लगाऊं भाल पर टीका शिखर के शीर्ष पर जा
के
चढ़ाऊं पुष्प चरणों में नमन कर शीश वसुधा
के
उतारूं आरती माँ भारती की वन्दना गा
के
करूं आराधना आराध्य के आशीष मै पा
के
निराली ये अनोखी शान स्वाभिमान की
धरती।
ये मेरे देश की धरती ये हिन्दुस्तान की
धरती।
तपोभूमि ये तेजस्वी है योगी साधु संतो
की।
वसुधा धर्म उपनिषद पौराणिक वेद मंत्रों
की।
गृहों नक्षत्रों के अधिकाल ज्योतिष अंक तंत्रो
की।
ये अचला सिंधू घाटी सभ्यता और बौद्ध ग्रंथों
की।
सकल साहित्य के आधार का सम्मान जो
करती
ये मेरे देश की धरती है हिन्दुस्तान की
धरती।
बिछाकर चाँदनी चादर मिटाता चाँद
अंधियारा
निकल पूरब के आंचल से दिवाकर देता
उजियारा
नदी के नेह निर्मल नीर की कलकल बहे
धारा
शिवाला के नंगाड़ोँ से जहाँ गूँजे गगन
सारा
प्रदिक्ष्णा कर पवन जिसकी महिमा गान नित
करती
ये मेरे देश की धरती है हिन्दुस्तान की
धरती।।
जगत कल्याण के खातिर विधाता भी जनम
पाते
कभी मर्यादा पुरषोत्तम कभी महायोगी बन
आते
शिखर हिम कंदरा में बैठ साधक साधना
करते
धरा के भाव भर मंगल मुनि आराधना
करते।
रघुकुल राम की धरती जो सुंदर श्याम की
धरती
ये मेरे देश की धरती है हिन्दुस्तान की
धरती।।
यहाँ की संस्कृति में प्रीत का संदेश होता
है
अलौकिक शक्तियों के प्रेम का उपदेश होता
है।
विदा होती है जब बहना लिपट कर भाई
रोता है।
खजाना माँ की ममता का कभी खाली ना
होता है।
पिता के प्यार की दौलत है कन्यादान की
धरती
ये मेरे देश की धरती है हिन्दुस्तान की
धरती।।
प्रमोद सनाढ़्य
नाथद्वारा।
Share your comments