ठीक समय पर मानसून के दस्तक देने से इस बार समुद्र में अच्छी तादाद में हिलसा मछली मिलने की जो उम्मीद जगी थी वह सच साबित हुई. चार दिनों में ही मछुआरों के हाथ पर्याप्त मात्रा में हिलसा हाथ लगी है. हालांकि समुद्र में निम्न दबाव बनने के कारण मछुआरों में थोड़ी निराशा भी हुई है. निम्न दबाव बनने के कारण वे समुद्र में और आगे मछली पकड़ने के लिए नहीं जा सके. चार दिनों में ही उन्हें जाल लेकर वापस लौटना पड़ा. लेकिन चार दिनों की मेहनत में ही उन्हें 40 लाख टन हिलसा मछली में पकड़ने में सफलता मिली है. कम समय में इतनी अधिक मात्रा में हिलसा पड़ने से साबित हुआ है कि इस बार समुद्र में मछली की आवक अच्छी है. हिलसा मछली की पहली खेप डायमंड हार्बर के थोक मछली बाजार में पहुंचते ही व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ गई है. मछली बाजार में रौनक बढ़ते देख प्रशासन की भी तत्परत हो उठा है.
पहली खेप में ही 40 टन हिलसा मछली के बाजार में पहुंचते ही प्रशासन भी हरकत में आया और सुचारू रूप से खरीद बिक्री शुरू करने के लिए एहतियात के कई कारगार उपाय किए गए. दक्षिण 24 परगना जिला प्रशासन ने घाट पर हिलसा मछली की पहली खेप पहुंचते ही डायमंड हार्बर स्थित थोक मछली बाजार को सेनेटाइज कर कर दिया. थोक विक्रेताओं समेत खुदरा व्यापारियों के लिए भी बाजार में पहुंचने के लिए मास्क पहचना और हाथ में दस्ताना लगाना अनिवार्य कर दिया गया. पहली खेप में जो हिलसा बाजार में पहुंची है वह 500 ग्राम से लेकर 1 किलो ग्राम वजन की उच्च गुणवत्ता वाली है. थोक बाजार में हिलसा की बिक्री 500-650 रुपए प्रति किलो की दर से शुरू हुई. इस बार खुदरा बाजार में 600-800 रुपए प्रति किलो की दर हिलसा की बिक्री होगी. उच्च गुणवत्ता की हिलसा मिलने से मछुआरों को भी इस बार अच्छा दाम मिला है. मछुआरों में फिर समुद्र में जाने को लेकर काफी उत्साह है. मछुआरे सुंदरवन और सागर क्षेत्र के विभिन्न घाटों पर पर जाल और मछली मारने के सारे संरजाम लेकर डटे हैं. मौसम अच्छा होते ही वे फिर समुद्र की ओर निकल जाएंगे.
दक्षिण 24 परगना जिला प्रशासन के सूत्रों के मुताबिक सुंदरवन से मछुआरों का दल हिलसा मछली का शिकार करने के लिए 15 जून को समुद्र की ओर रवाना हुआ था. मछली मारने वाला जाल और अन्य सारे संरजाम लेकर मछुआरों का अलग-अलग दल सुंदरवन के विभिन्न घाटों से करीब 3000 हजार मछली मारने वाले जहाज (Trawlers) पर सवार होकर समुद्र में गए थे. उनके साथ 10 दिनों तक के लिए खाने-पीने की चीजें थीं. समुद्र से उन्हें 10 दिनों के बाद ही लौटना था. लेकिन समुद्र में निम्न दबाव बनने के कारण वे चार दिनों में ही लौट आए. चार दिनों में ही मछुआरों को 40 टन हिलसा पकड़ने में सफलता मिली है. निम्न दबाव नहीं होता तो इस बार पहली खेप में इससे पांच गुणा मछली मछुआरों के हाथ लगती. अभी भी मछुआरे तैयार हैं. निम्न दबाव के कमजोर पड़ते ही वे फिर समुद्र की ओर रवाना होंगे.
अच्छा मौसम और इस बार समय पर मानसून के दस्तक देने को लेकर अच्छी तादात में हिलसा मछली की समुद्र में आवक हुई है. इसे लेकर मछुआरों में काफी उत्साह है. हिलसा मछली की खरीद बिक्री करने वाले व्यापारियों में भी इस बार अच्छा मुनाफा करने को लेकर उम्मीद जगी है. सरकार भी इस बार हिलसा का उत्पादन बढ़ाने को लेकर मछुआरों को हर तरह से सहयोग कर रही है. जिला प्रशासन ने प्रत्येक मछुआरों को साथ में अपना परिचय पत्र रखने की हिदायत दी है ताकि घटना-दुर्घटना की स्थिती में उनकी पहचान करने में कोई असुविधा न हो. अतीत में मानसून के दौरान समुद्र में मछली मारने को लेकर मछुआरों में होड़ मचने से कई ट्रावलरों के दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं घट चुकी है. समुद्र में इस तरह की दुर्घटनाओं में कई मछुआरों को जान तक गंवानी पड़ी है. जिला प्रशासन ने इस बार इस तरह की कोई दुर्घटना नहीं होने देने को लेकर मौसम विभाग के हवाले से मछुआरों को सख्त हिदायत दी है. मछुआरों को समुद्र में सुरक्षित रहकर मछली पकड़ने के लिए सरकारी निर्देशों का पालन करने की सख्त हिदायत दी गई है. मत्स्य निदेशालय के हवाले से मिली खबर के मुताबिक सुंदरवन क्षेत्र के 6 मत्स्य बंदरगाह और तीन जेटी घाट से हजारों मछुआरों के दल को 15 जून को रवाना किया गया था. मौसम विभाग के हवाले से मछुआरों को हर समय अपडेट देने की व्यवस्था की गई है.
पश्चिम बंगाल में हिलसा मछली बंगालियों का एक प्रिय खाद्य है. बंगाल के रसोई घरों में मानसून के मौसम में हिलसा मछली का विशेष रूप से इंतजार रहता है. बांग्ला में इसे ईलीश माछ भी कहते हैं. निजी रसाई घरों और छोटे रेस्टूरेंट से लेकर बड़े होटलों तक में भी हिलसा मछली से विभिन्न तरह के व्यंजन भी बनाए जाते हैं जो बहुत स्वादिष्ट होता है. हिलसा मछली स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत लाभदायक है. इसमें ओमेगा 3 फैटी एसीड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तो मष्तिष्क को स्वस्थ रखने और तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाने में विशेष रूप से सहायक है. हिलसा मछली का तेल शरीर में कलोस्ट्राल लेबल को भी कम करता है. कई शोधों में हिलसा मछली के औषधीय गुण प्रमाणित हो चुके हैं. महंगा होने के बावजूद कोलकाता महानगर समेत राज्य भर में इसकी मांग में तेजी बनी रहती है. इसी से बंगालियों के भोजने में हिलसा मछली के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है. मानसून शुरू होने के साथ ही बंगाल में मछुआरे हिलसा मछली पकड़ने के लिए समुद्र में निकल पड़ते हैं. वैसे बांग्लादेश भी उच्च कोटि की हिलसा मछली पश्चिम बंगाल को आपूर्ति करता है. लेकिन मानसून के मौसम में तटवर्ती क्षेत्रों में मछुआरे भी राज्य में मांग की पूर्ति लायक हिलसा मछली समुद्र से पकड़ लाते हैं. इससे मछुआरों की अच्छी खासी आय होती है और मछली व्यापारियों का भी मुनाफा होता है.
सेंट्रल इनलैंड फिसरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट के विशेषज्ञों के मुताबिक इस बार मानसून पूर्व वर्षा हिलसा मछली की आवक बढ़ाने में मददगार साबित हुई है. मानसून पूर्व वर्षा के समय हिलसा नदी और समुद्र के मुहाने पर पहुंच जाती है. इस बार अच्छा मौसम होने के कारण जून की शुरूआत में ही तटवर्ती क्षेत्रों में हिलसा की आवक बढ़ने के आभास मिलने लगे.
मत्स्य विभाग के सूत्रों के मुताबिक तटवर्ती जिला उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना व पूर्व मेदिनीपुर के मछुआरों समेत समेत हावड़ा,हुगली मुर्शिदाबाद और नदिया आदि दक्षिण बंगाल के लगभग दो लाख मछली व्यापारियों की आजीविका हिलसा मछली के व्यवसाय पर निर्भर है. पिछले वर्ष राज्य में हिलसा का औसत उत्पादन 5 हजार मेट्रिक टन था जो मानसून के दौरान बढ़कर 15 हजार मेट्रिक टन पहुंच गया. मत्स्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इस बार मौसम अच्छा होने व मानसून पूर्व वर्षा के कारण राज्य में हिलसा मछली का उत्पादन 19-20 हजार मेट्रिक टन पहुंच सकता है. इससे मछुआरों की आय तो बढ़ेगी ही मछली व्यापारियों का भी मुनाफा होगा.
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