फलों की तुड़़ाई से पहले उनका गिरना पुराने समय से ही एक गंभीर समस्या बनी हुई है. बहुत सारे फल वृक्षों पर फल पकने से पहले ही तथा तुड़़ाई के पहले ही डंठल से ढीले होकर गिरने लगते हैं. इस प्रकार से ऐसे फल जो पूरी तरह पक नहीं पाते हैं या समय से पहले ही वृक्ष से गिर जाते हैं वे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तथा बाजार में उनका मूल्य भी कम मिलता है. इन्हीं कारणों की वजह से किसान भाई इस समस्या से बचने के लिए फलों को पूरी तरह पकने से पहले ही तोड़ लेते हैं जिसके कारण फलों का आकार छोटा रह जाता है तथा उनका रंग देखने में भी आकर्षित नहीं होते है जिससे उनका बाजार में अच्छा मूल्य प्राप्त नहीं हो पाती है.
फलों के गिरने के मुख्यतः 2 कारण होते है पहला आतंरिक जैसे कि हार्मोन संतुलन, रूपात्मक और अनुवांशिक) और दूसरा बाहरी कारण (सजीव तथा निर्जीव). फलों के गिरने का कारण प्राकृतिक, पर्यावरणीय तथा कीट हो सकते हैं. कुछ फलदार पेड़ों में फलों का गिरना अत्याधिक होता है जैसे कि सेब, आम, नीबू वर्गीय फल, आड़ू, बेल, अनार आदि. फलों का गिरना फलों के विकास के विभिन्न चरणों के दौरान हो सकता है जो कि फल बनाने से लेकर फल कि तुड़ाई तक हो सकता है. किसान भाइयों को फलों के गिरने से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए फलों के ना गिरने के उचित उपाय करने चाहिए जिससे वे आर्थिक नुकसान से बच सकें.
फलों के गिरने अथवा झड़ने के प्रकार
मुख्यतः फलों का झड़ना तीन प्रकार का होता है जो निम्नलिखित हैं-
1.फूल लगने के बाद फलों का झड़ना
फूल कि पंखुड़ियों के गिरने के बाद यह शुरू होता है तथा इनमे छोटे छोटे फल होते है जो दो से तीन सप्ताह तक पेड़ो पर टिकते हैं उसके बाद वे गिर जाते हैं. ये ऐसे फल होते है जो कि परागण में नहीं बन पाते है या जिन्हे शुक्राणु कोशिकाओं ने अंडॉशय में नहीं बनाया होता है. परागण कि कमी, अत्यधिक ठंढ या नम मौसम फलों के गिरने का प्रमुख कारण होते हैं.
2.जून ड्राप या जून फलों का झड़ना
इस प्रकार के फलों का झड़ना मुख्यतः सेब, नासपाती या कभी कभी चेरी आदि में मई माह के अंतिम सप्ताह या जून में देखने को मिलता है. इस प्रकार के फलों के गिरने का कारण यह होता है कि फलदार वृक्ष जिनमे ढेर सारे फल आ जाते है वे उसे संभल नहीं पाते हैं और जिसके कारण फल गिऱ जाते हैं.
3. तुड़ाई से पहले फलों का गिरना
इसमें पूरी तरह विकसित फल तुड़ाई के पहले ही गिर जाते हैं. इस प्रकार के फलों के गिरने का एक कारण हार्मोन तथा दूसरा कारण कीट होते हैं. जिसकी वजह से फल जब पकना शुरू होते हैं उस समय अत्यधिक मात्रा में एथिलीन नामक हॉर्मोन का उत्पादन होता है जो फल को नरम बनाते हैं और फल से लगे डंठल में विगलन परत का निर्माण करता है. एथिलीन प्रकिण्व (एंजाइम) के उत्पादन को बढ़ा देता है जो कोशिकाभित्ति को और जो गोंद कोशिकाभित्ति को विगलन क्षेत्र में बाँध कर रखता है उसे तोड़ देता है जिसकी वजह से फल वृक्ष से टूट कर गिर जाते हैं.
फल झड़ने के प्रमुख कारणः
1.परागण की कमी
विभिन्न तंत्रों के कारण स्वपरागण विफल हो सकता है तथा परागण की कमी, परागकर्ता की कमी या विपरीत पर्यावरण के कारण परपरागण विफल हो सकता है.
2.नमी
अत्यधिक तापमान और तेज हवा के चलने से पानी का अत्यधिक वाष्पीकरण होता है जिससे पेड़ों की पत्तियां मुरझा जाती है जो¨ फल गिरने का कारण बनती है.
3.पोषक तत्वों की कमी
फल लगने के समय फलों को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिसके कारण फलों के बीच आपस में स्पर्धा होती है. तब¨ फल संतुलित मात्रा में पोषक तत्व नहीं प्राप्त कर पाते हैं और वृक्षों से गिर जाते हैं.
4.बीज का विकास
बीज से निकलने वाले ओक्सीटोक्सिन पेड़ों से फलों को जोड़े रहने में सहायक होते हैं. परागण कम या नहीं होने पर बीज सही से बन नहीं पाते या बीज का सही विकास नहीं हो पता है इन दोनों ही अवस्थाओं में फल अधिक मात्रा वृक्षों से में गिरते हैं.
5.कीट तथा बीमारियां
फलदार वृक्षों में अनेक प्रकार के कीट फलन को प्रभावित करते है. कीट के प्रकोप के कारण भी फलों के गिरने की समस्या में वृद्धि होती है.
फलों को झड़ने से बचाने का प्रबंधन
वायु अवरोधक
तेज हवा की गति से फलों और शाखाओं को यांत्रिक नुकसान होता है. गर्म तथा ठंडी हवा से बचाने के लिए एक सुरक्षात्मक बाधा प्रदान करने के लिए फलों के बागीचे के चारों तरफ तेजी से बढ़ने वाले और घने पेड़ों की सहायता से वायु अवरोधक या विंड ब्रेक लगाए जाने चाहिए.
नमी प्रबंधन
फलों लगने तथा विकास के समय नमी में कमी के कारण, अधिकांश फसलों में अधिक फलों के झड़ने का कारण है. सिंचित प्रणाली में, सिचाई को प्रभावी ढंग से करना चाहिए जिससे मिट्टी में नमी में कमी ना हो. पलवार (मल्चिंग) के द्वारा मिट्टी की नमी का संरक्षण और वाष्पीकरण को कम करने से जल उपयोग की दक्षता बढ़ती है. ऐसा करके हम फलों का झड़ना कम कर सकते हैं.
पोषण प्रबंधन
फलों को झड़ने से रोकने के लिए पोषण प्रबंधन इस तरह से करना चाहिए कि फलों के वृक्ष अपने पोषण संबंधी पूरक आहारों को जरुरत के समय मिलते रहे. खाद और उर्वरकों को जड़ों के पास देना चाहिए ताकि पेड़ उसे आसानी से उपयोग कर सके. सूक्ष्म पोषक तत्वों को तथा अन्य आवश्यक पोषक तत्वों के साथ पेड़ो की जड़ों के पास सही समय पर देना चाहिए. ऐसा करके हम फलों का झड़ना कम कर सकते हैं.
कीट तथा रोग प्रबंधन
विभिन्न कीटों और बीमारियों पर ध्यान रखना चाहिए और उनके हानिकारक प्रभावों को कम करने अथवा रोकने के लिए उपयुक्त नियंत्रण रणनीति अपनानी चाहिए. ऐसा करके हम फलों का झड़ना कम कर सकते हैं.
परागणकर्ता का उपयोग
जिन फसलों को प्रभावी परागण के लिए परागणकर्ता की आवश्यकता होती है, उनमे उचित मात्रा तथा दूरी के अनुपात में लगाया जाना चाहिए. जैसे की सेब की किस्म रॉयल स्वादिष्ट का उपयोग गोल्डन स्वादिष्ट में एक परागणकर्ता के रूप में किया जाता है. इससे परागण की समस्या नहीं उत्पन्न होगी और फलों का गिरना भी नियंत्रित होगा.
विकास नियामकों का उपयोग
फलों को गिरने से रोकने के लिए विभिन्न फसलों में कई प्रकार के विकास नियामकों का उचित मात्रा और समय पर प्रयोग किया जा सकता है. जैसे कि आम में एनएए या 2,4-डी 20-30 पीपीएम का इस्तेमाल अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह में (जब फल कंचो के आकार के हो जाये) करने से फलों का गिरना कम किया जा सकता है.
कुछ महत्वपूर्ण फलों में फल झड़ने से रोकने के उपाय
आम
इस फल में अधिकतम यानी 90-99 प्रतिशत तक फल झड़ना पाया गया है जो फल बनाने के 3-4 सप्ताह बाद शुरू हो जाता है. फल झड़ने के मुख्य कारण निम्नलिखित हो सकते हैं- परागण की कमी, परागण के समय प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां, परागण के समय बारिश, तेज हवा का बहना, ग्रन्थिरस असंतुलन, कुछ रोग जैसे कालवूणा (एन्थ्रेक्नोज) या कुछ कीट जैसे फुदका (हॉपर) और चूर्णी मृत्कुण (मिली बग) आदि का फलों में होना.
फलों को झड़ने से बचाने के लिए आम में लगने वाले कीटों तथा रग की समय पर रोकथाम करना अतिआवश्यक है. ग्रन्थिरस या हॉर्मोन का प्रयोग जैसे एनएए 25-40 पीपीएम या 2,4-डी 10-15 पीपीएम या सीसीसी 200 पीपीएम की दर से फल बनने के तुरंत बाद करने से फलों का झड़ना काफी कम किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त किसान भाई आम के फलों को गिरने से बचाने के लिए यूरिया के घोल का छिड़काव कर सकते हैं.
सेब
सेब की अधिकांश व्यावसायिक किस्म में फलों का गिरना तीन चक्रों में होता है- प्रारंभिक फलों का गिरना, जून फलों का गिरना तथा फसल-कटाई से पूर्व फलों का गिरना. प्रारंभिक फलों का गिरना प्राकृतिक माना जाता है और परागण की कमी तथा फलों में पोषकतत्वों के लिए स्पर्धा होने के कारण होता है. जून फलों के गिरने के कारणों में नमी में कमी तथा पर्यावरणीय परिस्थितियां का प्रभाव प्रमुख होता हैं. इन दो प्रकार के फलों के गिराने से अधिक आर्थिक नुकसान नहीं होता है. फसल-कटाई से पूर्व फलों के गिराने से गंभीर आर्थिक नुक्सान होता है क्योंकि ये पूरी तरह विकसित फल होते हैं जो बाजार में बेचे जाने के लिए तैयार होते है परंतु गिरने के कारण क्षतिग्रस्त होने पर उनकी कीमत कम हो जाती है. फसल-कटाई के 20-25 दिन पूर्व एनएए 15 पीपीएम की दर से छिड़काव करने से फलों को गिराने से नियंत्रित किया जा सकता है.
नीबू वर्गीय फल
नीबू वर्गीय फलों के अधिकतर व्यावसायिक किस्मों में फलों का गिरना एक गंभीर समस्या है. पहली बार मई और जून माह में फलों का गिरना प्रारम्भ होता है और इसका मुख्य कारण पेड़ों में पोषक तत्वों की कमी होती है. दूसरी बार अगस्त और सितम्बर माह में फल गिरते हैं जिसका मुख्य कारण एक फफूंद कोलेटोट्राइकम ग्लोस्पोर ओडेस होता है. तीसरी बार तुड़ाई से पहले दिसंबर और जनवरी में जब फल पक जाते हैं तब गिरते हैं और यह सबसे ज्यादा गंभीर होता है जिसका कारण एक फफूंद अल्टरनेरिया सिट्री होता है.
इससे बचने के लिए उचित मात्रा में खाद तथा उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए. 2,4-डी 10 पीपीएम के साथ ऐरिओफन्गिन 20 पीपीएम की दर से और जिंक फॉस्फेट 0.05 प्रतिशत का प्रयोग करने से फल झड़ने की समस्या कम की जा सकती है.
लेखक
1 डॉ0 अनिल कुमार, 1डॉ0 आशुतोष कुमार सिंह, एवं 3डॉ0 धर्मेन्द्र कुमार गौतम
2 उद्यान विज्ञान विभाग, सैम हिग्गिनबॉटम कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, प्रयागराज (उ0प्र0)
3 उद्यान विभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ (उ0प्र0)
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