समय के साथ खेती करने के तरीकों में भी बदलाव हुआ है. आज के समय में इंटरक्रॉपिंग किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. इंटरक्रॉपिंग यानि कि दो या दो से अधिक फसलों को एक ही समय में एक ही स्थान पर उगाना. इस तकनीक का इस्तेमाल कर किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. आजकल कृषि विशेषज्ञ गन्ने की खेती के साथ इंटरक्रॉप फसलों की खेती की सलाह दे रहे हैं.
गन्ना लंबी अवधि का फसल है. उन्नत तरीके से बुवाई की जाए तो गन्ने की फसल आने में करीब 12 से 14 महीने का समय लगता है, यानि कि किसानों को उपज मूल्य के लिए एक साल का इंतजार करना पड़ता है. ऐसे में गन्ने की फसल के साथ इंटर क्रॉपिंग एक अच्छा विकल्प है. इससे किसानों की प्रति एकड़ आमदनी में इजाफा होता है.
चलिए जानते हैं कि आप गन्ने के साथ कौन-कौनसी फसल उगा सकते हैं?
गन्ने की फसल के साथ विभिन्न सब्जियों प्याज, लौकी, खीरा, भिंडी की खेती कर सकते हैं. वहीं बसंतकालीन गन्ने के साथ दलहनी फसलें उड़द, मूंग, लोबिया की इंटरक्रॉपिंग लाभदायक होती है. इससे प्रति एकड़ 40 से 50 हजार तक मुनाफा होगा. सहफसली खेती में खेत के एक पंक्ति में गन्ना और दूसरी कतार में दलहनी फसलें बोई जाती हैं. गन्ने की फसल ढाई से तीन महीने तक छोटी ही रहती है, ऐसे में उड़द-मूंग की फसल को पर्याप्त धूप मिलती है और पौधों का अच्छे से विकास होता है. दलहनी फसलें 75 से 80 दिनों में तैयार हो जाती हैं. अच्छी बात यह है कि इन फसलों में अलग से पानी भी नहीं देना होता.
कैसे करें बुवाईः
बसंतकालीन गन्ने के साथ दलहनी फसलों की खेती करना सबसे अच्छा है. बसंतकालीन गन्ने की फसल 15 फरवरी से 15 मार्च तक के बीच होती है. इसके लिए दोमट मिट्टी का खेत सबसे अच्छा होता है. गन्ने के साथ दलहन उगाने के लिए 90 सेंटीमीटर पंक्ति वाले गन्ने में दो लाइन उड़द व मूंग या अन्य दलहनी फसल बोएं, यदि गन्ने की पंक्ति की दूरी 75 से 60 सेंटीमीटर हो, तो उसके बीच में एक पंक्ति में दलहनी फसल बोएं. इस तरह मिश्रित खेती से कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.
मिश्रित खेती से मिलेंगे ये फायदे-
गन्नों को मिलेगी भरपूर नाइट्रोजनः गन्ने के साथ दलहन की इंटरक्रॉपिंग का सबसे बड़ा फायदा यह है कि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा भरपूर रहती है. गन्ने में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए यूरिया डाला जाता है लेकिन दलहनी फसलों में ये क्षमता होती है कि वह वातावरण की ही नाइट्रोजन को अपनी जड़ों में समेट लेती हैं. दलहनी फसलों की कटाई के बाद इनकी जड़ों में इकट्ठा किया गया नाइट्रोजन गन्ने की जरूरत को पूरा करेगा.
इंटरक्रॉपिंग से गन्ने का उत्पादन बढ़ेगा, कम लागत में दलहन का भी उत्पादन होगा.
मृदा से नमी, पोषक तत्व का भरपूर उपयोग हो सकेगा.
कम पूंजी, कम पानी व उर्वरक में दोनों फसलों का उत्पादन होगा.
दलहनी फसलों के अवशेष का हरी खाद के रुप में उपयोग हो सकेगा.
सहफसली के लिए उन्नत किस्मेः
गन्ने की सहायक फसल के रूप में मूंग की 15 से 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुवाई होना चाहिए. अच्छे उत्पादन के लिए मूंग की एसएमएल – 668, आईपीएम 2 – 3, मालवीय – 16, सम्राट किस्मों का उपयोग करें. सहायक फसल के रूप में उड़द की खेती के लिए माश-479, आजाद उड़द-2, शेखर-2, आईपीयू 2-43, सुजाता, नरेन्द्र उड़द-1, आजाद उड़द-1, उत्तरा, आदि प्रमुख किस्मों की बुवाई कर सकते हैं. साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र से भी जानकारी हासिल कर सकते हैं.
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