उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से पहली बार विदेशों में केले का निर्यात किया जायेगा. बता दें कि तराई क्षेत्र की जलवायु के कारण इस क्षेत्र में केले उगाए जाते हैं, लेकिन लखीमपुर खीरी के किसानों के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी. इस क्षेत्र के मेहनतकश किसानों के लिए अपनी केले की फसल के निर्यात के ऑर्डर मिलना बड़ी बात है.
लखीमपुर किसानों की उपलब्धि (Achievement of Lakhimpur Farmers)
यूपी के लखीमपुर के किसानों को खेती से बड़ी उपलब्धि मिलने वाली है. उत्तर प्रदेश से पहली बार केले का विदेशों में निर्यात किया जा रहा है. इसका उत्पादन लखीमपुर के पलिया कलां क्षेत्र के किसानों ने किया है. 40 मीट्रिक टन केले की पहली खेप 4 अक्टूबर को ईरान के लिए रवाना हुई है. इस उपलब्धि के बाद उन्नत तकनीक से केले उगाने वाले महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश जैसे देश के किसानों के पास लखीमपुर खीरी का नाम भी दर्ज हो जाएगा.
यूपी से पहली बार निर्यात (First time export from UP)
पलिया कलां क्षेत्र के किसानों की 40 मीट्रिक टन केले की फसल ईरान को निर्यात की जा रही है. इसके लिए उच्च स्तरीय तकनीक और 'मल्टी मोडल ट्रांसपोर्ट' को माध्यम बनाया जाएगा. अभी तक केवल महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और यूपी जैसे राज्यों से केले का निर्यात किया जाता था. यहां किसान अभी तक अंतरराष्ट्रीय बाजार से दूर थे, लेकिन अब वो दिन दूर नहीं जब ये सब सच होने जा रहा है.
उत्पादन में विशेष तकनीक का उपयोग (Use of special technology in production)
केले के इस निर्यात के पीछे किसानों की मेहनत के अलावा उन्नत तकनीक भी है. केले की शेल्फ लाइफ बहुत कम होती है. इसे लंबे समय तक रखने के लिए न केवल इसके उत्पादन के बाद पैकेजिंग पर ध्यान देना पड़ता है, बल्कि इसे लंबे समय तक रखने के लिए केले का पेड़ लगाते समय ही विशेष तकनीक अपनाई जाती है. यानि इसके लिए शुरू से ही देखभाल और सुरक्षा का एक खास तरीका अपनाना पड़ता है. वर्तमान में इसी तकनीक से लखीमपुर खीरी में एक हजार एकड़ में केला लगाया जाता था.
केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत यूपी, बिहार, झारखंड के प्रमुख सीबी सिंह कहते हैं, "यह यूपी में केले उगाने वाले किसानों के लिए सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार में जाएगा और किसानों को सीधा लाभ मिलेगा".
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ख़ास बात यह है कि किसानों की आय में वृद्धि भी होगी. इतना ही नहीं, इस प्रयास के बाद लखीमपुर के किसान मॉडल बनकर सामने आएंगे. इसके बाद इसी तकनीक से गोरखपुर और वाराणसी में निर्यात करने का प्रयास किया जा रहा है. केले को ईरान ले जाने के लिए 40 फीट के दो कंटेनरों का उपयोग किया जाएगा, जो मुंबई के जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह से ईरान के लिए रवाना होंगे. यह खेप 5 दिनों में ईरान के बाजार में आ जाएगी.
मल्टी मोडल ट्रांसपोर्ट क्या है? (What is Multi Modal Transport?)
लखनऊ के मलिहाबाद के पैक हाउस में केला पैक किया जाता है, जहां से यह सड़क मार्ग से कानपुर जाएगी. कानपुर से ट्रेन मुंबई के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट पहुंचेगी, जहां से यह ईरान के लिए रवाना होगी. इसके निर्यात का काम करने वाले देसाई एग्रो के मुखिया अजीत देसाई ने भी लखीमपुर के किसानों के लिए विशेष प्रशिक्षण करवाया है.
उनका कहना है कि इस समय केले का उत्पादन बहुत ही उन्नत तकनीक से बढ़ाया जा सकता है. यह प्रयोग महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, छत्तीसगढ़ में किया गया था, लेकिन यूपी के किसानों के लिए यह पहली बार है.
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