केंद्र सरकार के द्वारा जोर-शोर से प्रचारित अरहर-मक्का पसल प्रोत्साहन योजना नहीं प्रदेश में गिरते भू-जलाशयों का सामाधान नहीं है क्योंकि ये दोनों फसलें वर्षा मौसम में, धान के भारी मिट्टी- उच्च नमी वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त ही नहीं है, वैसे भी प्रदेश में नीलगाय बहुतायत के चलते-अरहर पसल की कामयाबी की कोई संभावना नहीं है और फिर अरहर-मक्का की फसल, धान की भारी मिट्टी क्षेत्रों में भारी बारिश को सहन नहीं कर सकती है.
फिर दोनों फसलों की कटाई में मशीनीकरण नहीं होने से किसानों के लिए बड़ी समस्या हो जाती है क्योंकि कृषि के क्षेत्र में मजदूरों की पहले से ही कमी है, लेकिन सरकारी तंत्र ने इन फसलों के तकनीकी पहलुओं को बिना गौर करे ही 4500 रूपये प्रति एकड़ की प्रोत्साहन राशि से एक लाख एकड़ का काल्पनिक लक्ष्य निर्धारित किया है जो जनता के पैसे का सरासर दुरूपयोग करते है.
वैसे भी प्रदेश का कृषि विभाग पहले से ही ऐसी काल्पनिक योजनाओं ( रॉकशील से गेहूं की फसल में बंट बीमारी का इलाज, खड़े गेंहू की फसल में आखिरी सिंचाई पर मूग की बिजाई-2008) से सरकार और किसानों की आंख में धूल झोंकता रहा है.
पानी के लिए करना पड़ेगा संघर्ष (Will have to fight for water)
पंजडब-हरियाणा में धान की बिजाई लगभग 45 लाख हेक्टेयर भूमि पर होती है, मौजूदा खड़े पानी-धान पद्धति में एक किलो धान बीज पैदा करने के लिए 3000-5000 लीटर सिंचाई पानी की जरूरत होती है, जिसकी वजह से प्रदेश में भूमि जलाशय समाप्ति की और तेजी से अग्रसर है अब वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ियों को पीने के पानी के लिए भी संघर्ष करना पड़ सकता है.तब बड़ा सवाल यह है कि क्या धान की खेती को बंद कर दिया जाए.
पंजाब और हरियाणा में पैदा होने वाली उच्च गुणवत्ता बासमती धान से देश को लगभग 30 करोड़ रूपये सलाना विदेशी मुद्रा और लाखों किसान मजदूर मिल मालिकों को रोजगार व व्यापार के अवसर मिलते है. सरकार सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए साल 1990 से सीधी बिजाई धान तकनीक को ब़ावा देने की हर संभव कोशिश करने में लगी है लेकिन अभी तक कोई खास सफलता नहीं मिल पाई है.
इसका बड़ा कारण सीधी बिजाई धान की मौजूदा सरकारी अमुमोदित तकनीक में धान फसल को, हर सप्ताह सिंची देने से खरपतवार की प्रमुखता रहती है जिससे किसान परेशान होकर सीधी बिजाई धान पद्धति तकनीक को अपनाने से बचते है.
नई सीधी बिजाई तकनीक विकसित हुई (New direct seeding technology developed)
डॉ वीरेंद्र सिंह लाठर, पूर्व प्रधान विज्ञानिक भारतीय कृषि अनुसंधान, करनाल ने हर्बल हाइड्रोजल पर आधारित नई सीधी बिजाई तकनीक को विकसित की है, जिसमें दानेदार गूंद कतीरा को हर्बल हाइड्रोजल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.जिससे सभी फसलों की जड़ों के आसपास ज्यादा नमी बनी रहने से, सूखा जव्दी नहीं आता है और साथ ही सिंचाई की जरूरत भी कम रह जात ह जिससे पहली सिंचाई देर से व कुल सिंचाई कम लगने के कारण खरपतवार, कीड़ें, बीमारियां भी कम आती है.
डॉ लाठर सीधी बिजाई तकनीक से हरियाणा के सूखे क्षेत्र के प्रगतिशील किसान मनोज कुमार , सुनील लांबा आदि आधी लागत और सिंचाई पर धान की पूरी पैदावार ले रहे है क्योंकि यूरिया खाद की मात्रा व लागत आधी और खेती के अन्य दूसरे झंझट खत्म हो जाते है जैसे की पौध नर्सरी में उगाना, खेत में पाड़े काटना, रोपाई करवाना, 120 दिनों तक खेत में पानी में फसल को खड़ा रखना इत्यादि.
डॉ लाठर बिजाई तकनीक (Dr. Lathar Seeding Technique)
1. बिजाई का समय- बिजाई मई के दूसरे पखवारे में करें, क्योंकि बिजाई के बाद 10-15 दिनों तक सूखा मौसम होना चाहिए.
2. खाद की मात्रा- 7-7-7- किलो जिंक सल्फेट-फेरस सल्फेट दानेदार गूंद कतीरा प्रति एकड़ खेत की तैयारी के समय और 40 किलो डी ए पी बिजाई के समय खेत में डाले. 30-30-30 किलो यूरिया, पहली, दूसरी, चौथी सिंचाई के बाद फसल में डाले. फसल में आयरन की कमी से पत्ते पीले पड़ने पर 1-2 प्रतिशत फेरस सल्फेट का छिड़काव कर दें.
3. बीज की मात्रा- 8 किलो बीज प्रति एकड़, बिजाई से पहले 10 किलो बीज का उपचार 10 ग्राम बाविस्टिन या इमीसान और 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइकलीन 10 लिटर पानी में 24 घंटे तक भिगों कर रख लें.फिर बीज को 4-6 घंटे छाया में सूखा लें.
4. बिजाई की विधि- गहरी जुताई के बाद सिंचाई और अच्छे वत्तर पर बिजाई करें. बिजाई बीज ड्रिल व छींटा विधि से करें. लाइन से लाइन की दूरी 8-9 इंच रखें और बीज की गहराई सिर्फ 2-3 सेमी तक ही सीमित रखें, छींटा विधि बिजाई के बाद हल्का सुहागा जरूर लगाए.
5. खरपतवार नियंत्रण- बिजाई के तुरंत बाद 1.5 लीटर स्टाम्प ( पेंडामेथलीन) प्रति एकड़ 200 लिटर पानी में छिड़काव करें. खरपतवार का प्रकोप ज्यादा हो तो बिजाई के 30 दिन बाद नोमगोल्ड + साथी ( पयरजोसुल्फोरों) मिलाकर छिड़काव करें.
6. सिंचाई प्रबंधन- अगर बेमौसम बारिश हो जाए तो करण्ड ( सख्तच जमीन) तोड़ने के लिए तुरंत सिंचाई करें, नहीं तो धान के पौधे मिट्टी से बाहर नहीं आ सकेंगे. पहली सिंचाई देर से बिजाई के 15-20 दिनों के बाद खेत की मिट्टी के आधार पर ही लकरें सके बाद सीमित सिंचाई गिला-सूखा प्रणाली से 15 दिनों के अंतराल पर खेत की मिट्टी व बारिश के आधार पर करें , पहली सिंचाई के तुरंत बाद, अगर कुछ जगह पौधे कम नजर आए तो खेत में दूसरी जगह से पौधे निकाल कर रोपाई कर खाली जगह को भर लें.
7. बीमारियों कीट प्रबंधन- अनुमोदित मात्रा में केरं, तना गलन बचाव के लिए, 8 किलो कारटेप एकड़ को 10 किलो रेत में मिला कर, 30 दिन की फसल में छिड़काव करें.
अगर राज्य सरकार सिंचाई में भू-जल बचाने को इच्छुक है तो सीधी बिजाई धान को 8000 रूपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि से पूरे हरियाणा में बिना शर्त लागू करें और खड़ पानी की धान पर कानूनी प्रतिबंध लगाए जिसेस पर्यावरण को भी फायदा होगा. क्योंकि सीधी बिजाई धान में वातावरण को गर्म करने वाली गैंसे का निर्माण कम होता है और फसल 10 दिन पहले पकती है. इससे किसान धान के अवशेष जलाने से बचेंगे.
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