पशु पालन के सहारे अगर मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपके लिए लाल कंधारी गाय फायदेमंद साबित हो सकती है. इसे ‘लखलबुंदा’ नाम से भी कई जगहों पर जाना जाता है. भारत में मुख्य रूप से ये महाराष्ट्र के नंदेड़, परभानी, अहमद नगर, बीड और लतूर जिलों में देखने को मिलती है.
इनका रंग गहरा लाल या भूरा-लाल हो सकता है. इनके सींगों का आकार टेढ़ा और माथा चौड़ा होता है, जिस कारण इनकी पहचान आराम से हो सकती है. चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं.
दूध देने की क्षमता (Milking capacity)
इनके दूध देने की क्षमता इनके लालन-पालन एवं रखरखाव पर निर्भर है, लेकिन फिर भी औसतन एक ब्यांत में ये 598 किलो दूध दे सकती है. इनके दूध में वसा की मात्रा लगभग 4.5 प्रतिशत तक हो सकती है.
खुराक प्रबंधन (Dosage management)
इस नस्ल की गायों को फलीदार चारे भोजन के रूप में दे सकते हैं. भोजन में इन्हें अधिक उर्जा, प्रोटीन, खनिज पदार्थ देने चाहिए. आप इन्हें खाने में अनाज जैसे कि मक्का, ज्वार, छोले, जई, चावलों की पॉलिश, चूनी, बरीवर आदि शुष्क दाने दे सकते हैं.वहीं हरे चारो के रूप में इन्हें लोबिया, गुआरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास आदि दे सकते हैं. इसी तरह अगर सूखा चारा इन्हें खिलाना चाहते हैं, तो आप बरसीम की सूखी घास, जई की सूखी घास, पराली, मक्की के टिंडे आदि भी भोजन के रूप में दे सकते हैं.
शैड की आवश्यकता (Need for shade)
वैसे तो लगभग ये हर तरह के सामान्य वातावरण में रह सकते हैं, लेकिन इन्हें भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड के मौसम में अधिक देखभाल की जरूरत होती है. ऐसे में इनके लिए शैड का निर्माण करें.
ये खबर भी पढ़े: खुशखबरी ! खरीफ की इन फसलों की MSP में हुई बढ़ोतरी, देखिए पूरी सूची
इस बात का ध्यान रखें कि शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा मौजूद हो.
(आपको हमारी खबर कैसी लगी? इस बारे में अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दें. इसी तरह अगर आप पशुपालन, किसानी, सरकारी योजनाओं आदि के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो वो भी बताएं. आपके हर संभव सवाल का जवाब कृषि जागरण देने की कोशिश करेगा)
Share your comments