सभी जानते हैं, Coronavirus outbreak की वजह से ही देशभर में लॉकडाउन लगा हुआ है. इससे सभी तरह के व्यवसाय और वर्ग के लोग प्रभावित हुए हैं. इन्हीं में जहां कुछ किसान अपनी फसल की खरीद न होने से परेशान हैं, तो कुछ उनकी कटाई-तुड़ाई न कर पाने की वजह से गहरी चिंता में हैं. जहां सरकार (central government) ने इस बीच किसानों और खेती से जुड़े लोगों को कई सुविधाएं और राहत दी है, वहीं अभी भी कई लोग मजबूर हैं. कुछ ऐसा ही हाल महाराष्ट्र के किसानों (Maharashtra farmers) का इस समय है. देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की सबसे बड़ी संख्या वाले इस राज्य में आम की खेती करने वाले किसान और बागवान इस समय इस कोरोना महामारी को कोस रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि COVID- 19 की वजह से ही उनकी मेहनत बर्बाद होने की कगार पर है.
महाराष्ट्र के कुछ आम बागवान इस समय अपने उत्पादन को बाजार तक नहीं ले जा पा रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि आम अभी तक पेड़ों पर ही हैं. जी हां, अभी तक कई जगह आम की तुड़ाई नहीं हो पायी है. पक कर तैयार फल पेड़ से टूटकर खेतों में ही गिर रहे हैं.आपको बता दें कि अप्रैल से लेकर मई, आम के बाजार का पीक सीजन (mango season) होता है. इसके बाद भी इस दौरान आम की खेती करने वाला किसान और बागवान कोरोना की मार झेल रहा है.
क्या है इसकी वजह?
महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग के किसान गुड्डू का कहना है, "हमारे पास लगभग 40 एकड़ में आम की खेती होती है, इस बार लगता है सब बर्बाद हो जाएगा, पूरी मेहनत मिटटी में मिल जाएगी. अब करें भी तो क्या करें साहब, सब बंद है, अभी आम टूटे तक नहीं हैं, कोई मिल नहीं रहा है तुड़ाई के लिए." आपको बता दें कि लॉकडाउन की वजह से ही सभी मजदूर अपने-अपने घर को जा चुके हैं और जो हैं भी वो आ नहीं सकते. इन आम के बगीचों में फलों की तुड़ाई (HARVESTING) न हो पाने की सबसे बड़ी वजह यही है कि जो मजदूर इस काम के लिए आते थे, वे ज्यादातर उत्तर प्रदेश के होते थे. ऐसे में अब उनके न होने पर आम उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
कम कीमत में भी उत्पादन बेचने को भी मजबूर
वहीं जिन बागवानों ने आम की तुड़ाई कर ली है, उनके लिए भी मुश्किलें हैं. उन्हीं उत्पादन बेचने के लिए ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा नहीं मिल पा रही है. ऐसे में जैसे-तैसे उत्पादन को बिक्री के लिए आगे बढ़ाने वाले लोगों को उन के गाढ़े पसीने की सही कमाई नहीं मिल पा रही है. अच्छे उत्पादन के बाद भी उन्हें आम के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं और बागवान कम कीमत में उपज आम बेचने को मजबूर हैं.
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