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ग्लेडियोलस की खेती से कमाएं प्रति हेक्टेयर 10 लाख से भी ज्यादा

ग्लैडियोलस फूल अपनी सुन्दरता, डंठल में फूलों का एक-एक करके खिलना, विभिन्न आकार-प्रकार एवं रंगों तथा फूलदान मेंअधिक समय तक सही दशा में रहने के कारण मुख्य स्थान रहता है। व्यावसायिक दृष्टि से इसे कटे फूल उत्पादन हैतो उगाया जाता है, परन्तु उद्यान को सुन्दर बनाने के लिए क्यारियों एवं गमलों में भी इसे लगाया जाता है। कटे फूल को गुलदस्ता, मेज सज्जा एवं भीतरी सज्जा के लिए मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है।

ग्लैडियोलस फूल अपनी सुन्दरता, डंठल में फूलों का एक-एक करके खिलना, विभिन्न आकार-प्रकार एवं रंगों तथा फूलदान मेंअधिक समय तक सही दशा में रहने के कारण मुख्य स्थान रहता है। व्यावसायिक दृष्टि से इसे कटे फूल उत्पादन हैतो उगाया जाता है, परन्तु उद्यान को सुन्दर बनाने के लिए क्यारियों एवं गमलों में भी इसे लगाया जाता है। कटे फूल को गुलदस्ता, मेज सज्जा एवं भीतरी सज्जा के लिए मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है।

ग्लैडियोलस की मुख्य रूप से दो तरह की किस्में होती हैं, एक बड़े फूलों वाली तथा दूसरी छोटे फूलों वाली बटर फ्लाई बहुत से किस्मों में फूल के बीच का भाग जिसे ब्लाच कहते हैं। दूसरे रंग का होता है जिससे इसकी सुन्दरता बढ़ जाती है।

मुख्य किस्में

व्यावसायिक रूप से उत्पादन है तो –

फ्रेंडशिप व्हाइट, फेडशिप पिंक, वाटरमेलन पिंक, लिली आसकर, जैकसन, विस-विस, यूरोवीजन। भारत में विकसित प्रमुख किस्में –

आरती, अप्सरा, अग्नि रेखा, सपना, शोभा, सुचित्रा, मोहनी, मनोहर, मयूर, मुक्ता, मनीषा, मनहार।

ग्लैडियोलस का प्रवर्धन

ग्लैडियोलस का प्रवर्धन कन्द से होता है। कन्द लगभग 3-5 सेमी. व्यास का होना चाहिए। लडूनुमा आकार वाले कन्द चिपटे कन्द की अपेक्षा उत्तम पाया गया है। एक कन्द से कई छोटे-छोटे कन्द जिन्हें कारमेल कहते हैं, तैयार होते हैं। परन्तु ये इतने छोटे होते हैं जो कि रोपने योग्य नहीं रहते हैं। अत: इन्हें 2-3 बार रोपाई करनी पड़ती है उसके बाद ही सही आकार के कन्द प्राप्त हो पाते हैं।

कन्द रोपन का उपयुक्त समय सितम्बर एवं अक्टूबर माह है। खुदाई के बाद कन्द लगभग तीन माह तक सुषुप्तावस्था में रहते हैं। अतः सुषुप्तावस्था में इनकी रोपाई न करें अन्यथा इनका अंकुरण नहीं होगा। रोपाई करने के पहले भूरे रंग के बाहरी छिलके को हटाकर 0.2 प्रतिशत कैप्टान या 0.1 प्रतिशत बेनलेट के घोल में 30 मिनट तक उपचारित करने के बाद ही कन्दों की रोपाई करनी चाहिए। उत्तम होगा यदि कन्दों की अंकुरित कराके रोपाई करें। इसके लिए कन्द को अंधेरे एवं गर्म स्थान पर बालू भरे ट्रे में लगाकर रखना चाहिए। बालू को नम बनाये रखें तथा ट्रे को पॉलिथीन से ढँक दें। व्यावसायिक खेती हैतो कन्दों को 20-30 × 15-20 या 25 × 15 सेमी. की दूरी पर 5-10 सेमी. गहराई पर रोपाई करें। प्रदर्शनी हैतो स्पाइक तैयार करने के लिए बड़े आकार के कन्द (50-7.5 सेमी. व्यास के) को 30 × 20 सेमी. पर रोपना चाहिए। यदि कन्द की रोपाई 20-25 दिन के अन्तराल पर कई बार में की जायतो स्पाइक लगातार अधिक समय तक मिलती रहती है।

खाद एवं उर्वरक

ग्लैडियोलस की अच्छी ऊपज  प्राप्त करने हैतो प्रति वर्ग मीटर भूमि में 20-25 किग्रा. कम्पोस्ट, 15-30 ग्राम नाइट्रोजन, 10-15 ग्राम फॉस्फोरस व 15-20 ग्राम पोटाश देना चाहिए। कम्पोस्ट, फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की चौथाई मात्रा रोपाई के समय देनी चाहिए, जबकि शेष नाइट्रोजन की मात्रा को तीन बार में बराबर-बराबा मात्रा में प्रथम पौधे में 3-4 पत्तियाँ आने पर, दूसरी बार स्पाइक निकलते समय तथा अन्तिम बार जब फूल निकलना समाप्त हो जाय। अन्तिम बार नाइट्रोजन की मात्रा कन्दों की सही वृद्धि के लिए देते हैं।

अन्य क्रियाएँ

खेत को खरपतवार से मुक्त रखें साथ ही जड़ पर दो बार मिट्टी चढ़ायें एक तो तीन-चार पत्ती की अवस्था पर दूसरे बार जब स्पाइक निकलने लगे एवं आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। मुख्य रूप से स्पाइक निकलने लगे एवं आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। मुख्य रूप से स्पाइक निकलते समय नमी की कमी नहीं होनी चाहिए।

पौधे को सहारा देना

जब स्पाइक (फूल की ठंढल) निकलने लगे उसी समय बांस की फट्टी का पौधों से स्पाइक न तो टेढ़ी-मेढ़ी हो सके न ही जमीन की तरफ झुके या गिरे।

स्पाइक की कटाई

सबसे नीचे वाले फूल का रंग दिखाई देते ही तेज चाकू या सिकैटियर की मदद से स्पाइक काटने के फूलदान को साफ करने के बाद उसमें स्वच्छ पानी भरकर स्पाइक को सजायें। दूसरे दिन से रोजाना या एक दिन के अन्तराल पर स्पाइक को नीचे से 1.5 सेमी. काटते रहें तथा पानी बदलकर साफ पानी भर दें अनुकूल दशा में स्पाइक के सभी फूल धीरे-धीरे खिल जाते हैं तथा कम से कम एक हफ्ते तक आसानी से फूलदान में रखा जा सकता है।

कन्द की खुदाई एवं भंडारण

यदि पौधे से स्पाइक को नहीं काटा जाता है और उसे क्यारी या गमले में ही सुन्दरता प्रदान करने के लिए पूर्णतः खिलने देते हैं तो यह ध्यान रखें कि पौधे पर बीज न बनने पाये अन्यथा कन्द को नुकसान पहुँचता है। जब पती पीले या भूरे रंग की हो जाय एवं सूखना शुरू करे तो कन्द एवं कारमेल को खुरपी की सहायता से खुदाई करें। कन्द को खोदने के बाद 02 प्रतिशत बाविस्टीन/कैप्टान या 0.1 प्रतिशत बेनलेट घोल से 30 मिनट तक उपचारित कर की छायादार स्थान पर 2-3 सप्ताह तक सुखाकर लकड़ी की पेटी या जूट के बैग में रखकर हवादार एवं ठंड कमरे में भंडारित करें। यदि कोल्ड स्टोरेज में 400 सेमी. पर भंडारित किया जाय तो यह सर्वोत्तम होगा ।

कीड़े एवं बीमारियाँ

ग्लैडियोलस को थ्रिप्स  कीड़ा से ज्यादा नुकसान होता है इसके लिए 0.3 प्रतिशत सेविन या 0.1 प्रतिशत मालाथियान या 0.15 प्रतिशत नुवाक्रान के घोल का छिड़काव 15-20 दिन के अन्तराल पर करें। भंडारण के समय भी कभी-कभी ये कीड़े कन्द को क्षति पहुँचाते हैं। अत: भंडारण के समय भी आवश्यकतानुसार 2-3 छिड़काव करना लाभदायक है।

ग्लैडियोलस में मुख्य रूप से भूमि जनित दो बीमारियाँ स्ट्रोमेटोनिया ग्लैडियोली और फ्यूजेरियम आम्सीस्पोरम का साधारणतया प्रभाव पाया जाता है। इसके प्रभाव के कन्द सड़ जाते हैं। इस बीमारी से बचाव के लिए बीमारी रहित केन्द्र का चुनाव करें तथा कन्द को रोपने के पहले 0.2 प्रतिशत कैप्टान से या गर्म पानी में 48° से. 30 मीटर तक उपचारित करना चाहिए। खड़ी फसल में बीमारी से बचाव हैतो 0.25 प्रतिशत इण्डोफिल एम-45 का छिड़काव करें।

ऊपज

उचित फसल प्रबंधन से एक हैक्टेयर क्षेत्रफल से लगभग 2-2.5 लाख पुष्प डंठल प्राप्त की जा सकती है ।

English Summary: Earn more than one million per hectare from the cultivation of gladioles Published on: 23 May 2018, 05:20 IST

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