कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि तट से दूर गहरे समुद्र में मौजूदा समुद्री संसाधनों के बेहतर उपयोग और लाखों मछुआरों की आजीविका को सुगम बनाने के लिए जरूरी है कि केन्द्र और तटीय राज्य सरकारें मिलकर राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति पर पूरी गंभीरता के साथ अमल करें। कृषि मंत्री ने यह बात आज कृषि मंत्रालय में तटीय राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के फिशरीज मंत्रियों के साथ ‘राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति – 2016” पर हुई उच्च स्तरीय बैठक के बाद कही।
कृषि मंत्री ने कहा कि देश मे समुद्री मात्स्यिकी मे मौजूदा असंतुलन दूर करने में, इसका सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने में तथा इससे जुड़े लाखों मछुवारों की आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति में प्रस्तावित ‘राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति 2016 ’ एक अहम मार्गदर्शक की भूमिका निभायेगा। उन्होंने कहा कि देश में निकटवर्ती समुद्री संसाधनों का पिछले दो तीन दशकों में अधिक दोहन हुआ है, यह सिलसिला अगर इसी प्रकार से जारी रहा तो आने वाले कुछ वर्षों मे समुद्री आजीविका पर संकट आ सकता है। उन्होंने कहा कि ईईजेड के गहरे समुद्री संसाधन अभी भी हमारी पहुंच से बाहर हैं। इस संकट से निकलने के लिए जरूरी है कि समुद्री मत्स्य संसाधनों के सतत उत्पादन को बनाये रखा जाए।
कृषि मंत्री ने बैठक में कहा कि प्रस्तावित ‘राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति’ के मसौदे मे वर्तमान मे गहरे-समुद्र मे फिशिंग करने सम्बंधी दिशा-निर्देशो के अनुसार जारी किये जाने वाले Letter of Permission (LOP) regime को समाप्त करने तथा उसके स्थान पर पारम्परिक मछुवारों को गहरे-समुद्र में फिशिंग कीट्रेनिंग और कौशल विकास द्वारा सशक्तिकरण करने सम्बंधी सिफारिश की गयी है। उन्होंने कहा कि पारम्परिक मछुवारो को गहरे-समुद्र मे फिशिंग की ट्रेनिंग देने की दिशा मे पहले ही प्रयास शुरू कर दिये गये हैं, तथा पारम्परिक मछुवारों द्वारा गहरे-समुद्र मे फिशिंग को बढावा देने के लिये विशेष योजना शुरू करने के प्रयास भी किये जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि प्रस्तावित ‘राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति’ के मसौदे मे यह प्रस्ताव भी है कि सरकार/मंत्रालय द्वारा इस ‘नीति’ के मसौदे की औपचारिक स्वीकृति के बाद मसौदे मे निहित प्रत्येक सिफारिश पर कार्रवाई के लिये, आगामी दस वर्षो के लिये एक विस्तृत ‘रोड-मैप’ बनाया जायेगा। इस ‘रोड-मैप’ मे विभिन्न सिफारिशो पर कार्रवाई के लिये न केवल जिम्मेदार एजेंसियों को चिन्हित किया जायेगा, बल्कि कार्यान्वयन की समय-अवधि भी तय की जायेगी।
कृषि मत्री ने कहा कि इसके अलावा नीति के कार्यान्वयन के लिये जरूरी धन के सम्भावित स्रोत निर्दिष्ट करने के सुझाव भी ‘रोड-मैप’ मे दिये जायेंगे। कार्यान्वयन योजना की समय बद्धता और प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये 'निगरानी और मूल्यांकन' की रूपरेखा भी बनाई जायेगी।
कृषि मंत्री ने बताया कि ‘मात्स्यिकी’ मूल रूप से राज्य-सरकार का विषय है। अंतःस्थलीय मात्स्यिकी (Inland Fisheries) तथा 12 समुद्री-मील तक का क्षेत्र पूर्णरूप से राज्यों के ही अधीन आता है जबकि 12 समुद्री-मील से परे, 200 समुद्री-मील तक का ‘ई.ई.जेड’ का क्षेत्र ही केंद्र सरकार के अंतर्गत आता है।उन्होंने कहा कि ‘समुद्री-मात्स्यिकी’ मे 0 से 200 समुद्री-मील तक के सम्पूर्ण क्षेत्र के विकास को दिशा देने के मकसद से, वर्तमान में लागू ‘व्यापक समुद्री मात्स्यिकी नीति’ को वर्ष 2004 में जारी किया गया था। इस नीति के तहत तटवर्ती राज्यों और केंद्र, दोनों को मिल कर, देश मे ‘समुद्री-मात्स्यिकी’ के विकास के प्रयास करने थे। चूंकि इस नीति को जारी किये 10 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था, इसलिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समुद्री मात्स्यिकी सेक्टर के बदलते परिप्रेक्ष्य में देश की ‘समुद्री मात्स्यिकी नीति’ की समीक्षा करना आवश्यक था।
इस बैठक में महाराष्ट्र के फीशरीज मंत्री श्री जंकार महादेव जगन्नाथ तथा तमिलनाडु के फीशरीज मंत्री श्री डी. जयकुमार के साथ गोवा, केरल, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के वरिष्ठ अधिकारियों एवं समुद्री मात्स्यिकी नीति के मसौदा समिति के अध्यक्ष डा. एस. अयप्पन ने भी हिस्सा लिया।बैठक में राज्यों के प्रतिनिधियों ने मौजूदा एलओपी स्कीम समाप्त करने का आग्रह किया। साथ ही, तटीय क्षेत्रों में एक समान फीशिंग बैन लगाने का सुझाव दिया। सभी राज्यों ने प्रस्तावित समुद्री मात्स्यिकी नीति का स्वागत किया।
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