अब देश में ऐसा बहुधा देखने को मिल रहा है की आज के युवा उच्च शिक्षा लेने के बावजूद भी एक मामूली प्राइवेट नौकरी के करने लिए स्वरोजगार का रास्ता भूल जा रहे है. इस बात को जानते हुए की निजी क्षेत्र की नौकरियों में उनका शारीरिक और मानशिक शोषण होता है. तब भी वे स्वरोजगार को नहीं अपनाते है और न ही इसके लिए कोशिश करते है. वही हरियाणा के फतेहाबाद जिले के रत्ताखेड़ा गांव के निवासी राहुल भांभू ने फिजिक्स से एमएससी करने के बाद मशरूम की खेती को अपनाते हुए स्वरोजगार की राहको अपनाया है.
लगभग 11 लाख रूपये की पूंजी से राहुल ने 1 एकड़ में मशरूम की खेती करना चालू किया. इससे उनके रोजगार के साथ ही गांव के अन्य लोगों को भी रोजगार मिला. युवा किसान राहुल बताते है की हिसार से फिजिक्स से एमएससी करने के बाद उन्होने तीन वर्ष तक कोचिंग सेंटर चलाया. उसके बाद उन्होने मशरूम की खेती करने को सोचा. सबसे पहले उन्होने करनाल से इसकी खेती करने के लिए ट्रेनिग लिया. तत्पश्चात गर्मियों के मौसम से इसकी खेती की तैयारी करनी शुरू कर दिया. ढांचा, मजदूरी व भूसा इत्यादी पर तकरीबन 11 लाख रुपये खर्च हुए. अब इससे हर रोज अच्छा उत्पादन हो रहा है. राहुल का मानना है की साल के अंत तक इसका पूरा खर्च वहन हो जायेगा.
राहुल के मुताबिक, इन दिनों बाज़ारों में मशरूम की मांग लगातार बढ़ रही है इसी को देखकर हमने इसकी खेती करनी शुरू की है. इसमें लागत ज्यादा होने के वजह से मुझे एक समय के लिए लगा की इसमें रिस्क है, लेकिन बाद में मैंने खेती करनी चालू कर दी. इस समय बाजार में मशरूम 70-90 रूपये किलो तक बिक रहा है ऐसे में इसका भाव भी अच्छा मिल जाता है. मशरूम की खेती में जल के दोहन बहुत कम है और पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिल रही है. मजदूरी के अलावा अन्य खर्च भी कम है. ऐसे में मुनाफ़ा ठीक-ठाक हो रही हैं.
किसानों को दूसरा विकल्प तलाशने की ज़रूरत
कृषि विज्ञान केंन्द्र ढाणी बिकानेरी का मानना है कि अब किसानों को खेती के आलावा दूसरे विकल्प तलाशने की जरूरत है. प्रगतिशील किसान मशरूम, बागवानी, सब्जी उत्पादन, शहद पालन करने लगे हैं. इससे आय में बहुत अधिक बढ़ोतरी होती है. इसके लिए किसानों को खुद जागरूक होना होगा.
स्रोत ; डा. सरदूल मान, समन्वयक, कृषि विज्ञान केंद्र, ढाणी बिकानेरी
प्रभाकर मिश्र, कृषि जागरण
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