Radish Farming: भोजन हमारे जीवन की मूल आवश्यकताओं में से एक है. जोकि कई खाद्य पदार्थो से बनता है. इस मिश्रण में आमतौर पर अनाज, दलहन, तिलहन, शाक, सब्जियां, फल, मसालें, दूध या दूध से बने पदार्थ, मांस, मछली और अंडा आदि शामिल होते हैं. वही, किसी फसल की खेती और उपज की कीमत तय करने में कई कारक शामिल होते हैं. जैसे- उपज में पाया जाने वाला पौष्टिक गुण, मांग और आपूर्ति, खेती लागत, ग्राहक के लिए इसकी धारणा और बिक्री से जुड़ी लागतें आदि. हालांकि, कई अनाज, शाक, सब्जी और फल ऐसे भी हैं जो पौष्टिक गुणों से भरपूर होते हैं, लेकिन फिर भी उनकी खेती, कीमत और सेवन के मामले में वह तरजीह नहीं मिलती है जोकि मिलनी चाहिए. जिसके पीछे की मुख्य वजह उनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व एवं महत्व के बारे में उपभोक्ताओं के पास जानकारी का अभाव होना है.
इसी बात को ध्यान में रखते हुए कृषि जागरण एवं एग्रीकल्चर वर्ल्ड के संस्थापक एवं प्रधान संपादक एमसी डोमिनिक ने फार्मर द जर्नालिस्ट, फार्मर फर्स्ट, आरएफओआई, फार्मर द ब्रांड, एजेएआई (अजय), एफटीबी आर्गेनिक और एमएफओआई अवार्ड्स के भांति किसानों को संबल प्रदान करने के उद्देश्य से एक पहल किया है. इस पहल के अंतर्गत कृषि, उपज में पाए जाने वाले पोषक तत्व एवं उनके महत्व के बारे में किसानों और उपभोक्ताओं को कृषि जागरण के सभी डिजिटल एवं सोशल प्लेटफॉर्म पर विस्तार से बताया जाएगा. इसी क्रम में आज इस आर्टिकल में हम आपको मूली की सफल खेती का तरीका एवं फसल प्रबंधन, मूली में पाए जाने वाले औषधीय गुण और मूली का सेवन क्यों करना चाहिए, इसके बारे में आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं...
देश-दुनिया में मूली की खेती का महत्व और उत्पादन
मूली को उसके कुरकुरी बनावट और तीखी स्वाद के कारण पारंपरिक रूप से सलाद, सैंडविच और गार्निश के रूप में ताजा खाया जाता है. जानकारी के अनुसार, मूली उत्पत्ति स्थान भारत तथा चीन देश को माना जाता है. यही वजह है ये दोनों देश मूली उत्पादन के मामले में टॉप पर आते हैं. मूली उत्पादन में चीन पहले स्थान पर आता है. जबकि, दूसरे नंबर पर भारत का नाम है. राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) के अनुसार, साल 2021-22 के दौरान देश में 3300 टन मूली का उत्पादन किया गया था. वहीं, भारत में मूली उत्पादन के मामले में हरियाणा, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और तमिलनाडु टॉप 10 राज्यों में शामिल हैं. इन राज्यों में सबसे ज्यादा मूली का उत्पादन होता है.
मूली में पाए जाने वाले औषधीय गुण
मूली विटामिन बी6, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीशियम और राइबोफ्लेविन का अच्छा स्रोत है. साथ ही इसमें एस्कॉर्बिक एसिड, फोलिक एसिड और पोटेशियम भी भरपूर मात्रा में होता है. मूल का रंग और आकार कई तरह का होता है, जो किस्म, जलवायु परिस्थितियों और मिट्टी पर निर्भर करता है. मूली कई बीमारियों के मरीजों के लिए बड़ी फायदेमंद होती है. बवासीर और मधुमेह के रोगियों इससे काफी लाभ पहुंचता है.
मूली का सेवन क्यों करना चाहिए?
मूली खाने के कई फायदें हैं. ये वजन खटाने से लेकर इम्यूनिटी बढ़ाने में कारगर है. मूली खाने से वेट लॉस होता है. क्योंकि, इसमें कम कैलोरी और हाई फाइबर होता है. इसी तरह मूली पाचन को सुधारने में भी मदद करता है. जबकि, इससे डायबिटीज भी कंट्रोल होती है. चूंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एनर्जी मेटाबॉलिज्म को बेहतर बनाने की शक्ति होती है. ऐसे में डायबिटीज पेशेंट को फाइबर युक्त आहार खाने की सलाह दी जाती है. मूली नींद को सुधारने का काम भी करती है. इसके सेवन से हड्डियां भी मजबूत होती हैं. क्योंकि, इसमें कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है.
मूली की सफल खेती कैसे करें?
मूली की फसल बीज बोने के 1 माह में तैयार हो जाती है. सलाद में एक प्रमुख स्थान रखने वाली मूली स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभकारी, गुणकारी महत्व रखती है। साधारणतः इसे हर जगह आसानी से लगाया जा सकता है. मूली अधिक तापमान के प्रति सहनशील है, किन्तु सुगंध विन्यास और आकार के लिए ठंडी जलवायु कि आवश्यकता होती है. अधिक तापमान के कारण जड़ें कठोर और चरपरी हो जाती हैं. मूली कि सफल खेती के लिए 10-15 डिग्री सेल्सियस तापमान सर्वोत्तम माना गया है. आज के समय में यह कहना कि मूली सिर्फ इसी मौसम में लगाई जाती है या लगाई जाना चाहिए, उचित नहीं होगा. क्योंकि मूली हमें हर मौसम व समय में उपलब्ध हो जाती है.
भूमि: मूली के उत्तम उत्पादन के लिए रेतीली दोमट और दोमट भूमि अधिक उपयुक्त रहती है. मटियार भूमि मूली कि फसल उगाने के लिए अनुपयुक्त रहती है. क्योंकि इसमें जड़ों का समुचित विकास नहीं हो पाता है. बीज उत्पादन के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पानी के निकास की उचित व्यवस्था हो एवं फसल के लिए प्रर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ उपलब्द्य हो. मृदा गहराई तक हल्की, भुरभुरी व कठोर परतों से मुक्त होनी चाहिए. उसी खेत का चयन करें जिसमें पिछले एक वर्ष में बोई जाने वाली किस्म के अलावा कोई दुसरी किस्म बीज उत्पादन के लिए ना उगाई गई हो.
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भूमि की तैयारी: 5-6 जुताई कर खेत को तैयार किया जाए. मूली के लिए गहरी जुताई कि आवश्यकता होती है क्योंकि इसकी जड़ें भूमि में गहरी जाती है. गहरी जुताई के लिए ट्रेक्टर या मिटटी पलटने वाले हल से जुताई करें इसके बाद दो बार कल्टीवेटर चलाएं, जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं.
बुवाई: मूली साल भर उगाई जा सकती है फिर भी व्यवसायिक स्तर पर इसे मैदानों में सितम्बर से जनवरी तक और पहाड़ों में मार्च से अगस्त तक बोया जाता है. साल भर मूली उगाने के मूली का प्रजातियों के अनुसार उनकी बुवाई का समय का चुनावकिया जाता है. जैसे कि मूली की पूसा रश्मि पूसा हिमानी का बुवाई का समय मध्य सितम्बर है तथा जापानी सफेद एवं व्हाईट आइसीकिल किस्म कि बुवाई का समय मध्य अक्टूबर है तथा पूसा चैत्की कि बुवाई मार्च के अंत समय में करते है तथा पूसा देशी किस्म कि बुवाई अगस्त माह के मध्य में की जाती है.
खाद एवं उर्वरक: मूली की अच्छी उपज लेने के लिये भूमि में 15 से 20 टन गोबर की सड़ी खाद बुवाई के 15 दिन पहले खेत में डाल देना चाहिए. इसके अतिरिक्त 80 से 100 किग्रा नत्रजन, 40-60 किग्रा फास्फोरस और 80-90 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है. नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय ही डाल देनी चाहिए तथा बचे हुए आधे नत्रजन को दो बार में देना लाभदायक होता है.
सिचाई: वर्षा ऋतू कि फसल में सिचाई कि कोई आवश्यकता नहीं है. लेकिन गर्मी वाली फसल में 4-5 दिन के अंतर से सिचाई करें जबकि सर्दी वाली फसल में 10 से 15 दिन के अंतर से सिचाई करनी चाहिए.
उन्नत किस्म: अन्य फसलों व सब्जियों की ही तरह मूली की भरपूर पैदावार के लिए आवश्यक होता है कि कृषक भाई उन्नत जाति का चयन करें, मूली की उन्नत किस्मों में प्रमुख हैं- पूसा हिमानी, पूसा चेतवी, पूसा रेशमी, हिसार मूली नं. 1, पंजाब सफेद, रैपिड रेड, व्हाइट टिप आदि. पूसा चेतवी जहां मध्यम आकार की सफेद चिकनी मुलायम जड़ वाली है, वहीं यह अत्यधिक तापमान वाले समय के लिए भी अधिक उपयुक्त पाई गई है. इसी तरह पूसा रेशमी भी अधिक उपयुक्त है तथा अगेती किस्म के रूप में विशष महत्वपूर्ण है. इसी तरह अन्य किस्में भी अपना विशेष महत्व रखती हैं तथा हर जगह, हर समय लगाई जा सकती हैं.
मूली की फसल में लगने वाले रोग एवं प्रबंधन
मूली की फसल को एफिड, सरसों की मक्खी, पत्ती काटने वाली सूंडी अधिक हानि पहुंचाती है. इसकी रोकथाम के लिए देसी गाय का मूत्र 5 लीटर लेकर 15 ग्राम के आकार के बराबर हींग लेकर पिस कर अच्छी तरह मिलाकर घोल बनाना चाहिए प्रति 2 ली. पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिड़काव करें.
सफेद गेरुआ रोग: इसमें पत्ती के निचले स्तर पर सफेद फफोले बन जाते है.
रोकथाम: रिडोमिल एम. जेड..78 नामक फफूंदी नाशक को 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
सफेद किट्ट: पत्तियों की निचली सतह पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे दिखाई देते हैं.
रोकथाम: बीज को बोने से पहले अच्छी तरीके से शोधित कर लेना चाहिए. बाविस्टीन, प्रोपीकोनाजोल 1.5-2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
झुलसा रोग: इस रोग में पत्तियों पर गोल.गोल छल्ले के रूप में धब्बे दिखाई पड़ते हैं.
रोकथाम: बीज को बाविस्टीन 1 से 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से सूचित करना चाहिए. मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
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