देश में सभी अनाज उत्पादनों में मक्के (Maize Production) का प्रमुख स्थान है. इसकी खेती देश के लगभग सभी राज्यों में होती है. मक्का को खरीफ़ फसल (Kharif Season) कहा जाता है, जो विश्व स्तर पर भी उगाई जाती है. कई क्षेत्रों में मक्के की खेती रबी (Rabi Season) के समय में भी की जाती है.
यह अनाज मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है, साथ ही यह पशुओं का मुख्य आहार है. बता दें कि भारतीय मक्का अनुसंधान केंद्र (ICAR-Indian Institute Of Maize Research) ने साल 2000 से 2017 तक लगभग 100 मक्के की किस्में विकसित की हैं. इन किस्मों से किसानों को मक्के की खेती में काफी मदद मिली है. अगर किसान आधुनिक तकनीक और उन्नत किस्मों से खेती करे, तो इसकी फसल से बहुत अच्छी आमदनी हो सकती है.
मक्के की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for maize crop)
मक्का की खेती को कई तरह की जलवायु में कर सकते हैं, लेकिन ऊष्ण क्षेत्रों में मक्के की फसल की वृद्धि, विकास और उपज अच्छी होती है. यह गर्म ऋतु की फसल है, इसलिए फसल के जमाव के वक्त तापमान अधिक होना चाहिए.
मक्के की फसल के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for maize cultivation)
मक्के की फसल को लगभग सभी प्रकार की भूमि में लगा सकते हैं, लेकिन इसकी अच्छी बढ़वार और उत्पादकता के लिए दोमट और मध्यम से भारी मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. इसके अलावा भूमि में पर्याप्त मात्रा में जीवांश और उचित जल निकास का प्रबंध होना चाहिए.
मक्के की अंतवर्तीय फसलें (Intercrops of maize)
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मक्का + उड़द, ग्वार औऱ मूंग
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मक्का + सेम, भिण्डी, बरवटी और हरा धनिया
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मक्का + तिल, सोयाबीन आदि
मक्का के बीज बिजाई की दूरी (Sowing distance of maize seed)
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मक्के के बीज को हाथों या सीड ड्रिल द्वारा बोना चाहिए.
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बीज को कतारों या मेड़ों पर बोएं, जिनकी दूरी लगभग 70-75 सेंटीमीटर रखें. ध्यान दें कि बीज से बीज का अंतर लगभग 22 सेंटीमीटर की होनी चाहिए.
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बीजों की गहराई 3-5 सेंटीमीटर की होनी चाहिए.
मक्के की फसल के लिए सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management for Maize Crop)
बसंत या जायद सीजन में फसल को ज़्यादा सिंचाई की जरुरत पड़ती है. फसल की पहली सिंचाई का सही समय बुवाई के 15-20 दिन बाद का होता है. इसके बाद फसल घुटने तक होने पर, नर फूल निकलने पर, भुट्टा बनते समय और दाना भरते समय सिंचाई करना चाहिए. ध्यान दें कि मक्के की फसल में 5-6 बार सिंचाई जरुर करें. अगर फसल की सिंचाई वक्त पर न हो, तो इसका प्रभाव फसल की उपज पर पड़ती है.
मक्के की फसल कटाई (Maize harvest)
मक्के की फसल में जब भुट्टे को ढकने वाले पत्ते पीले या भूरे दिखाई देने लगे, साथ ही दानों की नमी कम हो जाए, तो फसल की काटई कर देना चाहिए.
मक्के की उन्नत किस्में (Improved varieties of maize)
हर राज्य के किसान जलवायु और तापमान के अनुसार मक्के की खेती करते हैं. इसी के आधार पर किस्में उपलब्ध कराई जाती है. किसान भाई अपने क्षेत्र के हिसाब से प्रचलित कंपनियों की संकर किस्में का चयन कर सकते हैं.
मक्के की फसल के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for maize crop)
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खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए.
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इसके बाद 2-3 जुलाई हैरो या देसी हल से करनी चाहिए.
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खेत को समतल करने के लिए हर जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए.
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अगर मिट्टी में नमी कम है, तो पलेवा करके जुताई करें.
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सिंचित अवस्था में लगभग 60 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ बनानी चाहिए, ताकि खेत से पानी आसानी से निकल जाए.
मक्के के बीज उपचार (Maize seed treatment)
मक्का फसल को रोगों से बचाकर रखने के लिए बीज उपचार करना ज़रूरी है. किसानों को पहले बीज उपचार फफूंदीनाशक से करना चाहिए. उपचारण के बाद बीज को सूखा लें.
मक्के की फसल के लिए बुवाई का समय (Sowing time for maize crop)
बसंत ऋतु में मक्का की बुवाई के लिए जनवरी और फरवरी का समय उपयुक्त माना जाता है. ध्यान दें कि इसकी बुवाई में देर हो, ज़्यादा तापमान हो और नमी कम हो, तो बीज कम बनते हैं.
मक्के की पैदावार (Maize Production)
अगर मक्के की खेती आधुनिक तरीके और अच्छी देखभाल के साथ की जाए, तो फसल की काफी अच्छी पैदावार मिलती है. बता दें कि सामान्य किस्म से लगभग 45-55 क्विंटल और संकर किस्म से 60-65 क्विंटल प्रति हेक्टयर पैदावार प्राप्त हो सकती है.
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