बात ऊन की करें तो हम सबसे पहले भेड़ पालन के बारे में विचार करते हैं. और करें भी क्यों न सबसे ज्यादा ऊन हमको भेड़ से ही प्राप्त होती है. लेकिन आज हम बात करेगें बकरी पालन के बारे में जिससे हमें दूध और ऊन दोनों ही प्राप्त होते हैं. बकरी एक ऐसा पशु है जिसके माध्यम से हम दूध और ऊन दोनों का ही व्यवसाय बहुत आसानी से कर सकते हैं.
बकरी पालन में होता है मोटा मुनाफा
हम बकरी को केवल दूध के लिए ही पालने के बारे में सोचते हैं लेकिन अगर आप सच में एक अच्छे व्यवसायी हैं तो आप एक पशु को कई तरीकों से प्रयोग में लाकर कई तरह के लाभ प्राप्त कर सकते हैं. भारत में बकरी को हम ऊन और दूध दोनों के व्यवसाय के लिए प्रयोग में लाते हैं. भारत में बकरियों का उत्पादन दूध, मांस और ऊन तीनों ही क्षेत्रों के लिए किया जाता है. जिससे ये अन्य पशु पालनों की अपेक्षा ज्यादा मुनाफा देती हैं.
कौन सी बकरियों से होता है ऊन का उतपादन
विश्व में ऐसी बहुत सी बकरियां हैं जिनसे दूध के साथ में ऊन का उत्पादन भी किया जाता है. बकरियों द्वारा ऊन के उत्पादन के लिए प्रमुख नस्लें निम्न हैं-
- अंगोरा बकरी
- पश्मीना बकरी
- ऑस्ट्रेलियाई कश्मीरी बकरी
- चंगथंगी
- चिगू बकरी
- आइस लैन्डिक बकरी
यह सभी बकरियां दूध के साथ में ऊन का उत्पादन भी करती हैं. जिससे इनके पालन से दोगुना लाभ होता है. ऊपर दी गयीं बकरियों के अलावा इनकी और भी बहुत से नस्लें हैं जो दूध, मांस और ऊन के उत्पादन के लिए प्रमुख मानी जाती हैं.
विश्व प्रसिद्ध पश्मीना ऊन
भारत में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध ऊन पश्मीना किसी भेड़ से नहीं बल्कि बकरी से उत्पादित की जाती है. भारत के लद्दाख क्षेत्र में पाई जाने वाली यह बकरी पश्मीना नस्ल की होती है. इसके नाम से ही इस ऊन का उत्पादन किया जाता है. जिस कारण इसे पश्मीना ऊन कहा जाता है. भारत ही नहीं यह ऊन विश्व प्रसिद्ध है.
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इसका कारण यह है की यह सर्दियों में अन्य ऊन की अपेक्षा ज्यादा गर्म होती है. कीमत के मामले में भी यह ऊन अन्य ऊन से ज्यादा महंगी होती है.