भारत में भैंसों की कुल आबादी 10.87 करोड़ है (19वीं पशुधन जनगणना) जोकि कुल पशुधन का 21.23 प्रतिशत है. दुनिया की आधे से अधिक भैंसों की आबादी भारत में ही पाई जाती है. भैंस भारत में कुल दूध उत्पादन में आधा से ज्यादा योगदान देतीं हैं और इस प्रकार से भारतीय कृषि एव पशुपालन अर्थव्यवस्था ढांचे का प्रमुख हिस्सा हैं. भारत में कुल भैंसों की आबादी में से ज्यादातर छोटे और सीमांत किसानों द्वारा ही पाली जाती है और उनको मुख्यत बाड़े में ही रखा जाता है. भैसें गायों से प्रजनन के कई महत्वपूर्ण तथ्यों में अलग होती हैं जो उनको प्रजनन संबंधी कई बिमारियों के प्रति अतिसंवेदनशील बनाती है और उनकी प्रजनन क्षमता को कमतर करती हैं. किसानों को भारी आर्थिक नुकसान पहुचाने वाली बिमारियों में से एक प्रसव से पहले गर्भवती भैंसों की फूल/पिछा दिखाने की समस्या है जिसमे गाभिन पशु जोर लगाता है और उसकी योनि एव गर्भाशय ग्रीवा का पिछला हिस्सा शरीर से बाहर आ जाता है.
फूल दिखाने की यह समस्या प्रिमिपेरस (पहली बार बच्चा देने वाले) पशुओं की तुलना में एक से अधिक बार बच्चे दे चुके पशुओं में अधिक पाई जाती है. यह मुख्य रूप से गर्भावस्था के आखिरी 2-3 महीने में ही होती है, लेकिन 5-6 महीने की गर्भवती भैंसों में भी यह बीमारी देखी गयी है. गर्भावस्था के दौरान फूल दिखाने से अन्य बिमारियां जैसेकि, प्रसव के बाद बच्चेदानी का संक्रमण, जेर का रुक जाना, प्रसव के बाद फूल दिखाना, कम दूध उत्पादन इत्यादि होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए गर्भावस्था के दौरान भैंसों की पोषण और प्रबंधन संबंधी देखभाल अत्यंत जरूरी है जिससे पशु का इस रोग से बचाव किया जा सकता है और प्रजनन संबंधी अन्य बिमारियों को भी रोका जा सकता है.
भैंसों में प्रसव से पहले फूल दिखाने के कारण
भैंसों में फूल दिखाने का सही कारण अभी तक पता नही चल पाया है लेकिन कई कारक इस बीमारी से जुड़े होते हैं जो पशुओं को इसके प्रति संवेदनशील बनाते हैं. फूल दिखाने की समस्या के लिए उत्तरदायी कुछ कारक निम्नलिखित हैं:
एस्ट्रोजेन का उच्च स्तर
गर्भावस्था के 6.5 महीनों के बाद भैंसों में फूल दिखाने की संभावना अधिक होती है. गर्भावस्था के अंतिम समय में एस्ट्रोजेन के उच्च स्तर को भैंसों में फूल दिखाने का एक कारण माना जाता है. एस्ट्रोजेन का यह बढ़ा स्तर पुठे और योनिद्वार के ढीला होने के लिए जिम्मेदार होता है जिससे योनि और गर्भाशय ग्रीवा का पिछला हिस्सा शरीर से बाहर आ जाता है. पशुओं को खिलाये जाने वाले कुछ हरे-चारे जैसेकि बरसीम, सड़े हुए जौ और मक्का इत्यादि में भी एस्ट्रोजेन का अधिक स्तर पाया जाता है तथा गर्भावस्था के अंतिम दिनों में इनके अधिक खिलाने से पशुओं में फूल दिखाने का डर बना रहता है.
कैल्शियम का निम्न स्तर
पशुओं के आहार में कैल्शियम का निम्न स्तर भी फूल दिखाने के समस्या से जुड़ा हुआ है क्योंकि कैल्शियम का निम्न स्तर गर्भवती पशुओं में प्रजनन अंगों के ढीला होने के लिए जिम्मेदार होता है. जब गाभिन पशु गोबर या पेशाब करने के लिए जोर लगाता है तो उसके साथ ही योनि और गर्भाशय ग्रीवा का पिछला हिस्सा शरीर से बाहर आ जाता है.
अंतर-पेट के दबाव में वृद्धि
अग्रिम गर्भावस्था में भ्रूण के बड़ा होने की वजह से पेट के अंदर दबाब बढ़ जाता है और इस बढ़े हुए दबाब के कारण ढीले जुड़े प्रजनन अंगों जैसेकि योनि और गर्भाशय ग्रीवा के पिछले हिस्से का बाहर निकलने का खतरा बढ़ जाता है.
वसा का अत्यधिक जमाव
भैंसों की कोख़ में भी वसा /चर्बी के अत्यधिक जमा होने की वजह से योनि के आस-पास दबाब बढ़ जाता है जिससे फूल दिखाने की समस्या ज्यादा होती है.
सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी
यह भी पाया गया है कि तांबा, लोहा, सेलेनियम, जस्त जैसे कुछ सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भी भैंसों में फूल दिखाने की समस्या से जुड़ी हुई है.
वंशानुगत प्रवृति
प्रसव से पहले फूल दिखाने की बीमारी को भैंसों में वंशानुगत प्रवृति से भी देखा गया है जिसमे पाया गया है कि जिन भैंसों को फूल दिखाने की बीमारी होती है तो यह समस्या उनकी अगली पीढ़ी के कुछ पशुओं में भी पाई जाती है.
बाड़े में रखे जाने वाले पशुओं में अधिक घटनाएं
प्रबंधित डेरी फार्मों की तुलना में बाड़े में रखे जाने वाले पशुओं में यह समस्या अधिक पाई जाती है. इसका सही कारण अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन डेरी में रखे जाने वाले पशुओं की तुलना में इन पशुओं का पोषण स्तर कम होता है. बाड़े में बंधे पशुओं में व्यायाम की कमी भी इसका एक कारण माना जाता है.
भोजन में सूखे चारे की अधिक मात्रा
पशुओं के भोजन में सूखे चारे जैसे गेहूं का भूसा, की अधिक मात्रा भी फूल दिखाने की समस्या के लिए जिम्मेदार कारक है क्योंकि इससे पशु गोबर करते वक्त अधिक जोर लगाता है जिससे योनि और गर्भाशय ग्रीवा के पिछले हिस्से का बाहर निकलने का खतरा बढ़ जाता है.
बीमारी के लक्षण
फूल दिखाने की समस्या को प्रजनन अंगों के शरीर से बाहर निकलने एवम बीमारी की गंभीरता के हिसाब से मुख्य रूप से तीन तरीकों से देखा जाता है –
पहली अवस्था – इस हालात में जब पशु बैठा या लेटा हुआ होता है तो योनि श्लेष्म योनि के बाहर निकलता है, लेकिन जब पशु खड़ा होता है तो अंदर चला जाता है.
दूसरी अवस्था – जब पशु खड़ा होता हैं तो शरीर से बाहर निकला हुआ प्रजनन अंग बाहर ही रहता है जिसमे योनि श्लेष्म ही मुख्य भाग होता है.
तीसरी अवस्था – इसमें योनि के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा भी शरीर के बाहर आ जाती है और पशु अत्यधिक जोर लगाता है.
इस तरह से फूल दिखाने की समस्या जो मुख्यत गर्भावस्था के अंतिम दिनों से जुड़ी होती है निम्न स्तर से लेकर जानलेवा भी हो सकती है. इससे जुड़े मुख्य लक्षण हैं-
- पशु के द्वारा गोबर व पेशाब करते वक्त जोर लगाना
- योनि के बाहर प्रजनन अंगों का लटका रहना
- बाहर निकले हुए मास की सूजन
- गाभिन पशुओं में पेशाब की रूकावट मुख्यत इस रोग से जुड़ी होती है. अत: पशु के बाहर निकले हुए अंगों को जब शरीर के अंदर किआ जाता है तो उसके बाद पशु अधिक मात्रा में पेशाब करता है.
- पशु सुस्त हो जाते हैं और खाना-पीना छोड़ देते हैं
- गर्भाशय ग्रीवा की सील टूटने से गर्भपात हो सकता है.
- समय पर इलाज ना करने से अंगों में संक्रमण होकर यह पशु के खून में भी फैल सकता है जिससे पशु की मौत भी हो सकती है
प्रसव से पहले फूल दिखाने के परिणाम
भैंसों में प्रसव से पहले फूल दिखाने की बीमारी के कई परिणाम हो सकते है जिनमे से मुख्य निम्नलिखित हैं-
पशु के शरीर से बाहर निकले हुए अंगों पर मक्खियों के बैठने से उसमे संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है जिससे पशु को दर्द होता है और वह जोर लगता है. अधिक जोर लगाने से बीमारी और बढती है.
शारीरिक अंगों जैसेकि योनि और गर्भाशय ग्रीवा के बाहर रहने से उनकी सूजन हो जाती है जिससे उनको दोबारा शरीर के अंदर रखना मुश्किल हो जाता है.
फूल दिखाने की समस्या एक बार शुरू होने के बाद यह बार-बार होती है.
प्रसव से पहले बार-बार फूल दिखाने से पशु का गर्भपात भी हो सकता है.
पशु मालिक की अनुपस्थित में अगर पशु फूल दिखाता है तो आवारा कुत्ते या पक्षी उसे नोंच सकते है और सही समय पर नही सँभालने से पशु की मृत्यु भी हो सकती है.
जननांगो के संक्रमण के कारण कुछ पशुओं में जेर का रुकना, योनि या गर्भाशय ग्रीवा की सूजन, बच्चेदानी का संक्रमण या बांझपन इत्यादि रोग होने का खतरा बढ़ जाता है.
प्रसव से पहले फूल दिखाने की समस्या प्रसव के बाद भी हो सकती है क्योंकि जननांगो के लगातार शरीर से बाहर रहने उनकी सूजन हो जाती है और संक्रमण की वजह से पशु जोर लगाता रहता है और प्रसव के बाद भी फूल दिखता है.
फूल दिखाने की वजह से पशु खाना-पीना छोड़ देता है और उसको दूसरी घातक जानलेवा बिमारियाँ होने का भय रहता है.
प्रसव से पहले फूल दिखाने की समस्या प्रसव के बाद भी पशु पर अपना असर छोडती है और पशु अपनी नस्ल व योग्यता के मुताबिक दूध नही देता है जिससे किसान को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.
फूल दिखाने की समस्या का इलाज एवम् प्रबंधन
फूल दिखाने की समस्या से जूझ रहे पशुओं के इलाज एवम प्रबंधन का मुख्य लक्ष्य इस बीमारी के पुनः होने से रोकना और शरीर से बाहर आए जननांगो को नुकसान पहुँचाने से रोकना होता है. शरीर से बाहर आए जननांगो को वापस अंदर करने के लिए तीन चीजों को ध्यान में रखा जाना चाहिएजो निम्नलिखित हैं:
शरीर से बाहर निकले जननांगो के आकार में कमी
एडिमा की वजह से सूजन के कारण शरीर से बाहर निकले जननांगो में सूजन आ जाती है और उनका सूजी हुई अवस्था में शरीर के अंदर दोबारा रखना मुश्किल होता है. सूजे हुए जननांगो के आकर में कमी के लिए बर्फ, ठंडे पानी, फिटकरी का इस्तेमाल करना चाहिए. बर्फ को एक तौलिये में लपेटकर जननांगो के चारो ओर लगाया जाता है ताकि उनके आकर को कम किया जा सके एवम उनको आसानी से शरीर के अंदर दोबारा रखा जा सके. आकार में कमी लाने के लिए चीनी का इस्तेमाल करने से परहेज करना चाहिए क्योंकि चीनी मक्खियों को आमंत्रित करती और इससे संक्रमण होने के अधिक आसार होते हैं.
जननांगो का शरीर के अंदर प्रतिस्थापन
शरीर से बाहर निकले हुए अंगों को संक्रमण से बचने और दोबारा शरीर के अंदर प्रतिस्थापित करने से पहले अची तरह साफ करना चाहिए. साफ करने के लिए ताज़े पानी का प्रयोग करना चाहिए एवम उसमे 1: 1000 की मात्रा में लाल दवाई मिलानी चाहिए. अच्छी तरह साफ करने के बाद शारीरिक अंगों पर एंटीसेप्टिक मलहम लगनी चाहिए और उसके बाद उसको शरीर के अंदर करना चाहिए. बाहर निकले अंगो को शरीर के अंदर धकेलते वक्त यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हाथ साफ-सुथरे हों और नाखून को शरीर से नही छूना चाहिए अन्यथा इससे ग्रस्त होने से अंगों पर चोटें होने का भय रहता है जो संक्रमण का कारण हो सकता है. शारीरिक अंगों पर दबाव पहले हथेली के साथ लागू किया जाना चाहिए और योनिद्वार के नजदीक के अंग को पहले हाथ की मुट्ठी के साथ अंदर किआ जाना चाहिए. जननांगो को शरीर के अंदर करते वक्त उंगलियों का उपयोग नही करना चाहिए.
शरीर में जननांगो का प्रतिधारण और पुनः फूल दिखाने को रोकना
शरीर के भीतर जननांगो को उनके नियमित जगह पर प्रतिधारित करने और फूल दिखाने की समस्या को दोबारा होने से रोकने के लिए विभिन्न रूढ़िवादी और शल्य चिकित्सा पद्धतियों का उपयोग किया जाता है जिनमे से कुछ निम्नलिखित हैं:
शरीर में अंगों को बनाए रखने की रूढ़िवादी पद्धति में पशु के योनिद्वार पर 'रस्सी का पुलिंदा/छींकी' बांध दिया जाता है जिससे पशु के जोर लगाने पर भी जननांग शरीर से बाहर नही आते और कुछ दिन के बाद इसको हटा दिया जाता है. कुछ पशुओं में अधिक दिक्कत होने से इसे प्रसव-काल तक लगाकर रखा जाता है.
शारीरिक अंगों के शरीर में पुनर्स्थापना के बाद पशुओं को सहायक चिकित्सा भी दी जानी चाहिए ताकि इसे दोबारा होने से रोका जा सके और पशु को संक्रमण ना हो:
कैल्शियम चिकित्सा - कैल्शियम बोरोग्लुकोनेट के 450 मिलीलीटर टीके को धीरे-धीरे अन्त:शिरा से संचालित किया जाना चाहिए.
संक्रमण की घटना को रोकने के लिए लंबे समय तक कम करने वाली एंटीबायोटिक दवाइयां जैसे एनरोफ्लॉक्सासिन, ऑक्सीटेट्रासायक्लीन इत्यादि दी जानी चाहिए.
दर्द और सूजन को कम करने के लिए पशु को सूजन कम करने वाली और एनाल्जेसिक(दर्द कम करने वाली) दवाई दी जानी चाहिए.
सहायक चिकित्सा जैसे एंटीहिस्टामाइन, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स और अन्य तनाव कम करने वाली दवाई देनी चाहिए.
पानी के साथ उचित सफाई करने के बाद शरीर से बाहर आए अंगों पर अरंडी का तेल जैसे आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग करना चाहिए. एबिटिलॉन इंडिकॉम [भारतीय मॉलो] के 100 ग्राम ताजे पत्तों को अरंडी के तेल में हल्की आंच में तलने के बाद रोज पशु को खिले से अच्छे परिणाम मिलते है और पशु स्वस्थ रहता है.
ध्यान रखने योग्य बातें
पशु खरीदने से पहले यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पशु को फूल दिखाने की समस्या तो नही है.
यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पहले से ग्रस्त एक मादा पशु की बेटियों को पाला नहीं जाना चाहिए क्योंकि फूल दिकने की बीमारी प्रकृति में वंशानुगत है.
आवश्यकता के अनुसार अग्रिम गर्भवती पशुओं के लिए पोषण की गुणवत्ता उचित होनी चाहिए और उन्हें सही मात्रा में भोजन देना चाहिए.
पशुओं के लिए अच्छी गुणवत्ता का खनिज मिश्रण नियमित आहार में होना चाहिए जोकि राशन के 2% के हिसाब से पशुओं के चारे में मिलाना चाहिए क्योंकि कुछ सूक्ष्म तत्वों की कमी की वजह से भी फूल दिखाने की समस्या होती है.
गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पशु को अस्थिरता और तनाव से बचाने के लिए पशु को अधिक हरा-चारा और कम सुखा खिलाना चाहिए ताकि पशु गोबर करते वक्त अधिक जोर ना लगाये.
फूल दिखाने की समस्या को दोबारा होने से रोकने के लिए पशु के आहार की गुणवत्ता बढाकर उसकी मात्रा को कम कर देना चाहिए.
पशु के पीछे के हिस्से की ओर ऊँचा रखना चाहिए ताकि उसका पिछला हिस्सा सामान्य से अधिक ऊंचाई पर हो और फूल दिखाने की समस्या कम हो.
शरीर के अंदर अंगों को प्रतिस्थापित करने से पहले इसे पानी या एंटीसेप्टिक के साथ ठीक से धोया जाना चाहिए.
अग्रिम गर्भवती पशुओं के चारे में फूल दिखाने के लिए संदिग्ध चारे जैसेकि बरसीम, सड़े हुए जौ और मक्का इत्यादि को बंद कर देना चाहिए.
पशुओं के पास हर समय पीने के लिए को स्वच्छ पानी की व्यवस्था होनी चाहिए.
गर्मियों के दौरान पशुओं को ठंडी जगह पर रखना चाहिए. बाड़े के आसपास वृक्षारोपण, पानी का छिड़काव इत्यादि करने से पशुओं को स्वस्थ रहने में मदद मिलती है.
गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पशु को एक जगह पर बांधकर नही रखना चाहिए बल्कि उसे नियमित रूप से टहलाना चाहिए.
अमरजीत बिसला1, विनय यादव2, अमनदीप सिंह3, नीरज श्रीवास्तव1 और रवि दत्त2
1पशु प्रजनन विभाजन, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, इज्ज़तनगर-243122 (उ.प्र.)
2मादा पशु एवम प्रसूति रोग विभाग, लाला लाजपतराय पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार-125004 (हरियाणा)
3विस्तार शिक्षा विभाजन, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, इज्ज़तनगर-243122 (उ.प्र.)
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