
चलो आओ सुनाऊ तुम्हें ऐसी कहानी ,
जिसमें मुख्य किरदार है बिटिया रानी ,
नाम तो कई हैं उसके बहु, बेटी, बहन या कह लो जननी ,
फिर भी लाख बार सोचना पड़ता है उसे करने से पहले अपनी मनमानी.
क्यों उसके आगे बढ़ने की चाह से लोग नहीं होते सहमत,
क्यूं बार बार साबित करनी पड़ी है उसे अपनी काबिलियत,
क्यूं उसे कहा जाता है कि तुम सिर्फ लड़की नहीं तुम तो पूरे घर की हो इज्ज़त,
फिर चाहे उसे बार- बार दो दुख या करते रहो बेइज्ज़त.
रानी भले ही प्यार से बुलाते होंगे- रानी भले ही प्यार से बुलाते होंगे,
पर तुम तो हो घर की मामूली सी सेवक ,
जिसका काम बस आज्ञा का पालन करना है और वो भी बेझिझक ,
सपने देखो लेकिन उसे पूरा करने का नहीं हैं तुम्हे कोई भी हक ,
अरे हां, अकेले बाहर जाना पड़े तो भूलना मत अपने संग ले जाना एक अंगरक्षक ,
गुस्सा तुम्हें आता होगा पर तुम नहीं कर सकती अपनी ऊंची आवाज़ ,
वरना लोग क्या कहेंगे ये तो बेच खाई अपना शर्म और लिहाज़ ,
सुना है नाचने - गाने का शौक है पर ये नहीं हैं हमारे रिवाज़ ,
अगर कहीं से पता चला, तो अब्बा जान बड़े होंगे नाराज़ ,
क्या आज घर रात से आयी अब तुम कहलाओगी बेहया ,
अब तो ऐसे ऐसे ताने मिलेंगे की डर जाओगी देख कर अपना ही साया ,
तुम पहले कैसे खा सकती हो? अभी तक तुम्हारे पति ने नहीं खाया ,
अरे यार, इसके माँ बाप ने तो इसे कुछ नहीं सिखाया ,
मोटी होती जा रही हो, थोड़ा घाटालो वजन ,
वरना मुश्किल हो जायेगा तुम्हारे लिए ढूंढ़ना सजन ,
ये फिल्मी गाने छोड़ो , और सीखो कुछ किर्तन और भजन ,
तभी तो पसंद करेंगे तुम्हें उच्च सर्वजन ,
लेकिन ,ये कभी नहीं कहा जायेगा, की तुमसे ही तो महकता हैं ये घर और आंगन.
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सुनाने को तो सुना दू ऐसे कई सारे ताने,
जिनसे ज़्यादातर होंगे वाक़िफ़ कुछ ही होंगे अनजाने,
बहुतो को तो रोज़ ही सुनने को मिलते होंगे ऐसे फसाने,
ये समाज क्यों लगता है बेटियों को दबाने.
कवयित्री – प्रिया मिस्त्री
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