भारत के कई राज्यों के किसान मक्के की खेती करते हैं लेकिन कई बार फसल में रोग लग जाते हैं और पूरा उत्पादन घट जाता है. ऐसे में किसानों को फायदे की जगह बहुत नुकसान होता है. आज के इस आर्टिकल में हम आपको मक्के में लगने वाले प्रमुख रोग व उनकी रोकथाम के उपाय बताएंगे, जिन्हें जानकर किसानभाई फसल से अच्छा उत्पादन ले सकेंगे.
मक्के में लगने वाले प्रमुख रोग व रोकथाम
डाउनी मिल्डयू
मक्के के पौधों में अंकुरण के 12 से 15 दिन बाद ही यह रोग दिखाई देना लगता है. इसमें पौधों की पत्तियों पर सफेद रंग की धारियां बन जाती हैं, बाद में पत्तियों पर सफेद रूई जैसे अवशेष दिखाई देते हैं. इस रोग से पौधों का विकास रुक जाता है. इसकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब की व डायथेन एम-45 दवा का छिड़काव करें. इसके अलावा पौध बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करें.
तना सड़न व तना छेदक रोग
इस रोग की शुरुआत में पौधों पर गांठ बनती है. बाद में तने की पोरियों पर जलीय धब्बे बन जाते हैं. इससे पौधों की पत्तियां सूख जाती हैं. वहीं तना छेदक रोग में कीड़ें तने के अंदर छेद बनाकर रहते हैं और अंदर से पौधे को खा जाते हैं. रोग की सुंडी का रंग सफ़ेद दिखाई देता है. कीट का सबसे ज्यादा असर जुलाई-अगस्त के महीनों में दिखाई देता है. तना छेदक रोग की रोकथाम के लिए खेत में 5 से 6 फेरोमोन ट्रैप को लगाएं. पौधों पर कार्बेरिल या मोनोक्रोटोफास या क्लोरपाइरीफास की उचित मात्रा का छिड़काव करें. वहीं तना सड़न से बचाव के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड या एग्रीमाइसीन का छिड़काव करना चाहिए.
तुलासिता रोग
यह फफूंद जनित रोग है. इसमें पत्तियों पर पीली धारियां पड़ जाती हैं और पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद रूई की जैसी फफूंदी दिखाई देने लगती है. जो बाद में लाल भूरे रंग में बदल जाती हैं. इससे पैदावार कम हो जाती है. तुलासिता से बचाव के लिए जिंक मैगनीज कार्बमेट या जीरम की दो किलो मात्रा को पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों पर छिड़काव करें
पत्ती झुलसा रोग
पत्ती झुलसा रोग में पौधे के नीचे की पत्तियां सूखने लगती हैं. पत्तियों पर भूरे-पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं. बाद में पत्तियां सूखने लगती हैं. इससे बचाव के लिए पौधों पर जिनेब या जीरम व नीम के तेल का छिड़काव करें.
गेरूआ रोग
यह रोग अधिक नमी की वजह से फैलता है. इससे पत्तियों पर स्लेटी भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जिन्हें छूने पर स्लेटी रंग का पाउडर चिपक जाता है. बाद में पौधों की पत्तियां पीली होकर नष्ट हो जाती हैं. इसकी रोकथाम के लिए बीजों को रोपाई से पहले मेटालेक्सिल से उपचारित करें व फसल में मेन्कोजेब का छिड़काव करें.
पत्ती लपेटक कीट
इस रोग में कीट पौधों की पत्तियों को लपेटकर उनके अंदर सुरंग बनाकर रहते हैं साथ ही पत्तियों का रस चूसते हैं. इससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं बाद में इनमें जाली पड़ जाती है. इससे बचाव के लिए मोनोक्रोटोफास, क्लोरपाइरीफास या क्यूनालफास की उचित मात्रा का प्रयोग करें.
दीमक रोग
यह रोग बीजों के अंकुरण से लेकर फसल पकने के दौरान तक पौधों पर अपना असर दिखाता है. इसके कीट पौधों की जड़ों को नष्ट कर देते हैं जिससे पौधा सूख जाता है और फसल उत्पादन नहीं होता. इससे बचाव के लिए बीजों को रोपाई से पहले फिप्रोनिल से उपचारित करें. खड़ी फसल में रोग दिखने पर क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. का छिड़काव करें.
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सूत्रकृमि
यह सबसे खतरनाक रोगों में से एक है. इसके लार्वा जमीन में रहकर पौधों को खत्म करते हैं. इसके लार्वा बेलनाकार होते हैं और पौधों की जड़ों को नष्ट कर देते हैं. इससे बचाव के लिए पौधों की बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करें और मिट्टी को धूप लगाएं.
नोट: ऊपर बताई गई सभी दवाएं आप कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के बाद उचित मात्रा में उपयोग कर सकते हैं.
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