भारत जैसे कृषि प्रधान देश की अर्थव्यवस्था में पशुधन एवं पशुपालन का महत्वपूर्ण स्थान है। बकरी-पालन हमारे देश का काफी बहुत पुराना व्यवसाय है। बात चाहे दुध की हो या मांस की, हमारे देश के गरीब किसान के लिए बकरी से बेहतर कोई दूसरा जानवर नहीं है। बड़े पशुओं जैंसे गाय, भैंस आदि की शारीरिक जरूरत और रखरखाव काफी महंगी पड़ती है, ऐसी स्थिती में छोटे व गरीब किसानों के लिए बकरी-पालन काफी सरल एवं लाभप्रद व्यवसाय है। बकरी के इन्हीं गुणों के कारण इसें ‘‘ गरीब की गाय‘‘ कहा जाता है। भारत में सभी प्रकार की कठिन परिस्थितियों एवं उचित आहार के अभाव में भी बकरियों में उत्पादन करने की विलक्षण क्षमता होती है। बकरी को घर के छोटे बच्चे व खाली सदस्य आराम से सार्वजनिक चरागाहों, अन्य भूमी पर चराकर पाल सकते है, जिससें इसके पालन पर होने वाले खर्च को कम किया जा सकता है।
बकरी-पालन मुख्य रूप से दुग्ध, मांस और रेशो के लिए किया जाता है। हमारे देश में उपस्थित देसी नस्ल की बकरियों की उत्पादन क्षमता निचले स्तर की है परन्तु इसमें उच्च एवं निम्न तापक्रमों को सहने, रोगो से लडने एवं निम्न स्तर के रखरखाव पर भी सहज उत्पादन की अद्वितीय क्षमता होती है। बड़े पैमाने पर मांस हेतु वध करने के बाद भी प्रतिवर्ष बकरियों की संख्या में 3-4 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हो जाती है जो इनकी उच्च प्रजन्न क्षमता का द्योतक है।
हर साल एक बकरी से लगभग 500 रूपए की परोक्ष आय दुध से प्राप्त की जा सकती है। बकरियों के नर बच्चे मांस उत्पादन हेतु काम में लाए जाते है। छः माह की उम्र पर एक स्वस्थ बच्चे से 500-600 रूपए का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
दुध, मांस व रेशे के अतिरिक्त किसान फसल कट जाने के उपरान्त बकरियों के रेवड को अपने खेतों में रखते है ताकि खेत में बकरी की मैंगनी व मुत्र जैविक खाद के रूप में मिल जाते है। रेवड को अपने खेतों में रखने के लिए किसान बकरी पालक को 25-50 रूपए प्रति रात्रि के हिसाब से देता है। समाज का पिछडा वर्ग जिनके पास भूमि नहीं के बराबर है। बकरी पालन को अपनाकर अपनी माली हालत को काफी हद तक सुधार सकता है क्योंकि बकरी-पालन से निम्न फायदे हैं।
1. बकरी दुध एवं मांस के लिए उपयुक्त स्त्रोत है।
2. चमड़े व बालों से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है।
3. इसकी खाद मुत्र से खेत की उर्वरा शक्ति बढती है।
4. कम आयु में ही इससे दुध उपलब्ध होता है।
5. इसका मांस अन्य पशुओं के मांस की तुलना में अधिक पसंद किया जाता है।
6. एक बार में एक से अधिक बच्चे दे सकती है।
7. किसी विशेष आवास की जरूरत नही होती है।
8. सालभर रोजगार प्रदान करती है।
9. बहुत कम खर्चे में पाली जाती है।
10. आवास हेतु कम स्थान घेरती है।
11. विपरित परिस्थितियों में पाली जा सकती है।
12. बकरी का दुध अन्य पशुओं की तुलना में मानव दुध के काफी नजदीक है।
महिलाएं और बकरी :-
पशुपालन में पशुओं की अपेक्षा ग्रामीण महिलाओं का योगदान काफी अधिक है। कम पूंजी विनियोजन के नाते आर्थिक रूप से पिछडी एवं भूमि विहिन वर्ग की महिलाओं के लिए बकरी पालन एक वरदान बन सकता है। बड़े पशुओं की तुलना में बकरी को आसानी से पाला जा सकता है। एक महिला एक झुण्ड का आसानी से देखभाल कर सकती है। बकरी पालन से आर्थिक लाभ के साथ-साथ घर में उपलब्ध अतिरिक्त श्रम का भी उपयोग होता है तथा साथ ही बकरी के दुध एवं मांस से ग्रामीण महिलाओं के पोषण स्तर में भी अपेक्षित सुधार होगा। जिससे कुपोषण की समस्या नहीं रहेगी जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से बीमारियों का कारण है। सूखा एवं अकालग्रस्त क्षेत्रों में महिलाएं इन्हे बूरे दिनों का बीमा मानती है। बहुत सी विवाहित महिलाओं को बकरीयां अपनी मां से दहेज के रूप में मिलती है। अपने परिवार को पालने में, बच्चों की देखभाल में और शादी-ब्याह का खर्च निकालने में महिलाएं बकरी पालन से हुई आमदनी का उपयोग करती है। ग्रामीण महिलाएं बकरी पालन व्यवसाय के लिए सरकार द्वारा प्रदत कम ब्याज पर ऋण प्राप्त कर सकती है, जो कि ब्लॉक स्तर पर संचालित योजनाओं के तहत दिए जाते है। कुल मिलाकर गरीबी से लड़ने के लिए बकरी पालन एक अच्छा साधन बनाया जा सकता है।
मानव पोषण और बकरी :-
प्रोटीन व दुध की कमी को पूरा करने का सबसे अच्छा व सस्ता रास्ता बकरी पालन है। बकरी के दुध की प्रोटीन की मात्रा मानव दुध के प्रोटीन से मिलती जुलती है तथा यह मानव बच्चे के लिए उत्तम दुध है। बहुत से लोग, जिन्हे गाय व भैंस के दुध से एलर्जी होती है या पेट में छाले/ अल्सर होते हो, उनके लिए बकरी का दुध बहुत लाभदायक है। हमारे देश के मासांहारी लोग बकरी के मांस को अन्य जानवरो के मांस से ज्यादा पसंद करते है क्योंकि बकरी के मांस में प्रोटीन की मात्रा अधिक व वसा की मात्रा कम होती है, जो कि संतुलित आहार की नजर से अच्छा है। बकरी प्रतिदिन 1 से 2 लीटर दुध देती है, जिससे एक परिवार के दुध की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है तथा अतिरिक्त दुध को बेचकर आर्थिक लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है। बकरी को इतने दुध के लिए ज्यादा दाना-पानी की जरूरत नही होती है। घर या आसपास मौजुद चारा व दुसरी चीजें खिलाकर भी आसानी से बकरी पालकर दैनिक जरूरतों को पुरा किया जा सकता है। प्राचीनकाल से ही बकरी का दुध मानव दुध के उपरान्त दूसरे स्थान पर प्रतिस्थापित होकर नवजात बच्चों के स्वास्थय के लिए अति उत्तम माना जाता रहा है। यहां तक कि वृद्धों के लिए भी बकरी का दुध अति पौष्टिक, शीघ्र पचने वाला एवं लाभकारी होता है। अतः बकरी को मनुष्य की सौतेली मां की संज्ञा दी जाती है।
मरूस्थलीकरण और बकरी :-
बकरियों के प्रति यह एक गलत धारणा है कि बकरी अक्सर सारी हरियाली चर जाती है जिससे मरूस्थलीकरण को बढावा मिलता है। अध्ययनों से पता चलता है कि यह एक गलत धारणा है, प्रायः यह समस्या गाय एवं भेडों ने ज्यादा पैदा की है। क्योकी गाय एवं भेड़े इतनी गहराई में चराई करती है कि मिट्टी भी निकल जाती है और मिट्टी कटाव के प्रभाव में आ जाती है। बकरी आमतौर से सिर ऊंचा उठाकर पेड़, झाडियों आदि ही के पत्तें बडे चाव से खाती है। बकरी स्वभाव से ही चयनित आहार ही खाती है तथा उनको पेडों के ऊपर अगले पैर रखकर खाना अच्छा लगता है। बकरियां दिनभर घुम-घुमकर खाती रहती है तथा उनसे सतह पर उभरी हरियाली को कोई नुकसान नही होता, इसके विपरित गाय तथा भेंड़े हमेशा नीचे की ओर सिर करके एक ओर से चारा चरती रहती है। आम धारणा के विपरित बकरियां पूरी जमीन में खाद फैलाती हुई उसको उपजाऊ बनाती है एवं लवणीय मृदा में पौधो की लवणयुक्त पत्तियों को खाकर लवणता घटाती है। घास, झाडियों और पेड़ो के बीजों को दुर-दुर तक फैलाने में भी बकरियां मदद करती है। सच तो ये है कि रेगिस्तानी वृक्षों की फलियों को खाकर बकरियां उनके ऊपर खोलन पचा लेती है और बीजों कां अंकुरण में मदद करती है। बकरी की मैंगनी बीजों के लिए उर्वरक कैप्सूल का कार्य करती है। जिससें बीजों को अंकुरित होते समय पर्याप्त खाद मिल जाती है। इस तरह पर्यावरण को बिगाड़ने के भय से मुक्त होकर रेगिस्तान में बकरियां पाली जा सकती है।
लघु / कुटीर उद्योग और बकरी :-
दुध और मांस के उपरान्त बकरी का चमड़ा भी काफी महत्वपूर्ण है। इससे जैकेट, कोट, पर्स, जूते, दस्ताने, पेटियां तथा घर की सजावटी चीजें बनाकर बेचने से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। बकरी की खाल अन्य खालो की अपेक्षा अच्छी समझी जाती है।बकरियों से बाल तथा रेशा प्राप्त होते है। जिनसे विभिन्न प्रकार के नमदें, ऊनी वस्त्र बनाए जाते है। प्रत्येक बकरी से सालभर में लगभग दो क्विंटल खाद प्राप्त होती है। बकरी के उपरोक्त उपयोगिता को देखते हुए बकरी उत्पादन से संबंधित लघु उद्योग स्थापित किए जा सकते है। जैसे- दुग्ध उद्योग, मांस और चमड़ा उद्योग व वस्त्र उद्योग आदि। इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे तथा साथ ही बकरी पालन को अपेक्षित स्तर पर लाया जा सकेगा।
प्रस्तुति : डॉ सुदीप सोलंकी, सहायक, आचार्य सुक्ष्म जीव विज्ञान विभाग एंव
डॉ दुर्गा देवी टीचिंग ऐसोसिएट, आईएलएफसी सीवीएएस नवानियॉ
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