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बंगाल में कृत्रिम जलाशयों में मछली पालन का प्रयास तेज

पश्चिम बंगाल में नदी-नाले, तालाब और पोखर की भरमार है. यहां का जलवायु भी मछली पालन के लिए उत्तम माना जाता है. बंगाल मछली उत्पादन में अग्रणी राज्यों में गिना जाता है. लेकिन मछली बंगालियों का प्रिय भोजने होने के कारण राज्य में इसकी खपत ज्यादा है. बाजार में हमेशा इसकी मांग बनी रहती है.

अनवर हुसैन
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पश्चिम बंगाल में नदी-नाले, तालाब और पोखर की भरमार है. यहां का जलवायु भी मछली पालन के लिए उत्तम माना जाता है. बंगाल मछली उत्पादन में अग्रणी राज्यों में गिना जाता है. लेकिन मछली बंगालियों का प्रिय भोजने होने के कारण राज्य में इसकी खपत ज्यादा है. बाजार में हमेशा इसकी मांग बनी रहती है. अधिक मात्रा में मछली उत्पादन करने के बावजूद मांग की तुलना में राज्य में मछली की कमी हो जाती है. उच्च गुणवत्ता वाली कुछ बड़ी मछलियां आंध्र प्रदेश तथा अन्य राज्यों से मंगा कर बंगाल में मछली की बढ़ती मांग को पूरा किया जाता है. राज्य सरकार ने मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए कृतिम जलाशयों में उत्पादन बढ़ाने का प्रयास शुरू किया है. कृतिम जलाशयों में मछली पालन विधि नई पद्धति है. इसे अंग्रेजी में बायोफ्रेक पद्धति के नाम से जाता है.

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक बायफ्रेक पद्धति से कृतिम जलाशयों में मछली पालन उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां की भूमि पथरीली और सख्त है. जल के अभाव वाले क्षेत्रों में इस पद्धति से मछली पालन किया जाता है. पहाड़ी और पथरीली क्षेत्रों में बायोफ्रेक पद्धति से कृतिम जलाशयों में मछली पालन पर्वारवण के अनुकूल है. तालाब की जगह पहाड़ी इलाकों में प्लास्टिक के टब में कृतिम जलाशय बनाया जाता है. पानी को शुद्ध रखने के लिए कुछ जैविक सामग्री इस्तेमाल की जाती है. प्लास्टिक के टब में जब मछली पालन होता है तो पानी प्रदूषण रहित हो जाता है और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है. कृतिम जलाशय में जो चारा यानी खाद्य सामग्री इस्तेमाल की जाती है उसे मछलियां सीधे और सहज रूप में ग्रहण करती है. इसलिए कम समय में ही मछलियां बाजार में ले जाने लायक तैयार हो जाती है. कृतिम जलाशय में कम समय में मछली पालन कर किसान अच्छी खासी आय कर सकते हैं.

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राज्य के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कहा है कि राज्य में मछली का उत्पादन बढ़ाने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में भी कृतिम जलाशय तैयार कर मत्स्य पालन का बढ़ावा देने का प्रयास शुरू किया गया है. पुरूलिया जिले के अयोध्या पहाड़ी इलाके में बायफ्रेक पद्धति से मछली पालन शुरूआत की जा रही है. पहाड़ी क्षेत्रों में तालाबों और जलाशयों का अभाव रहता है. लेकिन इलाके के लोगों में मछली की जरूरत हमेशा बनी रहती है. स्थानीय बाजारों में मछली की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही कृतिम जलाशयों में बायोफ्रेक पद्धति से मछली पालन की शुरूआत की गई है. पुरूलिया के पहाड़ी इलाके में यह प्रयोग सफल होने के बाद राज्य में 11 परियोजनाओं पर कृतिम जलाशय में मछली पालन किया जाएगा. मत्स्य पालन के इच्छुक किसानों को सरकार हर संभव मदद करेगी.

पुरूलिया के संपूर्ण क्षेत्र विकास परिषद के सचिव सौमजित दास का कहना है कि बायोफ्रेक पद्धति से कृतिम जलाशय में मछली पालन विज्ञान सम्मत है. पर्यावारण के अनुकूल इस पद्धति से मागुर, कवई, सिंघी, झिंगा, पावदा और टेंगरा आदि मछलियों का उत्पादन होगा. सिंघी, मांगुर और कवई उच्च पोषण युक्त प्रजाति की मछलियां हैं और बाजार में अधिक दाम पर बिक जाती है. इसलिए कृतिम जलाशय में मछली पालन करने वाले किसानों को इससे ज्यादा आर्थिक लाभ होगा.

English Summary: Efforts to raise fisheries in artificial reservoirs in Bengal intensified Published on: 21 July 2020, 04:12 PM IST

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