ़ाई

इस बीच, हरियाणा सरकार ने शंभू और खनौरी सीमा पर सीआरपीएफ की तैनाती 9 अगस्त तक बढ़ा दी है. राज्य सरकार ने सीआरपीएफ को 9 अगस्त तक शंभू और खनौरी सीमा पर तैनात रहने को कहा है. नौ कंपनियों वाले कम से कम 600 सीआरपीएफ जवान वर्तमान में अंबाला-अमृतसर राजमार्ग और दिल्ली-पटियाला राष्ट्रीय राजमार्ग पर शंभू और खनौरी सीमाओं के दोनों ओर तैनात हैं.

English Summary: Farmer unions were divided over the 'Dilli Chalo' march; the largest farmers' union avoided joining the march Published on: 01 August 2024, 01:07 PM IST

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