कपास से बने हुए धागे को रंग कर कपड़ा बनाना अब बीते जमाने की तकनीक होने जा रही है। दरअसल कमला नेहरू नगर में स्थित नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल रिसर्च एसोसिएशन के वैज्ञानिकों ने रंगीन कपास के बीज से खेती कर उससे कपड़ा बनाने में सफलता भी हासिल कर ली है। रंगीन कपास के बीज को दिल्ली के पूसा संस्थान में तैयार हुआ। इसके अगले चरण निटरा में पूरे हुए। इसमें सबसे पहले हरे और भूरे रंग की कपास की खेती करने का कार्य किया गया। स्वस्थ फसल लहलहाने तक कामयाबी के बाद कपास से धागा बनाकर कपड़े को तैयार किया गया। अब उसी कपड़ें से पाजामा और बैग बनाए गए है।
जर्मनी में लगे प्रतिबंध से मिली प्रेरणा
जर्मनी में 1993 में रंगीन कपड़े में प्रयुक्त एजो डाइज (खतरनाक रासायनिक रंग) को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया था। यही से रंगीन कपास को उगाने की प्रेरणा मिली। पूसा संस्थान और निटरा के बीच सहमति बनी हुई है। इसके बाद साधारण बीज के जीन में रंग भरने का शोध किया गया। गौरतलब है कि पूसा संस्थान को एक दशक में बीज को तैयार करने में की सफलता प्राप्त हुई । फिर इसका बीज निटरा को दे दिया गया। तीन चरणों में खेती करने के बाद उत्तम फसल प्राप्त हुई। बाद में उसी कपास से धागा को बनाने में सफलता भी हासिल हुई है
निटरा ने कराए 15 पेटेंट
निटरा ने रंगीन कपास के 15 पेटेंट को प्राप्त करने के साथ ही 200 से अधिक रिसर्च परियोजनाओं को पूरा कर लिया है। इनके द्वारा बने कई उपकरण विभिन्न उद्योगों में इस्तेमाल हो रहे है। निटारा को इंडोनेशिया, थाइलैंड, कीनिया, इथोपिया, फिलीपींस, सूडान, बांग्लादेस, नेपाल आदि कई देशों से अंतराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त है। यहां की फिजीक, केमिकल पैरमीटर और इंवायरमेंट लैब नेशनल एक्रिडिएशन बोर्ड ऑफ लेबोरेटरीज से प्रमाणित है।
पानी की बचत के साथ, होगा रोगों से बचाव
निटरा के वैज्ञानिकों का कहना है कि एक किलो कपड़े को रंगने के लिए एक हजार लीटर पानी बर्बाद होता है। अब इस धागे को रासायनिक रंगों से रंगने की जरूरत नहीं पड़ेगी।रंगीन कपास से बने हुए कपड़े पूरी तरह मानव शरीर व पर्यावरण के अनुकूल होंगे।
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