जुबां खामोश हैं...चेहरे पर शिकन है...दिल में शिकवा है...निगाहें नम हैं...आप समझ रहे हैं न.. हम किसकी बात कर रहे हैं? हम किसानों की बात कर रहे हैं. हम उस अन्नदाता की बात कर रहे हैं, जो महल में रहने वाले किसी सेठ से लेकर किसी झोपरपट्टी में रहने वाले गरीब तक का पेट भरते हैं. अगर यह अन्नदाता थम गए, तो यकीन मानिए पूरा देश थम जाएगा. वीरान हो जाएंगी वह गलियां जो अब तक लोगों की आमद से गुलजार नजर आ रही हैं. यह खिलखिलाते चेहरे...सियासी चहलकदमी करते यह सियासी सूरमा...सब के सब हमेशा-हमेशा के लिए अतीती इबारत बनकर किसी वीरान गली के कोने में दफन हो जाएंगे...लिहाजा, मुनासिब रहेगा ए-हुकूमत बिना इतराते हुए कुछ कदम ऐसे भी उठाएं, जो किसानों की राहत का सबब बने.
हमारी इस पूरी रिपोर्ट को पढ़ने के बाद आप भी कहेंगे कि जनाब आपका यह शिकवा निहायती वाजिब है. वाजिब है, आपके दिल से दर्द का बहता यह दरिया, जो मुसलसल अन्नदाताओं के लिए बह रहा है. वो इसलिए, क्योंकि बस कहने भर के लिए इस लॉकडाउन के दौरान कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता की फेहरिस्त में रखा गया है. वास्तविकता से तो इसका कोई नाता है ही नहीं. किसानों के काम में आने वाले सारे बाजार बंद हैं. सभी दुकानों पर ताला लग चुका है. न ही किसान भाइयों को बीज नसीब हो रहा है और न ही खेती के इस्तेमाल में आने वाली कोई सामाग्री. ऐसे में भला किसान भाई खेती-बाड़ी करें तो करें कैसे? इस सवाल का मुनासिब जवाब, तो वही दे पाएंगे, जो यह कहते नहीं थक रहे हैं कि हमने किसानों को प्राथमिकता की सूची में शीर्ष पर रखा और खेतीबाड़ी में इस्तेमाल होने वाले सारी सामाग्री सुलभता से बाजार में उपलब्ध है.
वहीं, कुछ बड़े किसानों को अपना काम करवाने के लिए मजदूरों तक नसीब नहीं हो रहे हैं, जो लोग कल तक मजदूरों को बेआबरू करते नहीं थकते थे, वही लोग आज इन मजदूरों को देखने के लिए तरस चुके हैं. किसान भाई कह रहे हैं कि मजदूरों का तो आकाल पड़ रहा है. कोरोना काल में अधिकांश मजदूर पलायन कर चुके हैं. वहीं, ग्रामीण इलाकों में संक्रमण के मामले में इजाफा हुआ है, जिससे भी काफी संख्या में मजदूरों की संख्या में कमी आई है.
इन सब स्थितियों का किसानों की फसलों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. एक तो पहले से ही किसान बंद पड़ चुकी मंडियों व यास तूफान के कहर से परेशान हैं और ऊपर से मजूदरों के अभाव ने उनकी समस्याओं को और बढ़ा दिया है. कई सूबों के किसानों की फसल यास तूफान के कहर का शिकार होकर बर्बाद हो चुकी है. बिहार के किसानों ने तो सरकार से बकायदा 50 हजार रूपए के मुआवजे की भी मांग की है.
अब ऐसे में आगे चलकर सरकार किसानों के हित में क्या कुछ कदम उठाती है. यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन तब तक के लिए आप कृषि क्षेत्र से जुड़ी हर बड़ी खबर से रूबरू होने के लिए पढ़ते रहिए...कृषि जागरण !
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