ओ रे, बादल क्या संदेश सुनाते हो,
उमड़-उमड़ कर आते हो ,
शुष्क कितनी वसुंधरा, क्या ये देख कर जाते हो?
ओ रे बादल क्या संदेश सुनाते हो,
जल बिन नीरस है प्राणी का जीवन
ये तो भली-भाँति समझते हो
उमड़-उमड़ आते हो बिन बरसे चले जाते हो,
ओ रे बादल कहो क्या संदेश सुनाते हो|
काले मेघ देख उपवन में मयूर पंख फड़फडाते हैं,
आसमानों में चहक-चहक कर चिडियां गीत गाती हैं
किसानों का सुखा कंठ,
तुम्हें देख तृप्त हो जाता हैं
ओ बादल तुम सबकी पीड़ा को समझते हो,
बोलो कब बरसोगे?
उमड़-उमड़ कर आते हो ,
शुष्क कितनी वसुंधरा क्या ये देख कर जाते हो?
ओ रे बादल बोलो क्या संदेश सुनाते हो ?
नदियां सूख रही, पेड़ कट रहे,
जीवन है अस्त व्यस्त
क्या इस बात से नाराज़ हो?
ओ रे बादल क्या संदेश सुनाते हो…
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