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दिल्ली की जान कही जाने वाली दिल्ली-6 यानी पुरानी दिल्ली हर बार मुझे वैसी ही मिलती है जैसी मैं इसे छोड़ के जाता हूं. लोगों से भरपूर, तंग और व्यस्त सड़कें, तारों के जंजाल से लबरेज़ और चारों दिशाओं से लोगों की गूंज और ध्वनियां. इन्हीं सब अनुभवों के बीच यहां के बल्लीमारान इलाके में बैठते हैं वैद्य अमर चंद्र शर्मा.
शर्मा जी की उम्र 54 वर्ष है और वह इस पेशे में 28 वर्षों से सक्रिय है. यहां उनका अपना क्लीनिक है. असल में यह क्लीनिक न होकर एक पुराना दवाईखाना नज़र आता है. हर तरफ आयुर्वैदिक दवाएं और कुछ नहीं. यह पूछने पर कि इतनी दवाईयां क्यों रखी हैं? वह मज़ाक करते हैं कि- इलाज मैं करुं...तो दवाई कोई और क्यों दे? परंतु बात दरअसल यह है कि वैद्य अमर चंद्र शर्मा जी रोगी को उसके रोग की उत्तम दवाई देने में विश्वास रखते हैं. उनका मानना है कि लोगों ने आयुर्वेद के नाम से दुकानें खोल ली हैं परंतु उन्हें यह पता नहीं कि कौन सी औषधी शरीर के किस भाग के लिए उत्तम है. शर्मा जी से कृषि जागरण ने खास बातचीत की और वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति पर बात की.
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बढ़ती बीमारियों के कारण क्या हैं?
वैद्य अमर शर्मा कहते हैं कि आज अगर लोग तमाम तरह की बीमारियों से ग्रसित हैं तो उसकी वजह वह खुद हैं. लोगों ने अपना और अपने आस-पास के लोगों का जीवन ऐसा बना दिया है जैसे पशुओं का जीवन होता है. हम अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं कर रहे और यही हमारे विनाश का कारण बन रहा है. शर्मा जी ने कहा कि मैं एक वैद्य हूं परंतु यह चाहता हूं कि मेरे पास कोई न आए. उनके मुताबिक बीमार होने के तीन प्रमुख कारण हैं-
1. व्यायाम न करना
2. खान-पान का खराब होना
3. आलसी प्रवृति और मानसिक थकावट
अमर शर्मा कहते हैं कि आज की पीढ़ी आलसी ओर कामचोर हैं और मेहनत करने से दूर भागती है.
स्वस्थ रहने के तीन सूत्र
1. पैर गरम
2. पेट नरम
3. सर ठंडा
आयुर्वेद को ज़िम्मेदार लोगों ने ही नुकसान पहुंचाया
वैद्य अमर चंद्र शर्मा से जब यह पूछा गया कि आयुर्वेद को लोगों ने एकदम से क्यों नकार दिया और लोग एलोपेथी की तरफ क्यों गए? इस विषय में वह कहते हैं कि इसमें एलोपैथी का कोई करिश्मा नहीं बल्कि यह आयुर्वेद से ही जुड़े लोगों का निकम्मापन है. जो भी सरकार आई उसने कहीं न कहीं आयुर्वेद को नुकसान ही पहुंचाया है. वो कहते हैं कि यह जो आज शिलाजीत या श्रृंगभस्म को बेचने का दावा करते हैं यह आपको बेवकूफ बना रहे हैं क्योंकि असली शिलाजीत और श्रृंगभस्म में जो जड़ी-बूटी होती हैं उनको सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है. यह सिर्फ एक या दो दवाओं की बात नहीं, जिसकी वजह से आयुर्वेद जाना जाता था. जो दवाएं तुरंत असर दिखाती थी उन पर सरकार या किसी और अधिकृत कंपनी ने बैन लगा दिया. इसका असर यह हुआ कि लोगों को देर से परिणाम मिलने लगे और मजबूरन लोग एलोपैथी की तरफ चले गए.
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जहां कैमिकल वहां नुकसान
शर्मा जी कहते हैं कि एलोपैथी का सेवन करने वाला हर रोज़ अपने लिए कब्र खोद रहा है. वह यह नहीं जानता कि हमारे शरीर के अंदर भी रोग से लड़ने की पर्याप्त क्षमता होती है. मिसाल के तौर पर जब हमें ज़रा सी सर्दी होती है तो हम पैरासिटामौल से लेकर डिसप्रीन और न जाने किस-किस का सेवन कर लेते हैं. और जब हमें थोड़ा ठीक महसूस होता है तो हम समझ लेते हैं कि बीमारी ठीक हो गयी. परंतु यह एक डिसप्रीन या पैरासिटामोल आपकी जान भी ले सकती है. ये दवाईयां आपकी बीमारी को सिर्फ दबाती हैं पूरी तरह खत्म नहीं करती हैं. सर्दी के बाद जो वाक् या बलगम हमारे शरीर में जमा होता है वह समयानुसार बाहर निकलता ही है परंतु हम एलोपैथी दवाइयां खाकर उस बीमारी को दबा देते हैं और वही बीमारी कुछ समय बाद फिर लौट कर आ जाती है.
अंत में अमर शर्मा मशविरा देते हुए कहते हैं- "आप पौष्टिक और संतुलित आहार खाएं, व्यायाम करें और अपने मस्तिष्क को ताकतवर बनाएं. आपको कभी किसी डॉक्टर या वैद्य की आवश्यकता नहीं पड़ेगी."
गिरीश चंद्र पांडे, कृषि जागरण
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