भारत में दलहनी फसलों में चने के बाद अरहर का एक प्रमुख स्थान है. बारिश के बाद यानी जुलाई के महीने में अरहर की बुवाई शुरू की जाती है. अरहर की फसल के साथ किसान कई बार दूसरी फसलों की भी बुवाई करते हैं, लेकिन कभी- कभी सही बीज न बोने के कारण कई प्रकार के रोग लग जाते हैं.
ऐसे में किसानों को अरहर की उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए, ताकि फसल को रोगों से बचाया जा सके और कम समय में ज़्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सके. इसी कड़ी में भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान ने अरहर की ऐसी दो नई हाइब्रिड किस्मों (आईपीएच-15-03 और आईपीएच-09-05) को तैयार किया है, जो न केवल कम समय में तैयार होती हैं, बल्कि उकठा जैसे रोगों से भी खुद को बचाती हैं.
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अरहर की नई हाइब्रिड किस्मों की ख़ासियत
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अरहर की ये नई किस्में दूसरी किस्मों के मुकाबले कम समय में तैयार होकर ज्यादा उत्पादन देने की क्षमता रखती हैं.
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अरहर की बुवाई अमूमन जुलाई महीने में की जाती है और कटाई अप्रैल के महीने में होती है, लेकिन आईपीएच-15-03 और आईपीएच-09-05 नवम्बर महीने तक ही पक कर तैयार हो जाती है.
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अरहर की दूसरी किस्मों में बांझपन मोजेक रोग और फ्यूजेरियम विल्ट या उकठा रोग जैसी समस्याएं आती हैं, लेकिन ये दोनों किस्में इन दोनों रोगों की प्रतिरोधी हैं.
20 क्विंटल तक मिलता है उत्पादन
अरहर की दूसरी किस्मों से अमूमन औसत उपज 8 से 10 क्विंटल ही मिलती है, लेकिन अगर आईपीएच-15-03 और आईपीएच-09-05 की बात करें, तो इनसे लगभग 20 क्विंटल तक की उपज मिलती है.
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