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पढ़ाई के लिए नहीं था मोबाइल, तो गली की हर दीवार बन गई ब्लैक बोर्ड

कोरोना संकट के आते ही स्कूलों में ताले लगने शुरू हो गए और स्मार्ट फोन बच्चों तक पहुंच गया. मोबाइल की स्क्रीन ही बच्चों की नई पाठशाला हो गई. निसंदेह लॉकडाउन में लाखों बच्चों को पढ़ाई के लिए मोबाइल फोन का सहारा मिला, लेकिन ऐसा सभी के साथ नहीं था. देश में कई बच्चे मोबाइल फोन की पहुंच से दूर थे.

सिप्पू कुमार
हर बच्चे के पास है अपना ब्लैक बोर्ड
हर बच्चे के पास है अपना ब्लैक बोर्ड

कोरोना संकट के आते ही स्कूलों में ताले लगने शुरू हो गए और स्मार्ट फोन बच्चों तक पहुंच गया. मोबाइल की स्क्रीन ही बच्चों की नई पाठशाला हो गई. निसंदेह लॉकडाउन में लाखों बच्चों को पढ़ाई के लिए मोबाइल फोन का सहारा मिला, लेकिन ऐसा सभी के साथ नहीं था. देश में कई बच्चे मोबाइल फोन की पहुंच से दूर थे.

झारखंड के दुमका की अनोखी कहानी

खराब नेटवर्क की समस्या से परेशान क्षेत्रों में ई-शिक्षा का पहुंचना असंभव था, इसके साथ ही हजारों बच्चे ऐसे थे, जिनके पास मोबाइल तक नहीं था. इस तरह की कई परेशानियां देश के अलग-अलग भागों से शिक्षा विभाग को सुनने को मिली. लेकिन झारखंड के दुमका जिले से सिर्फ परेशानी नहीं बल्कि उसका हल भी सुनाई दिया. चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं.

इस तरह हो रही है पढ़ाई

जिले के जरमुंडी प्रखंड उत्क्रमित मध्य विद्यालय में लॉकडाउन के दौरान ‘शिक्षा आपके द्वार’ कार्यक्रम को शुरू किया गया, जो आज भी चल रहा है. इस कार्यक्रम के तहत जिन बच्चों के पास मोबाइल और अन्य तकनीकी संसाधन नहीं थे, उनके लिए पढ़ाई-लिखाई के खास इंतेजाम किए गए. दरअसल यहां अभिभावकों के सहयोग से गली- घरों की दीवारों पर काला रंग कर उन्हें ब्लैक बोर्ड में बदल दिया गया.

हर बच्चे के पास है अपना ब्लैक बोर्ड

आज इस प्रखंड में लगभग हर घर की दीवारों पर काला रंग है, जिस कारण हर छात्र के पास अपना खुद का ब्लैक बोर्ड है. अब जैसे ही कक्षा शुरू होती है, हर छात्र निर्धारित स्थान पर अपने-अपने ब्लैक बोर्ड के सामने बैठ जाते हैं. वो प्रश्नों के उत्तर ब्लैक बोर्ड पर लिखते हैं, जिसे बाद में शिक्षक जांचते हैं.

सोशल डिस्टेंसिंग का किया जा रहा पालन

इस कार्यक्रम से जहा एक तरफ प्रखंड के हर बच्चे को शिक्षा मिल रही है, वहीं कक्षाएं भी बिना किसी बाधा के चल रही है. सबसे अहम बात तो ये है कि एक ब्लैक बोर्ड दूसरे ब्लैक बोर्ड से बहुत दूर है, इस तरह यहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी किया जा रहा है. गांव के बच्चों को पढ़ाई में किसी तरह की दिक्कत न हो इस बात का ख्याल वहां के निवासी रखते हैं.

लोग करते हैं मदद

यहां लोग न सिर्फ अपने घरों की दीवारों द्वारा बच्चों की शिक्षा में सहयोग कर रहे हैं बल्कि उन्हें हर संभव मदद भी दे रहे हैं. प्रखंड के लोग आपस में चंदा मिलाकर बच्चों के लिए जरूरी सामान, जैसे- कॉपी, सैनिटाइजर, पैन और किताबें आदि भी खरीद रहे हैं.  

English Summary: each and every student have their own blackboard in this village know more about it Published on: 06 January 2021, 04:30 PM IST

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