अरंडी या फिर कैस्टर को विशेषकर तेल के लिए जाना जाता है. बारहमासी रहने वाला इसका झाड़ीनुमा पौधा छोटे आकार का होता है. कमाई के मामले में यह पौधा लाभकारी साबित हो सकता है. अरंडी के बीजों पर हुआ नया शोध तो सच में उत्पादन को कई गुना बढ़ाने में सहायक हो सकता है. विशेषज्ञों की माने तो इस प्रयोग के बाद अरंडी का उत्पादन दोगुना बढ़ जाएगा.
जीसीएच की विशेषताएं
खास बात ये है कि उत्पादन बढाने के लिए अतिरिक्त खर्च की जरूरत नहीं है और ना ही इसके लिए आपको खेती का तरीका बदलना है. दरअसल कृषि विश्वविद्यालय (एसडीएयू), पालमपुर के वैज्ञानिकों ने उच्च उपज की जीसीएच-7 अरंडी को विकसित किया है जो किसानों की आमदनी बढ़ाने में सहायक है. यहां के वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर नए तरीके से तरके से अरंडी की खेती हो तो प्रति हेक्टेयर 4 टन से अधिक अरंडी का उत्पादन हो सकता है.
अरंडी उत्पादन में भारत आगे
इतना ही नहीं जीसीएच-7 किस्म विपरीत परिस्थितियों एवं खराब जलवायु जैसी स्थिति में भी उत्पादन देने में सक्षम है. ध्यान रहे कि हमारे यहां अरंडी की मांग बहुत अधिक है और हम विश्व को 90 प्रतिशत अरंडी तेल और अरंडी खली की आपूर्ति करते हैं. इसके तेल का विशेष उपयोग फार्मास्यूटिकल्स और विमानन सेवाओं में होता है.
ऐसी होती है अरंडी
इसकी डाली कमजोर होती है जबकि चमकदार पत्तियों का आकार हथेली भर का होता है. गहरे हरे रंग के होने वाले इसके पत्ते लाल रंग या गहरे बैंगनी या पीतल लाल रंग तक के भी हो सकते है. जबकि तना और जड़ के खोल भिन्न भिन्न रंगों के हो सकते हैं. इसके उद्गम या इसके मूल स्थान को लेकर विद्वानों के अपने-अपने मत हैं. लेकिन फिर भी आम राय यही है कि इसका जन्म और विकास की दक्षिण-पूर्वी भूमध्य सागर, पूर्वी अफ़्रीका एवं भारत में ही हुआ है. हालांकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी इसका पौधा खूब पनपा हुआ है.
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