1. Home
  2. Stories

सती प्रथा को समाप्त करने वाले समाज सुधारक को नमन...

भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का विशिष्ट स्थान है.वे ब्रह् सामाज के संस्थापक, भारतीय भाषा प्रेस के प्रवर्तक,जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणोता तथा बंगाल में नवजागरण युग के पितामाह थे. उन्होने भारतीय स्वतंत्रता के संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनो क्षेत्रो के गति प्रदान की.

KJ Staff
KJ Staff
stories
stories

भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का विशिष्ट स्थान है. वे  ब्रह् सामाज के संस्थापक, भारतीय भाषा प्रेस के प्रवर्तक,जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणोता तथा बंगाल में नवजागरण युग के पितामाह थे. उन्होने भारतीय स्वतंत्रता के संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनो क्षेत्रो के गति प्रदान की.

राजा राममोहन राय अपनी दूरदर्शिता और वैचारिकता के अनेको उदाहरण के लिए विख्यात थे. हिन्दी के प्रति उनका आगाध स्नेह था. वे रुढिवाद और कुरीतियों के विरोधी थे. लेकिन संस्कार,परंपरा और राष्ट्र गौरव उनके दिल के करीब थे.

जीवनी

राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल में 1772 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. 15 वर्ष कि आयु तक उन्हे बांगाली, फारसी तथा संस्कृति ज्ञान हो गया था. किशोर अवस्था में उन्होने काफी भ्रमण किया. अपने शुरुआती दिनों में उन्होने 1803-1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम भी किया. उन्होने ब्रह्म सामाज कि स्थापना कि तथा विदेश इंग्लैण्ड और फ्रांस का दौरा भी किया.

कुरीतियो के विरुद्ध संघर्ष

राजा राममोहन राय ने ईस्ट ईंडिया कंपनी कि नौकरी छोडकर अपने आपको दोहरो संघर्ष के लिए तौयार किया. वह दोहरा लड़ाई लड रहे थे. पहली तो भारत कि स्वतंत्रता प्राप्ति दूसरी अपने ही देश के नागरिको से थी. जो समय के साथ अभिशाप बन गई कुरीतियों में जकड़े थे. राजा राममोहन राय ने उन्हे झंकझोरने का काम किया. बाल विवाह,सती प्रथा,जातिवाद,कर्मकांड,पर्दा प्रथा आदि का उन्होने भरपुर विरोध किया. धर्म प्रचार के क्षेत्र में अलेक्जेंडर डफ्फ ने उनकी काफी सहायता कि. द्वरका नाथ टैगौर उनके प्रमुख अनुयायी थे. आधुनिक भारत के निर्माता,सबसे बडी सामाजिक,धार्मिक सुधार आंदोलन के संस्थापक,सती प्रथा जैसी बुराई को जड़ से समाप्त करने में उनका बड़ा योगदान था.

पत्रकारिता

राजा राममोहन राय ने ब्रह्मैनिकल मैग्जीन, संवाद कौमुदी,मिरात उल अखबार,बंगदूत जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन व प्रकाशन किया. बंगदूत एक अनोखा पत्र था. इसमे बांग्ला,हिन्दी,औऱ फारसी का प्रयोग एक साथ किया जाता था. उनके जुझारु और स्शक्त व्यक्तित्व का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सन् 1821 में अंग्रेज जज द्वारा प्रतापनाराण दास को कोड़े मारने कि सज़ा दी  गई. फलस्वरुप उसकी मृत्यु हो गई. इस बर्बरता के विरोध में उन्होने लेख लिखा.

निधन

61 वर्ष कि आयु में इंग्लैणड़ स्टेपलेटन नामक स्थान पर 27 सितंबर 1833 को उनका देहांत हो गया. 

- भानु प्रताप, कृषि जागरण

English Summary: Naman Sankh Sudarak, who ended the practice of Sati ... Published on: 22 May 2018, 01:53 IST

Like this article?

Hey! I am KJ Staff. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News