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शासकीय गुंडाधुर महाविद्यालय, कोंडागाँव के समाजशास्त्र विभाग द्वारा मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म का शैक्षणिक भ्रमण
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विद्यार्थियों की प्रेरक मुलाकात विश्व विख्यात कृषक डॉ. राजाराम त्रिपाठी से
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माँ दंतेश्वरी हर्बल फार्म रासायनिक मुक्त, पर्यावरण अनुकूल, उच्च लाभदायक खेती का राष्ट्रीय मॉडल
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औषधीय पौधों की खेती, प्राकृतिक खाद निर्माण, और शून्य रासायनिक उपयोग की तकनीक, नेचुरल ग्रीनहाउस, काली मिर्च की चार गुना ज्यादा उत्पादन देने वाली नई वैरायटी एमडीबीपी-16 के बारे में विस्तार से जानकारी लिया
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सात बार देश का सर्वश्रेष्ठ किसान, बीएससी,एलएलबी, छः अलग अलग विषयों में एम तथा मल्टीपल डाक्टरेट करने के बावजूद आज भी अपने को एक स्टूडेंट बताया डॉ राजाराम त्रिपाठी ने
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राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य, CHAMF के चेयरमैन, अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक व मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के संस्थापक हैं डॉ राजाराम त्रिपाठी
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बस्तर से पूरी दुनिया तक ,प्रकृति संरक्षण और जैविक क्रांति के अग्रदूत हैं डॉ राजाराम त्रिपाठी
शासकीय गुंडाधुर स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कोंडागाँव के समाजशास्त्र विभाग द्वारा शुक्रवार एक प्रेरक शैक्षणिक भ्रमण का आयोजन किया गया. प्राचार्य डॉ. सरला आत्राम के निर्देशन, विभागाध्यक्ष डॉ. किरण नुरूटी के संरक्षण तथा अतिथि व्याख्याता भानु प्रताप साहू के संचालन में समाजशास्त्र विभाग के विद्यार्थियों ने विश्व विख्यात कृषक एवं पर्यावरण योद्धा डॉ. राजाराम त्रिपाठी से भेंट कर जैविक खेती की बारीकियों को समझा.
विद्यार्थियों ने माँ दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर में प्रत्यक्ष रूप से देखा कि किस प्रकार मिट्टी, पौधों और परंपरा का गहन सामंजस्य आधुनिक कृषि की दिशा बदल सकता है.
डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि उनके फार्म में किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि खेत में ही निर्मित जैविक खाद एवं वर्मी-कम्पोस्ट के माध्यम से धरती की उर्वरता को बनाए रखा जाता है. उन्होंने कहा, “प्रकृति स्वयं सबसे बड़ी प्रयोगशाला है; बस हमें उसे समझने की विनम्रता चाहिए.”
यहाँ विद्यार्थियों को दुर्लभ और विलुप्तप्राय औषधीय पौधों जैसे गिलोय, स्टीविया, काली मिर्च, तथा अनेक पारंपरिक जड़ी-बूटियों की खेती की प्रक्रिया को भी समझाया गया. श्री अनुराग कुमार ने पूरे फार्म का भ्रमण कराते हुए वैज्ञानिक पद्धतियों और प्राकृतिक संरक्षण तकनीकों की जानकारी दी.
एम.ए. प्रथम सेमेस्टर की छात्रा आरती ने जब दवाई छिड़काव की प्रक्रिया के विषय में प्रश्न किया, तो डॉ. त्रिपाठी ने समझाया, “हमारे खेतों में पौधे एक-दूसरे के लिए औषधि हैं. यहाँ कोई बाहरी दवाई की आवश्यकता नहीं पड़ती.”
कार्यक्रम में जसमती नेताम और शंकरदास का विशेष सहयोग रहा. विद्यार्थियों दुर्गा, रीता, गुपेन्द्री, मेषोंराम, शीतल, दुधेश्वरी आदि ने कृषि के व्यावसायीकरण, किसान संकट, और इस प्रकार की खेती की प्रेरणा के विषय में उत्सुकता से प्रश्न किए, जिनका उत्तर डॉ. त्रिपाठी ने अत्यंत सहजता से देते हुए कहा, “खेती को यदि हम व्यापार नहीं, संस्कार मानें,,, तो यही धरती हमारी सबसे बड़ी गुरु है.”

माँ दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर: प्राकृतिक खेती का जीवंत विश्वविद्यालय
डॉ. राजाराम त्रिपाठी द्वारा स्थापित यह केंद्र रासायनिक मुक्त, शून्य-कार्बन उत्सर्जन खेती का आदर्श मॉडल है. यहाँ विकसित “नेचुरल ग्रीनहाउस”, जो प्लास्टिक रहित वृक्षों से निर्मित है, मात्र ₹2 लाख प्रति एकड़ लागत में तैयार किया जा सकता है, जो पारंपरिक पॉलीहाउस से बीस गुना सस्ता और अधिक प्रभावी है.
यहाँ विकसित विशेष काली मिर्च की उच्च उपज देने वाली प्रजाति भारत में सबसे अधिक उत्पादकता देने वाली मानी जाती है.
डॉ. राजाराम त्रिपाठी : धरती के प्रति समर्पण का प्रतीक
बस्तर के ककनार ग्राम से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर जैविक आंदोलन के अग्रदूत बने डॉ. त्रिपाठी न केवल नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य हैं तथा सेंटरल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (CHAMF) के चेयरमैन हैं, बल्कि अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं. आप मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के संस्थापक भी हैं तथा का ए राष्ट्रीय कमेटी तथा संगठनों के सदस्य तथा महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं.
“ग्लोबल ग्रीन वारियर” और “अर्थ हीरो अवॉर्ड” जैसे सम्मान पाने वाले डॉ. त्रिपाठी ने हजारों आदिवासी परिवारों को जैविक खेती और औषधीय पादप उत्पादन से आत्मनिर्भर बनाया है. प्राचार्या सरला आत्राम ने कहा, “डॉ त्रिपाठी की प्रेरणादायक यात्रा यह सिखाती है कि सच्ची हरियाली खेतों में नहीं, विचारों में होती है.”
प्राध्यापक डॉ किरन नुरेटी ने मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म को कोंडागांव, बस्तर छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश का गौरव बताया.
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