
देश की बढ़ती हुई जनसँख्या को ध्यान में रखते हुए तथा खाने की मांग की पूर्ति के लिए यह आवश्यक हो गया है की जल संसाधनों का उपयोग अतिरिक्त आहार उत्पादन के लिए किया जाए तथा इन खाद्य पदार्थों को उन स्थानों पर भेजा जाए जहां पर ये मुख्य रूप से खाने के काम लाये जाते है। मत्स्य पालन द्वारा ग्रामीण वर्ग अपनी आर्थिक तथा सामाजिक दशा को सुधार सकता है तथा बेरोजगारी की समस्या को भी समाप्त कर सकता है।
आज के तकनिकी युग में ग्रामीण क्षेत्रों में मत्स्य पालन तथा समेकित मत्स्य पालन जैसे मछली के साथ मुर्गी पालन, बत्तख पालन, पशु पालन इत्यादि के व्यवसाय के एकीकरण से ग्रामीण जनसमुदायों का सामाजिक एवं आर्थिक विकास हो सकेगा।

भूमि का चयन:
तालाब की भूमि का चयन सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है जो मछली फार्म की सफलता को निर्धारित करता है। तालाब के निर्माण से पहले मिट्टी की जल को धारण करने की क्षमता और मिट्टी की उर्वरता का ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि यह कारक खेत के तालाब में जैविक और अकार्बनिक निषेचन की प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं। चयनित स्थल में तालाब को भरने और अन्य उपयोगों के लिए वर्ष भर पर्याप्त जलापूर्ति होना आवश्यक है। तालाब का निर्माण स्थलाकृतिक क्षेत्र पर आधारित होना चाहिए तथा निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए -
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जमीन ऊसर ना हो तथा बालू, कंकड़ एवं पत्थर युक्त ना हो।
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दलदली क्षेत्रों में, पसंदीदा आकार के तालाब के बांध बंदी निर्माण के लिए मिट्टी का अधिक संचय करना चाहिए।
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उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए स्व-जल निकासी वाले तालाब आदर्श होते हैं।
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मिटटी न ज्यादा अम्लीय हो न ज्यादा क्षारीय हो|
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आसानी से मछली को बाजार तक पहुंचने के लिए सड़क वा परिवहन का होना आवश्यक।
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फ़ीड, बीज, उर्वरक और निर्माण सामग्री जैसे इनपुट की व्यस्था भूमि के पास उपलब्ध होनी चाहिए।
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भूमि प्रदूषण, औद्योगिक कचरे, घरेलू कचरे और किसी भी अन्य हानिकारक गतिविधियों से मुक्त होनी चाहिए।
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मिटटी में जल धारण क्षमता अधिक हो।
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मिटटी उर्वर हो, जिससे प्राकर्तिक भोजन की उपलब्धता रहे।
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तालाब निर्माण में कोई सामाजिक आपत्ति न हो।
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भूमि समतल हो तथा हल्की ढलान युक्त हो।
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विद्युत तथा प्रकाश की उचित व्यवस्था हो।
तालाब के मिटटी की पहचान:
नए तालाब निर्माण के पहले मिटटी की जाँच करवाना आवश्यक है| मिटटी की जाँच प्रयोगशाला में ले जाकर करवाना चाहीये|
जहां तालाब बनाना हो उस स्थान पर 3 x 3 फीट के क्षेत्र में कम से कम 3-5 फीट का गड्ढा बना कर मिटटी निकाले उस, मिटटी को पाने में गीला कर 3 इंच व्यास का गोला बनाएं एवं 3-4 फीट तक हवा में उछाले| यदि गोला टूट जाए तो मिटटी तलाब बनाने के उपयुक्त नहीं हैं, यदि गोला नहीं टूटे तो तालाब के लिए उपयुक्त है|
दूसरी विधि यह है की, मिटटी का गोला (3 इंच व्यास) बनाकर उसे बेलनाकार घुमा कर 5-6 इंच तक लंबा करे यदि नहीं टूटे तो यह स्थान तालाब के लिए उपयुक्त है|
मृदा के भौतिक एवं रासायनिक गुणों का ज्ञान होना भी अत्यंत आवश्यक होता है मिट्टी के निम्नलिखित गुण तालाब को सदैव उत्पादक बनाये रखते हैं।
पी एच – 6.5 से 7.5 (औसतन 7.0)
नाइट्रोजन – 25-50 मिली ग्राम/1000 ग्राम मृदा
फॉस्फेट – 0.01%
कार्बन – 1%
कैल्शियम - 100-200 मिली ग्राम/1000 ग्राम मृदा
सोडियम - 10-15 मिली ग्राम/1000 ग्राम मृदा
तालाब का आकार:
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साधारणत: आयताकार तालाब ज्यादा उपयुक्त माना जाता है| लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात 2– 3 : 1 रखना ज्यादा उपयुक्त माना जाता है| क्योंकि यदि तालाब की चौड़ाई अधिक होगी तो उसमें जाल चलाना कठिन होता है तथा श्रमिकों के प्रति खर्च भी बढ़ जाता है।
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उपलब्ध जमीन का 70 से 75 प्रतिशत भाग ही तालाब के निर्माण हेतु अर्थात जलक्षेत्र के रूप में विकसित किया जाता है, शेष 25-30 % तालाब के बाँध में चला जाता है| अर्थात एक एकड़ के तालाब के निर्माण हेतु लगभग 35 से 1.40 एकड़ जमीन की आवश्यकता होती है|
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पूरब पश्चिम दिशा में तालाबों को बनवाने से में हवा के बहाव के कारण पानी में अधिक हलचल होती रहती हैं जिससे पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है।
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बहुत बड़े तालाब में जाल चलाना कठिन हो जाता है।
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तालाब या पोखर ऐसे स्थिर जल निकाय को कहते हैं जो झील से छोटा होता है तथा कम से कम 4-6 माह जल भरा रहता है।
मछली पालन इकाई के अंदर विभिन्न प्रकार के तालाब घटकों का उपयोग किया जाता है, जिसमें नर्सरी तालाब, पालन तालाब, उत्पादन, प्रजनन / स्पॉनिंग पूल शामिल होते हैं। मछली के बढ़ते उम्र एक साथ उसको अलग अलग तालाबो में रखा जाता हैं, ताकि उसे पर्याप्त भोजन, ऑक्सीजन एवं जगह मिल सके एवं वृद्धि अच्छी हो। तालाब के विभिन्न प्रकार निम्न है –
तालाब |
प्रतिशत में आंकड़े |
अनुमानित क्षेत्रफल (हैकटैर) |
तालाबों की प्रकृति |
मछली रखने की अवध |
नर्सरी तालाब |
5% |
0.01-0.05 |
उथला |
15-20 दिन |
पालन तालाब |
20% |
0.05-0.1 |
मध्यम गहरा |
2-3 महीना |
उत्पादन तालाब |
65% |
1-2 |
मध्यम गहरा |
8 महीना |
प्रजनन तालाब |
10%% |
- |
मध्यम गहरा |
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तालाब की औसत गहराई :
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तालाब की औसत गहराई उतनी होनी चाहिए जहां सूर्य की रोशनी पहुंच सके| जहां पानी का साधन हो वहां तालाब की गहराई से 50-2.00 मी रखना चाहिए| यदि तालाब वर्षा पर आधारित ही वहां तालाब की गहराई 8-10 फीट तक रख सकते है|
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तालाब को पानी से पूरा न भरकर ऊपर कुछ क्षेत्र छोड़ना चाहिए,इसे फ़्रीबोर्ड कहते हैं। सामान्यतः 25-1.50 मी० का जलस्तर उपयुक्त रहता है।
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कम गहरे तालाबों का ग्रीष्म ऋतु में सूखने का भय रहता है, तथा उचित गहरा होने पर प्रबंधन कठिन हो जाता है।
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अधिक गहरे तालाबों की तलहटी पर कार्बनिक - अकार्बनिक पदार्थों के एकत्रीकरण से विषैली गैस बनने का डर रहता है।
तालाब की संरचना:
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यदि आपके पास जमीन पर्याप्त मात्रा मे है तो तालाब के जलक्षेत्र को नापने के बाद चारों तरफ 2’ से 3’ फीट जमीन वर्म के रूप में छोडकर बाँध बनाया जाय जिससे बाँध की मिटटी को क्षरण होकर तालाब में जाने से रोका जा सके|
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तालाब की खड़ी खुदाई नहीं करनी चाहिए, तथा तालाब का किनारा ढलवां होना चाहिए| तालाब का ढालना 1:1.5 या 1:2 (ऊंचाई : आधार) रखा जाना चाहिये|
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तालाब का क्षेत्रफल पाली जाने वाली मत्स्य प्रजाति के साइज तथा संख्या पर निर्भर करता है।
तालाब के तल की बनावट:
तालाब के तल को समतल होने के साथ साथ द्रढ़ भी होना चाहिए तथा जल के प्रवेश वाले स्थान से निकासी वाले स्थान की तरफ 1 से 2 प्रतिशत की ढलान का होना आवश्यक है। तालाब में ढलान होने के कारण जल निकासी का द्वार खोल देने पर पानी गुरुत्व के कारण बाहर निकल जाता है। इस प्रकार मत्स्य निकासी के समय तालाब को आसानी से खाली किया जा सकता है।
तालाब को सुखाना:
तालाब को हर फसल के बाद पूर्ण रूप से सुखाना चाहिए। यदि हर वर्ष संभव न हो तो 2 वर्ष में एक बार अवश्य सुखना चाहिए। तालाब का तल सुख जाने तक तालाब को सुखाना आवश्यक है, इससे हानिकारक जीव का विनाश हो जाता है। तालाब को खाली करके और उसे धुप में सुखाकर तालाब को सुखाया जाता है। यह तब तक किया जाता है जब तक की जमीन की मिटटी सुख न जाये और उसमे दरारें न पड़ जाये। इस प्रक्रिया में आमतौर पर 7 दिन का समय लगता है लेकिन यह भी मौसम की स्थिति और मिटटी की विशेषताओं पर निर्भर करता है।
तालाब का बांध निर्माण:
तालाब का बांध सामान्यतः चिकनी दोमट मिटटी का ही बनाना चाहिए एवं मजबूत होना चाहिये, क्योंकि कि वह पानी के दबाव को सेहता है तथा पानी को रिसने से रोकता है। बाँध निर्माण हेतु निम्नलिखित बातें आवश्यक है –
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जिस जगह तालाब बनाना हो उस भूमि में अवांछित चीजे जैसे पेड़ों, झाड़ियों, पत्थरों और चट्टानों को हटाकर भूमि तैयार की जानी चाहिए।
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तालाब बनाने के पूर्व भूमि की उस जगह जहां मिटटी की खुदाई होती है, वर्म का स्थान एवं बाँध का निर्माण स्थल को चुने से चिन्हित कर लेना आवशयक है|
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चिन्हित स्थल से घास व पौधों को हटा कर ट्रैक्टर या हल से जुताई करने के बाद ही वहां पर मिटटी डालने का काम किया जाए, इससे बांध मजबूत बनेगा और पानी के रिसाव की संभावना नहीं रहेगी|
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जिस तरफ पानी का रिसाव हो उधर का बाँध ज्यादा चौड़ा एवं मजबूत बनाना चाहिए|
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शिखर की चौड़ाई के अनुरूप बाँध के दोनों ओर ढलान रखना आवशयक है यदि बाँध की उंचाई 3 -4 फीट हो, तो शिखर की चौड़ाई भी कम से कम 4-5 फीट रखनी चाहिये तथा अन्दर का ढ़लान 1:1.5 रखना चाहिये| यदि बांध पर गाड़ी भी चलना है तो शिखर की चौड़ाई 6-8 फीट रखना चाहिए।
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सिर्फ चिकनी मिटटी से बने तालाब के बांध में दरार पैदा हो सकती है।
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बाँध के दोनों ओर ढलान आवश्यक रूप से होनी चाहिए।
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तालाब के बाँध की ऊँचाई तालाब के पानी से जितनी कम होगी ,पानी का हवा से संपर्क उतना ही अच्छा होगा।

पानी का प्रवेश तथा निकास द्वार:
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पानी प्रवेश द्वार की सहायता से तालाब में पानी के स्तर को नियंत्रित किया जाता है एवं इसके माध्यम से तालाब में पानी भरा जाता है। इसे बाँध के आधार के समकक्ष / उंचाई पर ही बनाना चाहिए।
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जिस तरफ प्राकृतिक ढ़लान हो उधर ही पानी का निकास द्वार बनाना चाहिये। निकास द्वार का निर्माण तालाब से जल निकासी की आवश्यकता को देखते हुए प्रवेश द्वार के नीचे के स्तर में बनाना चाहिए।
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प्रवेश पाइप में छिद्रयुक्त ढक्कन लगाएं या जाली लगाए ताकि पानी के साथ अनावश्यक पदार्थ / कूड़ा /जंतु प्रवेश न करें।
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तालाब से पानी बाहर निकालने के लिए भी जाली होनी चाहिए तथा इसे पूर्ण रूप से बंद करने की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि पानी की निकासी न हो।
तालाब की देख-रेख:
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तालाब की देख-रेख करते रहना चाहिए एवं समय-समय पर बाँध की मरम्मती करते रहना चाहिए।
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चूहें आदि के द्वारा बनाए गए बिल को बंद करते रहना चाहिए।
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कॉमन कार्प मछली के कारण बाँध क्षतिग्रस्त हो जाता है, ऐसी स्थिति में मरम्मत की आवश्यकता पड़ती है।
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बांधों पर दूब / घास लगाने से मिटटी की क्षति को रोका जा सकता है।

तालाब की उचित संरचना, निर्माण एवं देखरेख मछली पालन की कार्यप्रणाली का प्राथमिक पहलु है। मत्स्य पालन व्यवसाय की सफलता तालाब के उचित रख रखाव पर निर्भर है। इस हेतु केंद्र तथा राज्य सर्कार की कई योजनाएँ है जिनका लाभ कृषक उठा सकते हैं तथा मत्स्य पालन अपनाकर स्वरोजगार की तरफ कदम बढ़ाकर अधिक से अधिक लाभ कमा सकते हैं।
लेखक: बोनिका पंत1*, तनुज भारती1, सुनील प्रजापति1, विनीता सिंह1
1 कृषि विज्ञान केंद्र, गौतम बुद्ध नगर
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