भारत राजा-महाराजाओं का देश रहा है. आज भी देश के कई हिस्सों में राज घराने मौजूद है. इन राजा-महाराजाओं के जमाने में आम आदमी के लिए सवारी की बड़ी समस्या थी, उस समय राजघराने ही घोड़ो से चलते थे. जैसे-जैसे ट्रेंड बदला वैसे ही आदते और तौर तरीके भी बदलते चले गए. जब देश में गाड़ियों का प्रचलन बढ़ा तो सवारी की समस्या भी कम होती चली गयी. जो राजघराने घोड़ो का इस्तेमाल करते थे वो भी अब गाड़ियों से चलने लगे थे. लेकिन घोड़ो के प्रति लगाव कम नही हुआ. बेहतर नस्ल वाले घोड़ो को फौज में इस्तेमाल किया जाने लगा. जो लोग घोड़ा पालन करते है. वो अच्छी कमाई करते है. घोड़ा पालन करने वाले लोग इनका वाणिज्यिक इस्तेमाल करने लगे. यानी बेहतरीन नस्ल वाले घोड़ो को पालकर उनको घुडसवारी के शौक़ीन, खेल में इस्तेमाल करने के लिए बेचते है.
घुड़सवारी एक अन्तराष्ट्रीय खेल का दर्जा प्राप्त है. भारत में घोड़ो का पालन अधिकतर राजस्थान, पंजाब, गुजरात और मणिपुर में इनका पालन किया जाता है. इनकी कई नसले भारत में पायी जाती. लेकिन मारवाड़ी, काठियावाडी घोड़े को अव्वल दर्जा प्राप्त है. मारवाड़ी घोड़े का इस्तेमाल राजाओं के ज़माने में युद्ध के लिए किया जाता था. इसलिए कहा जाता है कि इन घोड़ो के शरीर में राजघराने का लहू दौडता है. मारवाड़ी नस्ल के घोड़े राजस्थान के मारवाड़ में पाए जाते है. यही इनका जन्मस्थल भी है. इनकी लम्बाई 130 से 140 सेमी. और ऊँचाई 152 से 160 सेमी. होती है. 22 सेमी. के चौड़े फेस वाले ये घोड़े काफी ताकतवर होते है. इनका इस्तेमाल ज्यादातर खेल प्रतियोगिता, सेना और राजघराने करते हैं. इस नस्ल के घोड़ो कि कीमत बहुत अधिक होती है. एक घोड़ा कई लाख की किमत में बेचा जाता है. यह भारत में सबसे अव्वल दर्जे का घोड़ा है.
कठियावाड़ी घोड़े की नस्ल भी काफी अच्छी मानी जाती है. इस घोड़े की जन्मस्थली गुजरात का सौराष्ट्र इलाका है. यह गुजरात के राजकोट, अमरेली और जूनागढ़ जिलो में पाया जाता है. इसका रंग ग्रे और गर्दन लम्बी होती है. यह गोदा 147 सेमी. ऊँचा होता है. स्पीती घोड़ो को पहाड़ी इलाको के लिए बेहतर माना जाता है. ये ज्यादतर हिमाचल प्रदेश में पाए जाते है. इनकी ऊँचाई अधिकतर 127 सेमी. होती है. इस नस्ल के घोड़े पहाड़ी इलाकों में बेहतरीन काम करते है.
ज़नस्कारी नस्ल के घोड़े भारत के लेह में पाए जाते हैं. यह घोड़े लेह और लद्दाख जैसे क्षेत्रों में बहुत पाए जाते हैं. इन घोड़ो का इस्तेमाल अधिकतर बोझा धोने के लिए किया जाता है. इस नस्ल के घोड़ो की संख्या काफी कम है. इनकी नस्ल को बढाने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं.
मणिपुरी पोनी घोड़े की नस्ल को काफी अच्छा माना जाता है. इस नस्ल के घोड़े काफी ताकतवर और फुर्तीले होते हैं. इस नस्ल के घोड़ो का इस्तेमाल अधिकतर युद्ध और खेल के लिए किया जाता है. यह घोड़ा 14 अलग-अलग रंगों में पाया जाता है.
भूटिया नस्ल के घोड़े ज्यादातर सिक्किम और दार्जिलिंग में पाए जाते हैं. इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से दौड़ और सामान ढोने के लिए किया जाता है, ये नस्ल के घोड़े ज्यादातर नार्थ ईस्ट में मिलते हैं.
इन सब नस्लों में मारवाड़ी, काठियावाडी और मणिपुरी नस्ल के घोड़े सबसे बेहतर है. इसलिए इनका वाणिज्यिक पालन किया जा रहा है. जिससे कि घोड़ापालको को इनकी ऊँची कीमत मिलती है. इसके अलावा भारतीय घोड़ो का निर्यात भी किया जाता है.
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