वर्षा जल संचयन एक तकनीक है जिसका उपयोग भविष्य में इस्तेमाल करने के उद्देश्य (जैसे कृषि आदि) के लिये अलग-अलग संसाधनों के विभिन्न माध्यमों के इस्तेमाल के द्वारा बारिश के पानी को बचाकर रखने और इकट्ठा करने की एक प्रक्रिया है। बारिश के पानी को प्राकृतिक जलाशय या कृत्रिम टैंको में एकत्रित किया जा सकता है। सतह के लबालब भर जाने के द्वारा खत्म होने से पहले अधस्तल जलदायी चट्टानी पर्त में से सतह के जल का अंत:स्पदंन इकट्ठा करने का दूसरा तरीका है। छत के पानी का संचयन भी बारिश के पानी को इकट्ठा करने का एक तरीका है। कम बारिश वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ये विधियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। नियमित जल की आपूर्ति की कमी में भी वो बारिश के पानी से मौसमी फसल की खेती को जारी रख सकते हैं। जब कभी भी बारिश हो, बारिश के पानी को मानव निर्मित तालाब या टैंक में जमा किया जा सकता है
वर्षा जल संचयन उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जहां वर्षा जल धीरे-धीरे इकट्ठा और जमा हो जाता है, ताकि इसे कृषि, वाणिज्यिक या घरेलू प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जा सके। वर्षा जल संचयन प्रणाली के विकास का महत्व संक्षेप में नीचे दिया गया है:
एकत्रित वर्षा जल कृषि प्रायोजनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। सूखा की प्रवृत्ति से छुटकारा पाने के लिए पर्यावरण की मदद की जा सकती है
लाइव स्टॉक को खिला देने के लिए पानी की आवश्यकताएं पूरी की जा सकती हैं
पानी की बढ़ती मांग को संतुष्ट किया जा सकता है।
भूमिगत पानी की मात्रा बढ़ सकती है।
नाले, गटर, या किसी भी पानी के कारण बहने वाली पानी की बर्बादी को रोक दिया जा सकता है और पानी के किसी भी प्रकार के नुकसान को रोका जा सकता है।
सड़कों और सड़कों पर जल प्रवेश की जांच की जा सकती है और इलाकों में बाढ़ होने से बचा जा सकता है।
पानी की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है और मिट्टी की क्षरण की जांच की जा सकती है।
वर्षाजल संग्रहण क्या है?
वर्षा के बाद इस पानी को उत्पादक कार्यों के लिये उपयोग हेतु एकत्र करने की प्रक्रिया को वर्षाजल संग्रहण कहा जाता है। दूसरे शब्दों में आपकी छत पर गिर रहे वर्षाजल को सामान्य तरीके से एकत्र कर उसे शुद्ध बनाने के काम को वर्षाजल संग्रहण कहते हैं।
आवश्यकता
आज उत्तम गुणवत्ता वाले पानी की कमी चिन्ता का कारण बन चुकी है। यद्यपि शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता वाला वर्षाजल शीघ्र ही बह जाता है। परन्तु यदि इसे एकत्र किया जाये तो जलसंकट पर नियंत्रण पाया जा सकता है। वर्तमान जलसंकट को देखते हुए यही एक मात्र विकल्प बचा है जिसके द्वारा हम जल संकट का समाधान प्राप्त कर सकते हैं।
उपयुक्त स्थान
सामान्यतया वर्षाजल संग्रहण कहीं भी किया जा सकता है, परन्तु इसके लिये वे स्थल सर्वथा उपयुक्त होते हैं जहाँ पर जल का बहाव तेज होता है और वर्षाजल शीघ्रता से बह जाता है। इस प्रकार वर्षाजल संग्रहण निम्नलिखित स्थानों के लिये सर्वथा उपयुक्त होता है: 1. कम भूजल वाले स्थल, 2. दूषित भूजल वाले स्थल, 3. पर्वतीय/विषम जल वाले स्थल, 4. सूखा या बाढ़ प्रभावित स्थल, 5. प्रदूषित जल वाले स्थल, 6. कम जनसंख्या घनत्त्व वाले स्थल, 7. अधिक खनिज व खारा पानी वाले स्थल, एवं 8. महंगे पानी व विद्युत वाले स्थल,
उपयोग
सामान्यतः वर्षाजल शुद्ध जल होता है तथा इसका उपयोग सभी कार्याें के लिये किया जा सकता है तथापि निम्नलिखित कार्यों के लिये इसका उपयोग सर्वथा उपयुक्त है: 1. बर्तनों की साफ-सफाई, 2. नहाना व कपड़ा धोना, 3. शौच आदि कार्य, 4. सिंचाई के लिये, 5. मवेशियों के पीने, नहाने आदि के लिये, एवं 6. औद्योगिक कार्य, वर्षाजल की गुणवत्ता जाँचने के उपरान्त यदि वह उपयुक्त पाई जाती है तो इसका उपयोग पेयजल एवं खाना बनाने के लिये भी किया जा सकता है।
लाभ
विश्वव्यापी जलसंकट की समस्या का समाधान इसी विधि से सम्भव है। तभी हमारा वर्तमान व भविष्य सुरक्षित रहेगा। इस विधि का एक फायदा है कि जो पानी ज़मीन के अन्दर जाएगा उसका इस्तेमाल हमारा परिवार/समाज ही तो करेगा। रेनवाटर हार्वेस्टिंग में वर्षाजल को ही संचित किया जाता है तथा बाद में इसका इस्तेमाल भी किया जाता है। इस तकनीक के कई प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभ हैं जिनका विवरण निम्नवत है: 1. भूजल/सरकारी जलापूर्ति पर निर्भरता कम, 2. जहाँ जलस्रोत नहीं हैं वहाँ पर कृषि कार्य भी सम्भव, 3. जल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, 4. उच्च गुणवत्ता एवं रसायनमुक्त शुद्ध जल की प्राप्ति, 5. जलापूर्ति की न्यूनतम लागत, 6 बाढ़ के वेग पर नियंत्रण से मृदा अपरदन कम से कम, 7. सभी को समुचित मात्रा में जल उपलब्धता, 8. गिरते भूजल स्तर को ऊपर उठाया जा सकता है, 9. यह पानी के मुख्य स्रोत का काम करता है, 10. यह जल हर प्रकार के घातक लवणों आदि से मुक्त होता है। 11. घनी आबादी वाले क्षेत्रों में वर्षा का जल छतों से बहकर नालों में जाकर गन्दगी पैदा करता है जबकि इसको संग्रहीत करके इस समस्या से मुक्ति मिल सकती है। 12. ज़मीन के अन्दर संग्रहीत जल का वाष्पीकरण नहीं होता है अतः पानी के समाप्त होने की सम्भावना कम ही रहती है। 13. ज़मीन के अन्दर संचित पानी में लवणों की तीव्रता कम रहती है। 14. अन्य स्रोतों पर निर्भरता नहीं रहती है।
वर्षाजल संरक्षण के उपाय
वर्षाजल को संचित करने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं। इन उपायों के द्वारा ज़मीन के अन्दर गिरते जलस्तर को ऊपर उठाया जा सकता है।
1. सीधे ज़मीन के अन्दर : इस विधि के अन्तर्गत वर्षाजल को एक गड्ढे के माध्यम से सीधे भूजल भण्डार में उतार दिया जाता है।
2. खाई बनाकर रिचार्जिंग : इस विधि से बड़े संस्थान के परिसरों में बाउन्ड्री वाल के साथ-साथ बड़ी-बड़ी नालियाँ (रिचार्ज ट्रेंच) बनाकर पानी को ज़मीन के भीतर उतारा जाता है। यह पानी ज़मीन में नीचे चला जाता है और भूजल स्तर में सन्तुलन बनाए रखने में मदद करता है।
3. कुओं में पानी उतारना : वर्षाजल को मकानों के ऊपर की छतों से पाइप के द्वारा घर के या पास के किसी कुएँ में उतारा जाता है। इस ढंग से न केवल कुआॅं रिचार्ज होता है, बल्कि कुएँ से पानी ज़मीन के भीतर भी चला जाता है। यह पानी ज़मीन के अन्दर के भूजल स्तर को ऊपर उठाता है।
4. ट्यूबवेल में पानी उतारना : भवनों की छत पर बरसाती पानी को संचित करके एक पाइप के माध्यम से सीधे ट्यूबवेल में उतारा जाता है। इसमें छत से ट्यूबवेल को जोड़ने वाले पाइप के बीच फिल्टर लगाना आवश्यक हो जाता है। इससे ट्यूबवेल का जल हमेशा एक समान बना रहता है।
5. टैंक में जमा करना : भूजल भण्डार को रिचार्ज करने के अलावा बरसाती पानी को टैंक में जमा करके अपनी रोजमर्रा की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है। इस विधि से बरसाती पानी का लम्बे समय तक उपयोग किया जा सकता है।
अन्य आसान उपाय
वर्षा ऋतु में बरसाती पानी को हैण्डपम्प, बोरवेल या कुएँ के माध्यम से भूगर्भ में डाला जा सकता है। वर्षाजल संचित करने (वाटर हार्वेस्टिंग) के निम्नलिखित दो तरीके हैं: 1. छत के बरसाती पानी को गड्ढे या खाई के जरिए सीधे ज़मीन के भीतर उतारना, 2. छत के पानी को किसी टैंक में एकत्र करके सीधा उपयोग में लेना। एक हजार वर्ग फुट की छत वाले छोटे मकानों के लिये यह तरीका बहुत ही उपयुक्त है।
एक बरसाती मौसम में छोटी छत से लगभग एक लाख लीटर पानी ज़मीन के अन्दर उतारा जा सकता है। इसके लिये सबसे पहले ज़मीन में 3 से 5 फुट चौड़ा और 5 से 10 फुट गहरा गड्ढा बनाना होता है। छत से पानी एक पाइप के जरिए इस गड्ढे में उतारा जाता है। खुदाई के बाद इस गड्ढे में सबसे नीचे मोटे पत्थर (कंकड़), बीच में मध्यम आकार के पत्थर (रोड़ी) और सबसे ऊपर बारीक़ रेत या बजरी डाल दी जाती है। यह विधि पानी को छानने (फिल्टर करने) की सबसे आसान विधि है। यह सिस्टम फिल्टर का काम करता है।
जल कैसे बचाएँ
जितने जल की जरूरत हो केवल उतना ही इस्तेमाल करें।
2. पानी के इस्तेमाल के बाद नल को कस कर बंद कर दें।
3. ब्रश करते समय, बर्तन और कपड़े धोते समय नल को चलते रहने न दें। जरूरत के मुताबिक ही नल को खोलें।
4. नल लीक करने की स्थिति में मिस्त्री को तुरन्त बुलाकर ठीक कराएँ।
5. ऐसी वाशिंग मशीन का इस्तेमाल करें जिससे पानी की बचत हो।
6. बाल्टी या बोतल में पानी बचने की स्थिति में उसको फेंकने के बजाय पौधों में डाल दें।
7. फलों या सब्जियों को धोने के बाद उस पानी को क्यारियों व पौधों में डाल दें
लेखक :
*Savita Kumari, **Huma Naz and *Manju Mehta, *Seema Shah
*Department Of Family Resource Management, College Of Home Science, CCSHAU, Hisar
**Department of DAC, Ministry of Agriculture & Farmers Welfare, Govt. of India, Krishi Bhawan, New Delhi
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