राष्ट्रीय केला मेला केरल में आयोजित किया जा रहा है जिसके उद्घाटन के अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि केला एवं प्लैंटेंस उष्ण कटिबंधीय विकसित देशों में लाखों लोगों के लिए व्यापक फाइबर युक्त खाद्य फसल है जिसकी खेती लगभग चार हजार वर्ष पुरानी अर्थात 2020 बीसी से की जा रही है। केले का मूल उत्पादन स्थल भारत है तथा भारत के उष्ण कटिबंधीय उप कटिबंधीय तथा तटीय क्षेत्रों में व्यापक पैमाने में इसकी खेती की जाती है। हाल के वर्षों में घरेलू खाद्य पदार्थ, पौष्टिक खाद्य पदार्थ एवं विश्व के कई भागों में सामाजिक सुरक्षा के रूप में केले एवं प्लैंटेंस का महत्व निरन्तर बढ़ रहा है। भारत में गत 2 दशकों में बुआई क्षेत्र, उत्पादन एवं उत्पादकता की दृष्टि से केले की खेती में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
वर्तमान में विश्व के 130 देशों में 5.00 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में केला उगाया जाता है जिसमें केले एवं प्लैंटेंस (एफएओ, 2013) का 103.63 मिलियन टन उत्पादन होता है। भारत, विश्व में केले का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला देश है, भारत में 0.88 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में 29.7 मिलियन टन केले का उत्पादन होता है। भारत में केले की उत्पादकता 37 मीट्रिक टन प्रति हैकेटेयर है। यद्दपि भारत में केले की खेती विश्व की तुलना में 15.5 प्रतिशत क्षेत्र में की जाती है परन्तु भारत में केले का उत्पादन विश्व की तुलना में 25.58 प्रतिशत होता है। इस प्रकार केला एक महत्वपूर्ण फसल के रूप में उभर रहा है। केला आम उपभोक्ता की पहुंच में है। यह भी उल्लेखनीय है कि केले की मांग लगातार बढ़ रही है। केले की घरेलू मांग वर्ष 2050 तक बढ़कर 60 मिलियन टन हो जाएगी। केले एवं इसके उत्पादों की निर्यात की पर्याप्त गुंजाइश है जिससे केले की और मांग बढ़ सकती है। केला और प्लैंटेंस लगातार विश्व स्तर पर आश्चर्यजनक वृद्धि दर्ज कर रहे हैं। पूरे वर्ष भर केले की उपलब्धता, वहनीयता, विभिन्न किस्में, स्वाद, पौषणिक एवं औषधीय गुणों के कारण केला सभी वर्ग के लोगों के बीच रूचिकर फल बनता जा रहा है तथा इसी कारण केले के निर्यात की बेहतर संभावना है।
विश्व का केला उत्पादन अफ्रीका, एशिया, कैरिबियन और लैटिन अमेरिका में केन्द्रित है जो वहां की जलवायु की स्थितियों के कारण है। हमारे एकीकृत बागवानी विकास मिशन (जिसमें उच्च सघनता वाली पौधों को अपनाने, टिस्यू कल्चर प्लान्टस उपयोग और पीएचएम अवसंरचना में अन्य गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है) के तहत विभिन्न गतिविधियों को चलाने के कारण केले की खेती के क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ है व केले के उत्पादन व उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है। अभी तक पिछले तीन वर्षों एवं छमाही के दौरान 11809 पैक हाउसेस, 34.92 लाख मीट्रिक टन शीत गृह भंडारण क्षमता का निर्माण किया गया है। केले की पौष्टिकता, काफी अधिक लाभ तथा इसकी निर्यात क्षमता के संबंध में बढ़ती जागरूकता के कारण केले की खेती के क्षेत्र में निरंतर वृद्धि हो रही है। पूरे देश में केले की खेती करने वाले किसानों को 3.5 वर्षों के दौरान वर्तमान सरकार में एकीकृत बागवानी विकास मिशन स्कीम के कारण काफी लाभ प्राप्त हुआ है। शहरीकरण एवं प्राकृतिक स्थलो पर जंगली केले की खेती में कमी के कारण केले की उपलब्ध अनुवांशिक विविध किस्मों को संरक्षित करने की आवश्यकता है। मूसा नामक जंगली प्रजाति और उसकी सहायक किस्में जैविक एवं अजैविक दबावों के विपरीत प्रतिरोधात्मक क्षमता सृजित करने के लिए महत्वपूर्ण स्रोतों का निर्माण करती हैं। जैविक एवं अजैविक दबाव ऐसी मुख्य समस्याएं हैं जिनसे बड़े पैमाने पर उत्पादकता में कमी आती हैं। यद्दपि केले के उत्पादन संबंधी समस्याएं एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में अलग-अलग होती है फिर भी अधिकांश समस्याओं की प्रकृति एक समान होती है। समस्याओं की इस प्रकार की जटिलता को देखते हुए केले की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए मौलिक, कार्यनीतिक तथा अनुकूलन अनुसंधान की आवश्यकता हमें प्रतीत हुई है।
केले तथा प्लैंटेंस के प्रजनन में उनकी अपनी अंतर निहित समस्याएं हैं तथा अनुमानित परिणामों को प्राप्त करने के लिए वर्तमान जैव प्रौद्योगिकी उपकरण व कार्यनीतियां इस समस्या के समाधान में सहायक हो सकती है तथा इसका वास्तविक प्रभाव भविष्य में देखने को मिलेगा। वर्ष 2050 में 60 मिलियन टन उत्पादन के लक्ष्य के साथ उर्वरक, सिंचाई, कीटनाशी प्रबंधन एवं टीआर4 जैसी बीमारियों के उपचार जैसे आदान लागतों में वृद्धि जैसी बहुत उत्पादन समस्याओं का केले के उत्पादन को बढ़ाने के लिए समाधान किए जा रहे हैं।
केले की खेती के वैज्ञानिक तरीके से करने एवं तकनीकी के बेहतर इस्तेमाल के लिए कृषि मंत्री ने कहा कि अनुवांशिक अभियांत्रिकी, केन्द्रक प्रजनन, सबस्ट्रेट डायनामिक्स, जैविक खेती, समेकित कीट और रोग प्रबंधन, फीजियोलोजिकल, जैविक व अजैविक दबाव प्रबंधन के लिए जैव रसायन और जेनेटिक आधार, फसलोपरान्त प्रौद्योगिकी को अपनाना, कटाई पश्चात प्रौद्योगिकी अपनाना और अपशिष्ट से धनार्जन तक मूल्य संवर्धन जैसे क्षेत्रों में प्रोत्साहन देने के लिए नए कार्यकलापों को शुरू किया जा रहा है। मुझे विश्वास है कि इस संगोष्ठी में किए गए विचार-विमर्श से अनुसंधान को मजबूत करने का आधार मिलेगा और केला अनुसंधान में इसके अधिदेश को पूरा करने के लिए नई राह खुलेगी तथा उच्च वृद्धि व विकास के लिए भविष्य की चुनौतियों का समाधान होगा जिससे किसानों की आय को दोगुना किया जा सकेगा।
विभूति नारायण
कृषि जागरण नई दिल्ली
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