गाजर घास किसानों को खेती में काफी नुकसान पहुंचाता है. किसानों के लिए यह एक समस्या मानी जाती है. इसको हटाने के लिए कीसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसको उखाड़ने के लिए किसान रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं. वहीं कई किसान इसे हाथों द्वारा ही हटाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन, अब किसानों को इस काम के लिए जयादा मेहनत नहीं करना होगा, यह काम अब बिल्कुल प्राकृतिक तौर पर किया जाएगा. इस कार्य को अब मैक्सिकन बीटल कीट के द्वारा किया जाएगा. इसकी रिपोर्ट को स्थानीय रिसर्च के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र भेजी गई है.घास के उन्मूलन का यह रिसर्च ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च सेंटर के कृषि वैज्ञानिक डॉ.आरकेएस तोमर के द्वारा किया गया है. इसमें आगे कीड़े की एक और बड़ी खेप भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से अनुमति मिलने के बाद घास के प्रभावित क्षेत्रों में छोड़ी जाएगी. मैक्सिकन बीटल का वैज्ञानिक नाम जाइकोग्रामा बैकोलोराटा है.
जानिए इसके काम करने का तरीका
मैक्सिकन बीटल ऐसा कीट है जिसका प्रजनन काल जुलाई और अगस्त महीना माना गया है. इस कीड़े को गाजर घास के उपर रख दिया जाता है और यह धीरे-धीरे एक सप्ताह में पौधे की एक-एक पत्तियों को खा जाता है और उसके साध पौधे का जीवन चक्र भी समाप्त कर देता है. इस पूरी प्रक्रिया की अवधि काफी आसान है.
गाजर घास अमेरिका से आए गेहूं की देन है
कृषि वैज्ञानिक तोमर की मानें को वर्ष 1950 में गेहूं को अमेरिका से निर्यात किया गया था, और इसके साथ ही गेहूं घास के साथ घांस के बीज यहां आ गये. सबसे पहले इसके केस को महाराष्ट्र में 1955 में देखा गया था. इससे मानव और पशु दोनों को ही नुकसान है. वहीं खरपतवार विज्ञान अनुसंधान केंद्र के रिसर्च में गाजर घास में सेस्क्युटरयिन लैक्टॉन नामक जहरीला पदार्थ का होना पाया गया है. इससे इसके क्षेत्र में लगे लगभग 40 से 45 फिसदी का नुकसान पहुंचता है. वहीं मवेशियां इसे कई बार घास समझकर खा जाते हैं और इससे उनके दूध उत्पादन क्षमता 40 फीसद तक कम हो जाती है. मनुष्यों में यह अस्थमा, चर्म रोग जैसी बीमारियों को जन्म देता है.
देश में लगभग अच्छे-खासे क्षेत्र में है फैलाव
इसको लेकर पहला रिसर्च कर्नाटक के बेंगलुरू में हुआ था लेकिन उस वक्त इसपर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया और देखते-देखते वर्ष 2012 तक यह देश के 350 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैल चुका था. बिलासपुर के टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च सेंटर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ आरकेएस तोमर का कहना है कि गाजर घास के प्राकृतिक उन्मूलन के लिए मैक्सिकन बीटल को इसकी पत्तियों पर छोड़ा जाता है. उनका कहना है कि इसपर किया गया रिसर्च सफल रहा है और भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र से अनुमति आने के बाद ही इसकी आगे की प्रक्रिया की जाएगी.
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