क्या कभी आपने सोचा है कि एक ग्रामीण महिला पशु चिकित्सक के रूप में पशुओं के लिए दवाइयाँ, आहार व आवश्यक पोषण उपलब्ध करवाने में अहम भूमिका निभा सकती है। यही नहीं उनके लिए आवश्यक सुविधाएं जुटाने व अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करते हुए घर की कुल आमदनी में भी सहायक की भूमिका निभा सकती है। जी हां, यह सच है। राजस्थान के अलवर में नांगली मेघा गांव में राधाबाई एक ऐसी ही महिला है जो कि पशुओं के लिए मसीहा बनकर आई है जो बीमार पशुओं का उपचार करने के लिए न तो दिन देखती है और न रात।
यह संभव हो सका है स्थानीय स्वयं सहायता समूह “महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना“ की वजह से जिसने मॉर्ड के ग्रामीण रोजगार मिशन के तहत उन महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जो वाकई में पीड़ित पशुओं की सहायता व देखभाल करना चाहती हैं। इससे न सिर्फ महिलाओं को विभिन्न जानकारियां प्राप्त होंगी बल्कि वे एक लघु उद्यमी की तरह कार्य कर आमदनी भी कर सकेंगी। छः दिनों के प्रशिक्षण के दौरान वे इतनी सशक्त हो जाती हैं कि इस मिशन को भलीभांति समझते हुए कष्ट में पड़े हुए जानवरों की एक मित्र की भांति देखभाल करती हैं। यही कारण है कि ऐसी महिलाओं को पशु सखी नाम दिया गया है।
ग्रामीण क्षे़त्रों में ऐसी कई महिलाएं पशु सखी के रूप में उभरी हैं जिन्होंने कई पीड़ित पशुओं के प्राणों की रक्षा की है। इन पशु सखियों को अधिकांश दवाइयों के नाम व उपचार का तरीका ज्ञात है, जिससे छोटी-मोटी बीमारियों में ये पीड़ित पशुओं का उपचार आसानी से कर सकती हैं। ये पशु सखी न सिर्फ पीड़ित पशुओं की देखभाल करती हैं बल्कि इस काम में पशुओं को आवश्यक दवाइयाँ, पशु आहार व आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के साथ ही लघु उद्यमी के रूप में भी उभरी हैं। इससे उनकी आमदनी में भी इजाफा हुआ है जिसके चलते एक पशु सखी महीने में लगभग 25-30 हजार रूपए अर्जित करती है।
Share your comments