अरबी को घुईया, कुचई आदि नामों से भी जाना जाता है। इसकी खेती मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है लेकिन सिंचाई सुविधा होने पर गर्मी में भी की जाती है। इसकी सब्जी आलू की तरह बनाई जाती है तथा पत्तियों की भाजी और पकौड़े बनाए जाते हैं उबालने पर इसकी खुजलाहट समाप्त हो जाती है। कंद में प्रमुख रूप से स्टार्च होता है। अरबी की पत्तियों में विटामिन ‘ए‘ तथा कैल्शियम, फॉस्फोरस और आयरन भी पाया जाता है।
जलवायु:-
अरबी की फसल को गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। यह ग्रीष्म और वर्षा दोनों मौसम में उगाई जाती है। उत्तरी भारत की जलवायु अरबी की खेती के लिए उपयुक्त है वैसे इसे उष्ण और उपोष्ण देशों में उगाया जा सकता है।
भूमि एवं भूमि की तैयारी:-
अरबी के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास युक्त रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। खेत की तैयारी के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से और तीन-चार बार देशी हल से जुताई करनी चाहिए। खेत की तैयारी के समय 250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति हैक्टेयर के हिसाब से अरबी बुवाई के 15-20 दिन पहले खेत में मिला देनी चाहिए।
उर्वरक:-
मृदा जांच के उपरांत ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए नाइट्रोजन 100 कि.ग्रा., फॉस्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 80 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर प्रयोग करना चाहिए और नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फॉस्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए। शेष नाइट्रोजन को दो बराबर भागों मे बांटकर बुवाई के 35-40 दिन और 70 दिनों बाद खड़ी फसल में टॉप-ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।
बोने का समय:-
खरीफ जून से 15 जुलाई और जायद फरवरी मार्च में बुवाई की जाती है।
बीज की मात्रा एवं बीजोपचार:-
बुवाई के लिए अंकुरित कंद 08 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की जरूरत पड़ती है। बोने से पहले कंदों को कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत $ मेन्कोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 01 ग्राम/लिटर पानी के घोल में 10 मिनट डुबोकर उपचारित कर बुवाई करना चाहिए।
बोने की विधि:-
समतल क्यारियों में:- कतारों की आपसी दूरी 45 सें.मी. तथा पौधें की दूरी 30 सें.मी. और कंदों की 05 सें.मी. की गहराई पर बुवाई करनी चाहिए।
मेड़ बनाकर:- 45 सें.मी. की दूरी पर मेड़ बनाकर दोनों किनारों पर 30 सें.मी. की दूरी पर कंदों की बुवाई करें। बुवाई के बाद कंद को मिट्टी से अच्छी तरह ढंक देना चाहिए।
उन्नत किस्में:-
अरबी की किस्मों में पंचमुखी, सफेद गौरिया, सहस्रमुखी, सी-9, बापटला सलेक्शन प्रमुख हैं।
जलवायु:-
खरीफ में अरबी की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। अच्छे उत्पादन हेतु वर्षांत न होने पर 10-12 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
निराई-गुड़ाई:-
खरपतवारों को नष्ट करने के लिए कम से कम दो बार निदाइ-गुड़ाई करें तथा अच्छी पैदावार के लिए दो बार हल्की गुड़ाई जरूर करें। पहली गुड़ाई बुवाई के 40 दिन बाद व दूसरी 60 दिन के बाद करें। फसल में एक बार मिट्टी चढ़ा दें। यदि तने अधिक मात्रा में निकल रहे हो, तो एक या दो मुख्य तनों को छोड़कर शेष सब की छंटाई कर देनी चाहिए।
झुलसा रोग पौध संरक्षण:-
झुलसा रोग से पत्तियों में काले-काले धब्बे हो जाते हैं। बाद में पत्तियां गलकर गिरने लगती हैं। इसका उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसकी रोकथाम के लिए 15-20 दिन के अंतर से डाईथेन एम-45, 2.5 ग्राम/लिटर या कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत$मेन्कोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 2 ग्राम/लिटर पानी के घोल का छिड़काव करते रहें। साथ ही फसल चक्र अपनाएं।
सूंडी व मक्खी कीट:-
अरबी की पत्तियों को खाने वाले कीड़ों सूंडी व मक्खी कीड़ों द्वारा हानि होती है क्योंकि यह कीडे़ नई पत्तियों को खा जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए प्रोफेनोफ़्रांस 50 ई.सी.$साइपरमेथ्रिन 3 प्रतिशत ई.सी. 01 मि.लि./लिटर या ट्रायजोफास 40 प्रतिशत ई.सी. 2 मि.लि./लिटर पानी का 500 लि/है. घोल बनाकर छिड़काव करें।
खुदाई एवं उपज:-
अरबी की खुदाई कंदों के आकार, प्रजाति, जलवायु और भूमि की उर्वराशक्ति पर निर्भर करती है। साधारणतः बुवाई के 130-140 दिन बाद जब पत्तियां सूख जाती हैं तब खुदाई करनी चाहिए। उपज उन्नत तकनीक का खेती में समावेश करने पर 300-400 क्विंटल/हैक्टेयर तक उपज प्राप्त कर सकते हैं।
भण्डारण:-
अरबी के कंदों को हवादार कमरे में फैलाकर रखें। जहां गर्मी न हो। इसे कुछ दिनों के अंतराल में पलटते रहना चाहिए। सड़े हुए कंदों को निकालते रहें और बाजार मूल्य अच्छा मिलने पर शीघ्र बिक्री कर दें।
बी.एस. किरार, आर.के.जायसवाल एवं ’ रवि यादव
कृषि विज्ञान केन्द्र, पन्ना
(म.प्र.) ’पी.एच.डी. छात्र कृषि महाविद्यालय, ग्वालियर
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