सब्जी उत्पादक देशों में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है. हमारे देश में पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर समुद्र तल तक विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती की जाती है. सब्जी उत्पादन की नवीनतम तकनीकों का प्रयोग, उन्नत किस्मों का चुनाव, जलवायु परिवर्तन के अनुरूप खेती, सिंचाई एवं पोषक तत्व प्रबंधन, कीट एवं बिमारियों का उचित प्रबंधन एवं सब्जी उत्पादन के अन्य पहलुओं को ध्यान में रखकर रबी सब्जियों की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है
किस्मों का चुनाव
अधिक उपज के लिए उपयुक्त नवीनतम उन्नतशील किस्मों की बुवाई करनी चाहिए.
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 क्र.सं.  | 
 फसल  | 
 उन्नत किस्में  | 
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 1  | 
 फूलगोभी  | 
 पिछेती: पूसा स्नोबाल 1, पूसा स्नोबाल के-1, पूसा स्नोबाल हाइब्रिड-1  | 
| 
 2  | 
 पत्तागोभी  | 
 पिछेती किस्में: पूसा ड्रमहेड, लेट ड्रमहेड, सलेक्शन-8, हाइब्रिड-10  | 
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 3  | 
 ब्रोकोली  | 
 ग्रीन स्प्रॉउटिंग: पालम समृद्धि, पूसा ब्रोकोली के टी एस-1, पंजाब ब्रोकोली-1 पर्पल हैडिंग: पालम विचित्रा येलोइश ग्रीन हैडिंग: पालम कंचन  | 
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 4  | 
 टमाटर  | 
 पूसा सदाबहार, पूसा रोहिणी, पूसा-120, पूसा गौरव, पी.एच.-8, पी.एच.-4, पी.एच.-2  | 
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 5  | 
 प्याज  | 
 पूसा रेड, पूसा माधवी, एग्रीफॉउन्ड लाइट रेड  | 
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 6  | 
 लहसुन  | 
 यमुना सफेद (जी-1), यमुना सफेद-2 (जी-50), जी-282, जामनगर सफेद, एग्रीफाउंड पार्वती, एग्रीफाउंड वाइट (जी-41), एच जी-1, एच जी- 6, एल सी जी-1, गोदावरी तथा श्वेता  | 
| 
 7  | 
 मूली  | 
 वाइट आइसिकिल, रैपिड रेड वाइट टिप्ड, पूसा मृदुला, पूसा देसी, जापानी सफेद, पूसा हिमानी, पूसा चेतकी, पालम ह्रदय, पूसा जमुनी, पूसा गुलाबी, पूसा श्वेता  | 
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 8  | 
 गाजर  | 
 पूसा रुधिरा, पूसा आसिता, पूसा वसुधा, पूसा कुल्फी, पूसा मेघाली, पूसा यमदग्नि, नैन्टीज, पूसा नयन ज्योति  | 
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 9  | 
 मटर  | 
 अगेती किस्में: आर्किल, मिटियोर, पूसा प्रभात (डी.डी.आर-23), पूसा पन्ना (डी.डी.आर-27), आजाद मटर-5 मध्यम किस्में: बौनविले, जवाहर मटर-1, जवाहर मटर-2, जवाहर मटर-3, पंत उपहार, आजाद मटर-1, पी.एस.एम. -3 पछेती किस्में: स्वर्ण रेखा, एन. पी. -29  | 
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 10  | 
 पालक 
  | 
 आलग्रीन, पूसा हरित, पूसा ज्योति, पंत कम्पोजिट-1, एच.एस. -23, पूसा भारती, जोबनेर ग्रीन  | 
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 11  | 
 मेथी 
  | 
 राजेन्द्र क्रांति, हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा, हिसार माधवी, हिसार मुक्ता, अजमेर मेथी-1, अजमेर मेथी-2, आरएमटी-1, पूसा अर्ली बंचिंग, कसूरी मेथी, लेम सेलेक्शन-1, पंत रागिनी, गुजरात मेथी-1, गुजरात मेथी-1  | 
बुवाई
रबी सब्जियों की बुवाई सितम्बर-नवम्बर माह में फसल के प्रकार, बाजार की मांग के अनुसार तथा किस्म के आधार पर करते हैं. मूली, गाजर, पालक, मेथी तथा मटर की बुवाई सीधी खेत में करनी चाहिए. प्याज, टमाटर तथा गोभीवर्गीय सब्जियों की बुवाई के लिए सर्वप्रथम पौध तैयार की जाती है. प्याज की पौध 6-7 सप्ताह तथा टमाटर तथा गोभीवर्गीय सब्जियों की पौध 4-5 सप्ताह में रोपण योग्य हो जाती हैं. रबी सब्जियों की पौध सितम्बर माह में तैयार की जाती है.
बीज दर, बुवाई की दूरी तथा उपज
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 क्र.सं.  | 
 फसल  | 
 बीज दर (प्रति हेक्टेयर)  | 
 बुवाई की दूरी (से.मी.)  | 
 अनुमानित उपज (क्विंटल/हेक्टेयर)  | 
|
| 
 कतार से कतार  | 
 पौधे से पौधे  | 
||||
| 
 1  | 
 फूलगोभी  | 
 पिछेती: 300 ग्राम  | 
 60  | 
 45  | 
 250-300  | 
| 
 2  | 
 पत्तागोभी  | 
 पिछेती: 375-400 ग्राम  | 
 60  | 
 45  | 
 400-500  | 
| 
 3  | 
 ब्रोकोली  | 
 350 ग्राम  | 
 45  | 
 45  | 
 200-250  | 
| 
 4  | 
 टमाटर  | 
 संकर किस्में: 200-250 ग्राम अन्य किस्में: 350-400 ग्राम  | 
 45-60 
  | 
 30-45  | 
 संकर किस्में: 450-550 अन्य किस्में: 200-250  | 
| 
 5  | 
 प्याज  | 
 8 किग्रा  | 
 15  | 
 10  | 
 250-300  | 
| 
 6  | 
 लहसुन  | 
 500 किग्रा कलियां  | 
 15  | 
 10  | 
 120-150  | 
| 
 7  | 
 मूली  | 
 8-10 किग्रा  | 
 30  | 
 10  | 
 300-400  | 
| 
 8  | 
 गाजर  | 
 5-8 किग्रा  | 
 30  | 
 10  | 
 250-300  | 
| 
 9  | 
 मटर  | 
 अगेती: 100-125 किग्रा पछेती: 75-80 किग्रा  | 
 30-45  | 
 10  | 
 अगेती: 30-40 पछेती: 80-90  | 
| 
 10  | 
 पालक  | 
 25- 30 किग्रा  | 
 15-20  | 
 7-8  | 
 150-200  | 
| 
 11  | 
 मेथी  | 
 15- 20 किग्रा  | 
 25  | 
 10  | 
 70-90  | 
खाद एवं उर्वरक
गुणवत्तापूर्ण उपज प्राप्त करने के लिए खाद एवं उर्वरकों की संतुलित मात्रा के साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग भी करना चाहिए.
| 
 क्र.सं.  | 
 फसल  | 
 उर्वरक (किग्रा/हेक्टेयर)  | 
 प्रयोग का समय  | 
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| 
 नत्रजन  | 
 फॉस्फोरस  | 
 पोटाश  | 
|||
| 
 1  | 
 फूलगोभी  | 
 120  | 
 100  | 
 60  | 
 नत्रजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा शेष नत्रजन को बराबर दो हिस्सों में बांटकर पहला हिस्सा रोपण के एक महीने पश्चात तथा दूसरा हिस्सा फूल बनते समय पौधों में मिट्टी चढ़ाते समय मिलाएं.  | 
| 
 2  | 
 पत्तागोभी  | 
 120  | 
 60  | 
 60  | 
 नत्रजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा शेष नत्रजन की मात्रा रोपण के एक महीना पश्चात और एक चौथाई भाग शीर्ष बनने की स्थिति में मिट्टी चढ़ाते समय भूमि में मिला दें.  | 
| 
 3  | 
 ब्रोकोली  | 
 120  | 
 75  | 
 50  | 
 खेत की अंतिम तैयारी के समय नत्रजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा भूमि में मिला दें तथा शेष आधी नत्रजन की मात्रा बराबर भागों में बांटकर दो बार में रोपण से 20-40 दिन बाद भूमि में मिलाएं.  | 
| 
 4  | 
 टमाटर  | 
 
  | 
 
  | 
 
  | 
 नत्रजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा शेष नत्रजन की मात्रा रोपण के 45 दिन पश्चात टॉप ड्रेसिंग द्वारा खड़ी फसल में देनी चाहिए.  | 
| 
 5  | 
 प्याज  | 
 100  | 
 40  | 
 60  | 
 नत्रजन की एक तिहाई मात्रा व फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में बराबर बांटकर रोपाई के 30-40 दिन एवं 65-70 दिन बाद पर्णीय छिड़काव द्वारा खड़ी फसल में देनी चाहिए.  | 
| 
 6  | 
 लहसुन  | 
 80  | 
 60  | 
 60  | 
 नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नत्रजन की शेष मात्रा 30 दिन पश्चात खड़ी फसल में देकर गुड़ाई कर दें.  | 
| 
 7  | 
 मूली  | 
 80  | 
 50  | 
 40  | 
 नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय तथा नत्रजन की शेष आधी नत्रजन जड़ बनते समय मिट्टी चढ़ाते समय डालें.  | 
| 
 8  | 
 गाजर  | 
 100  | 
 60  | 
 60  | 
 नत्रजन की आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय तथा नत्रजन की शेष बची आधी मात्रा बुवाई के लगभग एक माह पश्चात दें.  | 
| 
 9  | 
 मटर  | 
 40  | 
 60  | 
 50  | 
 नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नत्रजन की शेष मात्रा 30-40 दिन पश्चात दें.  | 
| 
 10  | 
 पालक 
  | 
 100  | 
 50  | 
 50  | 
 नत्रजन की एक चौथाई मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटॉश की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय तथा शेष नत्रजन बराबर मात्रा में बांटकर प्रत्येक कटाई के बाद देनी चाहिए  | 
| 
 11  | 
 मेथी 
  | 
 20-25  | 
 40-50  | 
 20-30  | 
 नत्रजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय तथा शेष नत्रजन की आधी मात्रा को बुवाई के 30-35 दिन बाद एवं बची मात्रा को पुष्पन के समय देनी चाहिए  | 
उर्वरकों की उपरोक्त मात्रा के अतिरिक्त खेत की तैयारी के समय 20-25 टन भली-भांति सड़ी गली गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देनी चाहिए.
सिंचाई प्रबंधन
सिंचाई की मात्रा भूमि के प्रकार, वर्षा एवं मौसम पर भी निर्भर करती है. अत्यधिक सिंचाई करने से फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. सामान्यतः सिंचाई 12-15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. फसल में आवश्यकता से अधिक पानी एकत्र होने पर पानी को खेत से निकलने का उचित प्रबंध होना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
पौधों के उचित विकास के लिए खरपतवार नियंत्रण अति आवश्यक होता है. खेत में खरपतवार रहने से सब्जियों की पैदावार में लगभग 20-50 प्रतिशत तक कमी आती है तथा गुणवत्ता भी प्रभावित होती है जिससे बाजार में भाव कम मिलता है. अतः खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की भली-भांति जुताई कर बुवाई/रोपाई करनी चाहिए. संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए तथा बुवाई/रोपाई के 30-40 दिन बाद तथा 45-50 दिन बाद निराई गुड़ाई कर खरपतवारों को निकाल देना चाहिए.
एकीकृत कीट प्रबंधन
एकीकृत कीट प्रबंधन के अंतर्गत सब्जियों की कीट अवरोधी एवं सहनशील किस्मों की बुवाई करनी चाहिए. सब्जियों की बुवाई/रोपाई ऐसे समय करें जबकि पौधें की नाजुक अवस्था एवं कीट की निष्क्रिय अवस्था समानान्तर हो. कीड़ों को आकर्षित करने वाली दूसरी फसलें लगनी चाहिए. गोभी की हरी सूंडी को आकर्षित करने के लिए सरसों की बुवाई करनी चाहिए. टमाटर में फल छेदक के लिए गेंदा की बुवाई करनी चाहिए.
एकीकृत रोग प्रबंधन
सब्जियों को रोगों से बचाने के लिए रोग सहनशील किस्मों को उगाना चाहिए. बुवाई से पूर्व बीजों को ट्राईकोडर्मा (4-5 ग्राम/किग्रा बीज) या बाविस्टीन (2 ग्राम/किग्रा बीज) की दर से उपचारित कर बोना चाहिए. खेत को खरपतवारमुक्त रखें एवं विषाणु रोगों से प्रभावित पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए. उपयुक्त फसल चक्र अपनाना चाहिए.
इस प्रकार रबी मौसम में सब्जियों की खेती वैज्ञानिक पद्धति से करके अधिक उपज एवं लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
लेखक: डॉ. पूजा पंत, सहायक प्राध्यापक, कृषि संकाय, एस.जी.टी. विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, हरियाणा 
                    
                    
                    
                    
                        
                        
                        
                        
                        
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