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केले के सड़ने की बीमारी को ऐसे करें प्रबंधित, यहां जानें पूरी विधि व अन्य जानकारी

अगर आप केले की फसल से अच्छी पैदावार पाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको केला के सड़ने की बीमारी के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए. ताकि आप उसे सही समय पर रोककर बाजार में अधिक पैदावार पा सकते हैं.

डॉ एस के सिंह
डॉ एस के सिंह
केले का ऐसे करें रोग से बचाव, साभार: कृषि जागरण
केले का ऐसे करें रोग से बचाव, साभार: कृषि जागरण

केला के फलों के सड़ने की बीमारी या सिगार ईण्ड रॉट (Cigar End Rot) तीन चार वर्ष पूर्व केला का एक कम महत्वपूर्ण रोग माना जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं. अब यह एक महत्वपूर्ण रोग के तौर पर उभर रहा है जिसका मुख्य कारण वातावरण में अत्यधिक नमी का होना है. यह रोग फलों के सिरे पर सूखे, भूरे से काले सड़े से दिखाई देता है. कवक की वृद्धि वास्तव में फूल आने की अवस्था से ही  शुरू हो जाती है और फलों के परिपक्व होने के समय में या उससे पहले भी दिखाई देते है. प्रभावित क्षेत्र भूरे रंग के कवक विकास से ढके होते हैं जो सिंगार के जले हुए सिरे पर राख की तरह दिखते हैं, जिससे सामान्य नाम होता है. भंडारण में या परिवहन के दौरान यह  रोग पूरे फल को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप "समीकरण" प्रक्रिया हो सकती है. फलों का आकार असामान्य होता है, उनकी सतह पर फफूंदी दिखाई देती है और त्वचा पर घाव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं. सिगार इंड रॉट केले के फलों का एक प्रमुख रोग है. यह मुख्य रूप से कवक ट्रेकिस्फेरा फ्रुक्टीजेना द्वारा और कभी-कभी वर्टिसिलियम थियोब्रोमे द्वारा भी होता है.

इस रोग का फैलाव हवा या बारिश के माध्यम से होता है. स्वस्थ ऊतकों पर कवक का हमला बरसात के दौरान केले में फूल आने की अवस्था में होता है. यह फूल के माध्यम से केले को संक्रमित करता है. वहां से यह बाद में फल के सिरे तक फैल जाता है और एक सूखी सड़ांध का कारण बनता है जो राख के समान होता है जो सिगार, जैसा दिखाई देता है,जिसकी वजह से इस रोग का नाम सिगार ईण्ड रॉट पड़ा.

इस रोग का जैविक नियंत्रण

इस रोग के रोगकारक कवक (फंगस) को नियंत्रित करने के लिए बेकिंग सोडा पर आधारित स्प्रे का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस स्प्रे को बनाने के लिए प्रति लीटर पानी में 25 मिलीलीटर तरल  साबुन के साथ 50 ग्राम बेकिंग सोडा को पानी में घोलकर घोल तैयार करते है. संक्रमण से बचाव के लिए इस मिश्रण को संक्रमित शाखाओं और आस-पास की शाखाओं पर स्प्रे करें. यह केला के फिंगर (उंगलियों) की सतह के पीएच स्तर को बढ़ाता है और कवक के विकास को रोकता है. कॉपर कवकनाशी यथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का स्प्रे भी प्रभावी हो सकते हैं. लेकिन छिड़काव के 10 दिन के बाद ही फलों की कटाई करनी चाहिए.

रासायनिक नियंत्रण

यदि संभव हो तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें. आमतौर पर यह रोग मामूली महत्व का होता है और इसे शायद ही कभी रासायनिक नियंत्रण की आवश्यकता होती है. लेकिन विगत तीन साल से इस रोग की उग्रता में भारी वृद्धि देखा जा रहा है क्योंकि अत्यधिक बरसात की वजह से वातावरण में भारी नमी है जो इस रोग के फैलाव के लिए अहम है. प्रभावित गुच्छों को एक बार मैन्कोजेब, ट्रायोफेनेट मिथाइल या मेटलैक्सिल @ 1ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है और बाद में प्लास्टिक के साथ कवर किया जा सकता है.

इस रोग से बचाव के उपाय

रोग रोधी किस्मों का प्रयोग करें. केला के बाग में उचित वातायन का प्रबंध करें. पौधों से पौधे एवं पंक्ति से पंक्ति के बीच उचित दूरी बनाए रखें. खेत के दौरान पौधों के ऊतकों को नुकसान से बचाएं. उपकरण और भंडारण सुविधाओं को पूरी तरह से साफ सुथरी रखें. बरसात के मौसम में केले के फलों को बचाने के लिए प्लास्टिक की आस्तीन का प्रयोग करें. केले के पत्तों की छँटाई करें. नमी को कम करने के लिए बाग में उचित वातायन का प्रबंध करें.

गुच्छा में फल लगने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद नीचे लगे नर पुष्प को काट कर हटा दें. सभी सुखी एवं रोग ग्रस्त पत्तियों को नियमित रूप से काट कर हटाते रहे, खासकर बरसात के मौसम में रोग से संक्रमित केला के फल (उंगलियों) को काट कर हटा देना चाहिए. संक्रमित पौधों के हिस्सों को जला दें या उन्हें खेतों में गाड़ दें. जहां केले की खेती नहीं होती है. केला को कभी भी 13 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर स्टोर नहीं करें.

English Summary: How to manage banana rot disease tip hindi Sigar End Rot banana latest news Published on: 21 May 2024, 12:15 IST

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