हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या के लिये पोषक भोजन एवं रोजगार की उपलब्धता घटती जा रही है इस संदर्भ में मशरुम की खेती एवं रोजगार पोषण की दृष्टि से महत्तवपूर्ण है. जहां एक ओर मशरुम का प्रयोग सब्जी के रुप में, कुपोषण से बचाने एवं एक अतिरिक्त भोज्य सामग्री के रुप मे किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर बुन्देलखण्ड़ जैसे क्षेत्रों में इसकी खेती एक अतिरिक्त आय का स्त्रोत बन किसानों की आर्थिक दशा मे सुधार ला सकती है. भारत में मशरुम उत्पादन का इतिहास लगभग 50-55 वर्ष पुराना है परन्तु विगत लगभग 10-15 वर्षो के दौरान मशरुम उत्पादन में लगतार बृद्धि दर्ज की गयी है. व्यवसायिक रुप से चार प्रकार के मशरुम की खेती की जाती है. सफेद बटन मशरुम, ढ़ीगरी अथवा ओइस्टर मशरुम, पैड़ीस्ट्रा या धान पुआल मशरुम तथा दूधिया या गर्मी वाला मशरुम. चारों प्रकार के मशरुम को किसी भी हवादार कमरे या छाया दार झोपड़ी ( छप्पर ) में आसानी से उगाया जा सकता है.
बुन्देलखण्ड़ मे दलहन, तिलहन एवं गेहूं का अधिक क्षेत्र होने के कारण किसानों के घर में पर्याप्त मात्रा में बचे हुये फसल अवशेष या भूसा उपलब्ध होता है. जिसका मात्र 2-3 प्रतिशत हिस्सा जानवरों के खानें के काम में लाया जाता है. शेष खलियानो, घरों, बाड़ियां आदि में व्यर्थ रह जाता है या जला दिया जाता है. यदि इसका उपयोग मशरुम के लिये किया जाये तो प्रति व्यक्ति आय 3-4 गुना बढ़ सकती है. इस क्षेत्र में पानी की कमी होने के कारण यहां रोजगार की समस्या जटिल है. ऐसे में इसकी खेती ग्रामीण महिलाओं, बेरोजगार युवकों, कृषि मजदूर आदि के लिये रोजगार तथा अतिरिक्त आय का साधन बन सकता है. मशरुम पौष्टिक, रोगरोधक, सुपाच्य, स्वादिष्ट तथा विशेष महक के कारण आधुनिक युग का महत्वपूर्ण खाद्य आहार है तथा इसका आहार में प्रचलन लगातार बढ़ रहा है. इसका प्रयोग टॉनिक तथा औषधिय के रुप में भी होता है. बुन्देलखण्ड़ में बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं में कुपोषण की समस्या देखने को मिलती है. मशरुम एक ऐसा खाद्य है जिसके सेवन से सभी प्रकार के पौष्टिक तत्व मानव शरीर में पहुंचते हैं, जिससे मानव शरीर में कुपोषण का निवारण किया जा सकता है. इसमें प्रचूर मात्रा में प्रोटीन, फोलिक अम्ल, विटामिन्स तथा खनिज पदार्थ पाये जाते हैं. फोलिक अम्ल का एनीमिया को दूर करने में अपना औषधीय महत्व है. मशरुम में कार्बोहाइड्रेटस की मात्रा कम पायी जाती है, इस कारण इसका प्रयोग शारीरिक भार कम करने मे भी किया जाता है. कोलेस्ट्राल की मात्रा कम होने से शरीर में रक्तचाप, डायबीटीज, कैंसर जैसी बीमारियों से बचाने में यह सहायता करता है.
मशरुम का फलनकाय के मांसल होने तथा उस मे ग्लुटानिक अम्ल की उपस्थिति होने एवं स्पर्श करने पर गुदगुदा होने के कारण अधिकांश लोग इसे मांसाहार समझते हैं, जो कि गलत अवधारणा है. मशरुम एक शुद्ध शाकाहारी भोज्य आहार है.
बुन्देलखण्ड़ में व्यवसायिक रुप से चार प्रकार के मशरुम उगाये जा सकते हैं. जो निम्न प्रकार है.
1. ओइस्टर / ढ़िगरी मशरुम (प्लूरोटस स्पीसीज)
2. पैडीस्ट्रा / धान पुआल मशरुम (वोल्वेरिल्ला वोलवोसिया)
3. सफेद दूधिया मशरुम (केलोसाइबी इण्डिका)
4. सफेद बटन मशरुम (अगेरिकस बाइस्पोरस)
ओएस्टर की खेती प्रणाली एवं प्रबन्धन
प्लोरोटस प्रजातियों के मशरुम को ओएस्टर या ढ़िगरी मशरुम कहते हैं. इस मशरुम का महत्व विगत तीन दशक में अत्याधिक बढ़ गया है. क्योंकि इसके उत्पादन की विधि बहुत ही सरल है तथा उपज भी सर्वाधिक होती है. इसको उगाने के लिये अनुकूल तापक्रम 15-30० सेग्रे. तथा अपेक्षित आद्रता 70-90 प्रतिषत होना चाहिये. इसके लिये फसलों के बचे अवशष ही उचित माध्यम है. बुन्देलखण्ड़ में रोजगार की समस्याओं की दृष्टिगत रखते हुये ओएस्टर मशरुम की खेती वैज्ञानिकों की राय ग्रामीणों के उत्थान की एक सरल व सस्ती व्यवसाय है.
ओएस्टर मशरुम की वैज्ञानिक विधि
गेहूं का भूसा या धान के पुआल की कुट्टी या दलहन फसलों के भूसे को 16-18 घण्टे के लिये 7 मि.ली. कार्बेन्डाजीम तथा 125 मि.ली. फार्मेलिन प्रति 100 ली. पानी के घोल में भिगो देना चाहिये उसके उपरान्त पानी को निकाल कर फर्श या पालीथीन पर छाया मे फैलाकर 3-4 घण्टे तक सुखाना चाहिये. इसे दबाकर निचोड़ने के बाद भी पानी न गिरे तब इसे स्पानिंग हेतु प्रयोग मे लाते हैं इसे माध्यम या भूसे मे 2-3 प्रतिषत की दर बीजाई करते है. बीजाई या स्पानिंग दो विधियों से करते हैं. एक तो तह विधि एवं दूसरी छिटकवां विधि दोनो अच्छी है. स्पानिंग के बाद 5 किलो क्षमता वाली पॉलीथिन मे भरकर मुंह रस्सी से बांध कर थैली चारों तरफ 8-10 छिद्र कर दिया जाता है. जिससे उसमे उपस्थिति मशरुम कवक को ऑक्सीजन मिलती रहे. इसके बाद इन थैलियों को कमरे या झोपड़ी मे रख देते हैं. जहां पर 15-30० से.ग्रे. तापक्रम एवं उचित आपेक्षित आद्रता हो. लगभग 12 से 15 दिन के बाद कवक जाल फैल जाता है, तथा सम्पूर्ण थैला सफेद दिखाई पड़ने लगता है. इस अवस्था मे पालीथिन को हटा देना चाहिये उसके बाद थैलो को टॉग देना चाहिये और आवशयक नमी के लिये पानी का छिड़काव करते रहना जरुरी है. मशरुम कलिकाये 2 से 3 दिन मे बनने लगती हैं जो 4 से 5 दिन मे फलन होकर तोड़ने योग्य हो जाती है. ये फलन जब पंख के आकार के हो जायें तो इन्हें मरोड़ कर तोड़ लेना चाहिये. इसी तरह 6 से 7 दिन के बाद दूसरी तुड़ाई हो जाती है और एक लगाने पर 4 से 5 बार तुड़ाई हो जाती है. तुड़ाई के बाद मशरुम मे लगे भूसे को चाकू की सहायता से निकाल कर पैकेट मे पैक कर के बाजार मे बिक्री कर देना चाहिये या 4-5० से.ग्रे. तापक्रम पर 5 से 6 दिन तक भण्डारित कर देना चाहिये. ओएस्टर मशरुम की पैदावार लगभग सूखे भूसे की 70 से 80 प्रतिषत होती है, जोकि आय का बहुत अच्छा स्रोत बन सकता है.
पैडीस्ट्रा मशरुम की वैज्ञानिक खेती
इसको चायनीज मशरुम भी कहते हैं यह बरसात के मौसम मे प्राकृतिक रुप से पुराने धान के पुआल में जुलाई-अक्टूबर के मध्य निकलता है. यह मशरुम मट मैले रंग के रुप में दिखाई देते हैं. जो कि कुछ समय पश्चात हन्तेनुमा संरचना मे परिवर्वित हो जाते हैं. इसको उगाने के लिये 28 से 32 डिग्री से.ग्रे. तापक्रम एवं 80 प्रतिशत नमी की आवशयकता होती है.
धान के पुआल की कुट्टी के 5 फीटलम्बे एवं 1/2 फीट चौड़े बंडल तैयार करे तथा इन बंडलों को 14 से 16 घण्टों तक 2 प्रतिशत कैल्शियम कार्बोनेट युक्त साफ पानी में भिगाते हैं. तद्परान्त अधिक पानी को निकालकर इन बंड़लों के ऊपर गर्म पानी डालकर कुट्टी को निर्जीवीकरण किया जाता है. उपचारित बंडलों से पानी निकाल 2 घण्टे तक सुखाते हैं और उसके बाद 5 प्रतिशत की दर से स्पान को मिलाया जाता है. स्पान युक्त बंडलों को अच्छी तरह से पॉलीथिन से ढ़का जाता है 6 से 8 दिन तक रखते हैं तथा उस समय कमरे का तापमान 32 से 34 डिग्री से.ग्री बनाये रखा जाता है. कवक जाल फैल जाने के बाद पॉलीथिन को हटाया जाता है और नमी बनाये रखने के लिये पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये. 2 से 3 दिन मशरुम कलिकाये बनाना प्रारम्भ हो जाता है. जो कि 4 से 5 दिन के भीतर मशरुम तोड़ने जैसा हो जाता है.
मिल्की मशरुम या दूधिया मशरुम की खेती
दूधिया मशरुम अन्य मशरुमों की तरह इसको अधिक तापक्रम 35से 38 से.ग्रे. पर उगाया जा सकता है. इस को गर्मियों मे उगाते हैं जब अन्य सभी मशरुम को उगाने के लिये वातावरण अनुकूलित न हो. इस मशरुम की उत्पादन तकनीक सस्ती एवं सरल है तथा इसको उगाने के कम्पोस्ट की आवश्यकता नही पड़ती है. इसका ढ़िगरी मशरुम की तरह ही लगाते हैं तथा बटन मशरुम की तरह केसिंग करते हैं. यह बहुत आकर्षक एवं सफेद दूध के समान होता है इसलिये इसको दूध छत्ता के नाम से भी जानते है. इसमे सभी पोषक तत्वों के अतिरिक्त खनिज तत्वों की प्रचूर मात्रा उपलब्ध होती है.
विधि
100 लीटर पानी में 125 मि.ली. फार्मेलिन एवं 7 ग्राम बाविस्टिन दवा का घोल बना लेते हैं. इसी घोल में 15 से 20 कि.ग्रा. गेहूं का भूसा या पुआल या दलहन फसलों के भूसें को 10 से 12 घण्टे के लिये भिगोय तथा उस को पॉलीथिन से ढ़क देते हैं. उसके उपरान्त भूसे से अतिरिक्त पानी को निकाल देना चाहिये तथा निथोर गये भूसे को साफ जगह पर फर्ष या पॉलीथीन के उपर छाया में 2 से 3 घण्टे के लिये फैला देना चाहिये जिससे अतिरिक्त नमी हवा से सूख जाये. उस के बाद भीगे भूसे का बजन कर ले तथा 5.7 प्रतिशत की दर से छिटकवां या परत विधि सें 05 किलोग्राम की क्षमता वाली पालीथीन मे 05 किलो ग्राम स्पानिंग किया हुआ भूसा भर दें. पॉलीथीन का मुंह रबड़ से बांधे तथा 08 से 10 छिद्र पालीथीन के चारो तरफ कर दें. स्पनिंग किया हुआ बैग समान्तर तापक्रम वाले कमरे मे रख दें. जहां पर 30 डि.से. तापक्रम बना रहे 15 से 20 दिन मे फफूंदी कवक जाल सफेद रंग से पूरे भूसे को ढ़क लेता है. कवक जाल फैले हुये बैगों मे केसिंग (1:1 की दर गोबर की खाद एवं मिट्टी ) 3-4 से.मी. की परत से ढ़क देते हैं. केसिंग किये हुये बैग मे पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये 4-5 दिन बाद उस बैग मे मशरुम कलिकाये बनने लगती हैं जो कि एक सप्ताह मे पूर्णतया विकसित हो जाती हैं. पूर्ण विकसित मशरुम की तुड़ाई करें. पहली तुड़ाई के 8-10 दिन बाद पुनः दूधिया मशरुम की फसल तैयार हो जाती है. इसी तरह अगली 3-4 तुड़ाई कि जा सकती है. एक कुन्तल सूखे भूसे के अनुसार 60 से 70 किलो ग्राम तक मशरुम उत्पादन मिलता है.
बटन मशरुम की खेती
बटन मशरुम की खेती सबसे अधिक की जाती है. इस के बटन के आकार का होने के कारण ही बटन मशरुम कहते है. इसको उगाने मे कम्पोस्ट की आवश्यकता है जो कि साधारण या निर्जीवीकरण विधि से तैयार की जाती है.
कम्पोस्ट का मिश्रण
गेहूं का भूसा 600 किलोग्राम
चोकर 60 किलोग्राम
जिप्सम 30 किलोग्राम
यूरिया 06 किलोग्राम
सिंगल सुपर फासफेट 06 किलोग्राम
शीरा 09 लीटर
मैलाथियांन 100 ग्राम
कम्पोस्ट बनाने की विधि
साधारण विधि से कम्पोस्ट बनाने मे 28-30 दिन का समय लगता है. जिस स्थान पर कम्पोस्ट तैयार करनी है वहां पर 600 किलोग्राम भूसे का ढ़ेर बनाकर अच्छी तरह से भिगो दें. पानी से भिगोने के 15-18 घण्टे बाद उस मे चोकर, यूरिया, सिंगल सुपर फासफेट, एवं शीरा को अच्छी तरह मिला देना चाहिये. इसके उपरान्त उस मिश्रण का ढ़ेर बना देना चाहिये. इस ढ़ेर को प्रत्येक 3-4 दिन के अन्तराल पर उसको पलटना चाहिये और भूसा मे यदि नमी कम लगे तो पानी छिड़क कर गीला कर लेना चाहिये, तीसरी पलटाई पर जिप्सम की पूर्ण मात्रा को मिला देना चाहिये. इस तरह 6 पलटाई करने के बाद उसमे अमोनिया की गन्ध को जांच लेना चाहिये, तथा अंतिम 8वीं पलटाई पर मैलाथियांन पाउडर को मिला देना चाहिये जिसमें उसमे उत्पन्न कीड़ों को मार सके. तैयार कम्पोस्ट हल्की काली रंग की होती है.
बटन मशरुम उगाने की विधि
तैयार कम्पोस्ट मे 0.75 प्रतिषत की दर से स्पान की मात्रा छिटकवां विधि से मिला देना चाहिये. स्पानिंग किये हुये कम्पोस्ट को 05 किलोग्राम की मात्रा वाले बैंग मे 4 किलोग्राम स्पानिंग कम्पोस्ट भरना चाहिये उसके उपरान्त पालीथीन बैग का मुंह अखबार से ढ़क कर समान्तर 24 से.ग्रे. तापक्रम वाले कमरे में रख देना चाहिये. लगभग 12 से 15 दिन मे कवक स्पानिंग कम्पोस्ट को अच्छी तरह से ढ़क लेता है और गाढ़े रंग का कम्पोस्ट हल्के भूरे रंग में बदल जाता है. उसके भाग उपचारित केंसिग पदार्थ (गोबर की खाद एवं मिट्टी 1:1) को अखबार कागज की परत को उपर से हटाकर 3-4 से.मी. तक परत बिछा देनी चाहिये. उत्पादन वाले कमरे मे उपयुक्त आद्रता लगभग 85 प्रतिषत तथा तापक्रम 17 से 20 से.ग्रे. बनाये रखना आवशयक है. इसके दिन मे दो बार पानी का छिड़काव करें तथा फार्मेलिन से साप्ताहिक धुलाई करते रहना चाहियें. लगभग 10 से 12 दिन बाद बैग मे केसिंग परत के उपर मशरुम की कलिकाये निकलना शुरु हो जाता है तथा यही कलिकाये फलन का रुप 4-5 दिन मे ले लेती है. और बटन आकार के हो जाने पर तुड़ाई कर लेते हैं. इसी तरह जहां से मशरुम निकला हो उस गड्ढे को केसिंग से भर पानी का छिड़काव करना चाहिये लगभग 8-10 दिन बाद दूसरी तुड़ाई के लिये मशरुम तैयार हो जायेगा. लगभग एक बार मे खेती करने के समय में 3 से 4 तुड़ाई हो जाती है. सफेद बटन मशरुम का उत्पादन लगभग 10 से 15 किलोग्राम प्रति कुन्तल कम्पोस्ट के अनुसार होता है.
बटन मशरुम उगाने से आय
बटन मशरुम से सभी वर्ग के किसानो को अतरिक्त शुद्ध लाभ निम्न प्रकार से हो सकता है:
बटन मशरुम उगाने से शुद्ध लाभ
उत्पादक खाद क्विंटल कुल पैदावार,कि.ग्रा. लाभ*, रू
सीमांत (10 x 10’x 10’) 10 150 6000
लघु 50 750 3000
मध्यम 100 1500 60000
*60 दिन की फसल अवधि तथा 2 फसल चक्र से
मशरुम की खेती में ध्यान देने योग्य बातें :
1. मशरुम की खेती मे उपयोग में लाया जाने वाला फसल अवशेष सड़ा नही होना चाहिये तथा बनायी गयी कम्पोस्ट में अमोनिया की गन्ध नहीं आनी चाहिये.
2. स्पान सदैव, शुद्ध एवं ताजा होना चाहिये एवं विश्वसनिय स्रोत से ही लेनी चाहिये.
3. स्पानिंग के समय भूसा या कम्पोस्ट न तो गीला और न तो सूखा होना चाहिये.
4. मशरुम की खेती करने वाले उत्पादक को मशरुम की खेती के बारे में उचित जानकारी होनी चाहिये.
5. इसको उगाने वाले कमरे में उचित आद्रता एवं तापक्रम बनाए रखना चाहिये.
6. दूसरे सूक्ष्मजीवों को हटाने के लिये फार्मेलिन से सफाई कराते रहना चाहिये.
7. मशरुम मे लगने वाली मक्खियों को नियंत्रित करने के लिये मैलाथियान या न्यूयान का घोल बनाकर कमरे के फर्श और दीवारों पर छिड़कना चाहिये.
8. बाजार मे बिक्री की सुविधा के अनुसार मशरुम के प्रकार का चयन करना चाहिये.
लेखक:
मीनाक्षी आर्य, वैभव सिंह, अनीता पुयाम, अंशुमान सिंह, उपज्ञा साह एवं शैलजा पुनेठा
रानी लक्ष्मी बाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी
Email : [email protected]
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