Best Tips For Litchi Cultivation: लीची (Litchi chinensis Sonn) एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय फल है, जो अपने अद्वितीय स्वाद, सुगंध और पोषण गुणों के कारण अत्यधिक लोकप्रिय है. लीची में सफल फूल आने और फल बनने के लिए उपयुक्त कृषि जलवायु अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. फूल आने की प्रक्रिया मुख्यतः जलवायु, तापमान, आर्द्रता, प्रकाश और मिट्टी की स्थिति पर निर्भर करती है. नीचे लीची में फूल आने के लिए आवश्यक कृषि जलवायु का विवरण निम्नवत है...
1. तापमान और मौसम की आवश्यकता
लीची के सफल पुष्पन के लिए निम्न तापमान और विशिष्ट मौसम की स्थिति अनिवार्य होती है:
- ठंडा तापमान (12-18°C): लीची के पुष्पन की प्रक्रिया के लिए सर्दियों में कम तापमान की आवश्यकता होती है. यह अवस्था ‘चिलिंग इफेक्ट’ के नाम से जानी जाती है, जो पुष्पन के लिए प्रेरणा प्रदान करती है.
- लीची में फूल आने के समय विशेष तापमान और जलवायु परिस्थितियों की आवश्यकता होती है. यदि तापमान इन आवश्यकताओं से भिन्न हो, तो यह फूल आने की प्रक्रिया को बाधित कर सकता है. लीची (Litchi) में फूल आने का उपयुक्त तापमान 15–22°C है. फूल आते समय यदि न्यूनतम तापमान 12°C से कम है तो यह तापमान फूल बनने की प्रक्रिया को रोकता है और 28°C से अधिक तापमान फूल आने की प्रक्रिया में बाधा डालता है और फूल गिरने लगता है. अत्यधिक ठंडा या गर्म मौसम पुष्पन और फलों के सेटिंग को प्रभावित करता है.
- गर्म और शुष्क मौसम: पुष्पन के बाद, फल बनने और पकने के लिए गर्म और शुष्क मौसम अनुकूल होता है.
- उच्च तापमान हानिकारक: यदि सर्दियों के दौरान तापमान 20°C से अधिक हो जाए, तो फूल आने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है.
2. आर्द्रता और वायु की भूमिका
- आर्द्रता: फूल आने की अवधि के दौरान मध्यम आर्द्रता (60-70%) लाभकारी होती है.
- वायु प्रवाह: लीची के बगीचों में उचित वायु संचार फूल आने और परागण में सहायक होता है. अत्यधिक नमी या तेज हवाओं से फूल झड़ सकते हैं.
3. प्रकाश की आवश्यकता
- प्रकाश अवधि: लीची में फूल आने के लिए दिन की लंबाई का विशेष महत्व है.
- सामान्यतः लीची में पुष्पन शॉर्ट-डे कंडीशन (कम दिन की अवधि) में होता है.
- धूप: अच्छी धूप वाली जगहों पर लीची के पेड़ अधिक पुष्प उत्पन्न करते हैं. छायादार क्षेत्रों में फूल कम आते हैं, और उत्पादन प्रभावित होता है.
4. मिट्टी की विशेषताएं
- गहरी, उपजाऊ मिट्टी: लीची के पेड़ों के लिए गहरी, बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है.
- पीएच स्तर: मिट्टी का pH स्तर 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए. अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी फूल आने की प्रक्रिया को बाधित कर सकती है.
- जल निकास: अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी आवश्यक है, क्योंकि जलभराव से जड़ों को नुकसान होता है और पुष्पन में कमी आती है.
5. पोषक तत्त्व और सिंचाई प्रबंधन
- पोषण: फूल आने से पहले लीची के पेड़ों को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की संतुलित मात्रा प्रदान करनी चाहिए जिसे फल की तुड़ाई के बाद तुरंत बाद देना चाहिए.
- सिंचाई: फूल आने से 2 महीने पहले से ले कर पुष्पन के दौरान सिंचाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अत्यधिक नमी पुष्पन को बाधित करती है. अत्यधिक शुष्क मौसम में बहुत हल्की सिंचाई की जा सकती है. बाग में नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग करना चाहिए इससे बाग में नमी भी बनी रहती है एवं खरपतवार भी कम उगते है.
6. स्थान की भूमिका
लीची उत्पादन के लिए भारत में बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्यों की जलवायु अनुकूल मानी जाती है.
7. फूल आने पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
- तापमान में वृद्धि और मौसम में अनियमितता के कारण पुष्पन की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है. असमय वर्षा या ओलावृष्टि से फूल झड़ सकते हैं.
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए बगीचों में माइक्रो-क्लाइमेट (छोटे स्तर पर जलवायु प्रबंधन) का निर्माण किया जाना चाहिए. जिस तरह से उत्तर भारत में गर्मियों के मौसम में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर अप्रैल के महीने में पहुंच जा रहा है, इसे रोकने का एक मात्र उपाय है लीची के बागों में ओवर हेड स्प्रिंकर लगाया जाय अन्यथा अब गुणवत्ता युक्त लीची की खेती कर पाना बहुत मुश्किल है.
8. जैविक कारक और परागण
- कीट और परागणकर्ता: फूल आने के दौरान मधुमक्खियां और अन्य परागणकर्ता आवश्यक होते हैं. इनके अभाव में उत्पादन कम हो सकता है.
- रोग और कीट प्रबंधन: फूल आने के समय पाउडरी मिल्ड्यू और अन्य बीमारियों से बचाव आवश्यक है.
9. फूल आने के लिए आवश्यक कृषि प्रबंधन
सर्दियां आने से पूर्व लीची के पेड़ों की आवश्यक कटाई छंटाई और पोषण प्रबंधन से फूल आने में सुधार होता है. पुष्पन से पहले बगीचों की नियमित निगरानी और कीट-रोग नियंत्रण महत्वपूर्ण है.
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