एक अच्छी फसल को बढ़ने में खाद और सही मिट्टी के साथ-साथ पानी की जरूरत पड़ती है. ऐसे में अगर सही समय पर सही मात्रा में फसलों को पानी ना मिले, तो इससे फसल की उपज और उसकी गुणवत्ता पर काफी असर पड़ सकता है. आपको बता दें कि फसलों को पानी समय पर होने वाली वर्षा से मिलता है या फिर किसानों द्वारा सिंचाई करने से मिलता है.
सिंचाई की वैज्ञानिक विधि का मतलब ऐसी व्यवस्था से होता है, जिसमें सिंचाई जल के साथ उत्पादन के अन्य आवश्यक लागतों का प्रभावकारी उपयोग एवं फस्लोत्पादन में वृद्धि हो सके. समय-समय पर सिंचाई प्रक्रिया ठीक से ना हो, तो किसानों को काफी नुकसान होता है.
सिंचाई की प्रमुख तीन विधियाँ :-
स्तही सिंचाई विधि (Surface Irrigation Method)
सिंचाई जल को भूमि के तल पर फैलाना तथा जल के अन्तःसरण का अवसर प्रदान करना सतही सिंचाई कहलाता है.
बौछारी सिंचाई विधि (Sprinkler Irrigation Method)
सिंचाई जल का वायुमण्डल में छिड़काव करना तथा वर्षा की बूंदों की तरह भूमि और पौधों पर गिरने देना बौछारी सिंचाई कहलाता है.
असभूमि सिंचाई (Underground Irrigation)
सिंचाई जल को सीधे पौधे के जड़ क्षेत्र में पहुँचाना ही अवभूमि सिंचाई, बूंद-बूंद सिंचाई अथवा टपक सिंचाई के नाम से जाना जाता है.
इन वैज्ञानिक सिंचाई विधियों के विषय में किसानों को जागरूक करना अत्यन्त आवश्यक है. जिससे कम जल से अधिकाधिक क्षेत्र की उपयोगी सिंचाई की जा सके.
सतही सिंचाई विधि की प्रमुख विधियाँ निचे दी गई हैं :-
बार्डर सिंचाई विधि (Border Irrigation Method)
इसके अन्तर्गत खेत में लम्बाई में ढाल की दिशा की ओर कई पट्टियों में विभाजित कर लिया जाता है. पानी के स्त्रोत को खेत में ऊँचे छोर पर रखा जाता है, तथा बहाव हेतु पट्टियाँ ढाल की दिशा में बनायी जाती हैं.
चेक बेसिन सिंचाई विधि (Check Basin Irrigation Method)
यह विधि भारी मृदा वाले क्षेत्रों में, जहां इंफिल्ट्रेशन दर कम होती है और सिंचाई के पानी को अधिक दिन तक रोका जाना आवश्यक हो, वहां यह विधि अधिक उपयुक्त है. यह विधि समतल भूमि के लिए अधिक उपयोगी है. इसका उपयोग खाद्यान्न एवं चारे की फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है.
बद्ध कूँड़ सिंचाई विधि (Closed Cistern Irrigation Method)
यह विधि लाइन में बोई जाने वाली फसलों, यथा मक्का, ज्वार, गन्ना, कपास, मूँगफली, आलू तथा साग-सब्जियों की सिंचाई के लिए अधिक उपयोगी है. इस विधि के अन्तर्गत कूँड़ में उपलब्ध जल से कूँड़ के बगल में रिट पर बोई गयी फसलों को रिस-रिस कर नमी प्राप्त होती है.
सतही सिंचाई से हानियाँ (Disadvantages of surface irrigation)
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सतही सिंचाई विधि में जल उपयोग दक्षता कम हो जाती है.
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इस विधि से जल की काफी मात्रा की क्षति होती है.
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इस विधि द्वारा खेत में अधिक पानी दिये जाने के कारण जल स्तर की वृद्धि एवं निछालन क्रिया द्वारा पोषक तत्वों के नष्ट होने की संभावना रहती है.
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आवश्यकता से अधिक पानी दिये जाने के कारण जलभराव होने तथा भूमि के ऊसर बनने की सम्भावना रहती है.
बौछारी सिंचाई के लाभ (Benefits of Sprinkler Irrigation)
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इस विधि से सिंचाई की नालियों एवं मेड़ों के बनाने एवं उनके रख-रखाव की आवश्यकता नहीं पड़ती है, जिससे कृषि योग्य भूमि, श्रम एवं लागत की बचत होती है.
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नालियों से जल प्रवाह के समय होने वाली पानी की क्षति नहीं हो पाती है.
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पानी के नियंत्रित प्रयोग के कारण सिंचाई दक्षता में वृद्धि होती है.
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इस विधि से सिंचाई में जल स्त्रोत से अधिक ऊँचाई वाले स्थानों की सिंचाई की जा सकती है.
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कम सिंचाई जल से अधिक सिंचाई की जा सकती है.
ड्रिप सिंचाई विधि (Drip Irrigation Method)
इस विधि के अन्तर्गत स्त्रोत से नियंत्रित जल प्रवाह पाइप द्वारा प्रवाहित किया जाता है. इस पाइप में छोटे – छोटे छिद्र होते हैं. जिनके द्वारा बूंद-बूंद कर पानी पौधे की जड़ की पास टपकता रहता है. इस विधि का प्रयोग साग-सब्जियों, फूलों, फलदार पेड़ों की सिंचाई के लिए अधिक उपयोगी होता है. इस विधि से सिंचाई करने पर खरपतवार एवं रोगों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है. इससे जहां एक ओर श्रमिकों पर व्यय में भारी बचत होती है, वहीं पर कम जल में अधिक सिंचाई की जा सकती है.
सिंचाई की विधियों का चुनाव करते समय ध्यान देने योग्य बातें (Things to consider while choosing irrigation methods)
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सिंचाई जल से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त हो सके.
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सिंचाई जल का वितरण एक समान सम्पूर्ण क्षेत्र में हो सके.
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भूमि की ऊपरी सतह से हानिकारक लवण सिंचाई द्वारा निचली सतह में चले जाएं, जिससे पौधों पर हानिकारक प्रभाव को कम किया जा सके.
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सिंचाई की चुनी गई विधि में से भू-परिष्करण संबंधित क्रियाओं में कोई व्यवधान ना हो तथा खरपतवारों का नियंत्रण भी आसानी से हो सके.
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सिंचाई के लिए विन्यास तैयार करते समय कम से कम भूमि नष्ट हो.
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सिंचाई मे प्रयुक्त पानी का कम से कम नुकसान हो और आसानी से जड़ क्षेत्र में पहुंच जाए.
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अत्यधिक मूल्यवान उपकरणों की आवश्यकता न हो.
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चुनी गई विधि से अन्य कृषि क्रियाओं में कोई विशेष कठिनाई नहीं होनी चाहिए.
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