ड्राई फ्रूट में अपने गुणों और स्वाद के साथ मखाने का बहुत महत्व है. इसका स्वाद ही ऐसी कि बच्चों से लेकर बूढ़े तक इसे बड़े चाव से खाते हैं. झील, तालाब और दलदली क्षेत्रों में इसे उगाया जाता है. इसमें मौजूद गुणों और स्वाद की वजह से भारत समेत दुनियाभर में मखानों की बहुत ज्यादा खपत और मांग है. अगर मखाने की खेती की जाए तो ये देश की अर्थव्यवस्था और किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है.
मखाने की खेती करके ना केवल अच्छी कमाई का जरिया किसानों को मिलेगा, बल्कि वो इससे बनने वाले प्रॉडक्ट जैसे- नमकीन आदि का बिजनेस भी शुरू कर सकते हैं. इतना ही नहीं, जिन किसानों की जमीन बंजर होने की वजह से या जलभराव के कारण बेकार पड़ी है, उसमें थोड़ा सा काम करके मखाने की खेती कर उपयोग में लाया जा सकता है. देश में बहुत से किसान तालाब पट्टे पर लेकर मखाने की खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें बहुत लाभ मिल रहा है.
मखाने के फायदे (Benefits of Lotus fruit)
मखाने में मौजूद प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, वसा, कैल्सियम, फास्फोरस और खनिज लवण भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसका इस्तेमाल भूनकर खीर, मिठाई, नमकीन आदि बनाने में किया जाता है. इसे भूनकर डायरेक्ट या दूध में पकाकर खाने से कमजोरी दूर होने के साथ-साथ हड्डियां मजबूत होती हैं. इसके सेवन से हाई ब्लड प्रेशर की समस्या दूर होती है, खून की कमी पूरी करने में भी मखाने सहायक होते हैं. इतनी ही नहीं, मखानों में लो ग्लाईसेमिक इंडेक्स मौजूद रहता है जिससे डायबिटीज होने का जोखिम कम रहता है. अत: डायबटीज के मरीजों को लिए मखाने खाना फायदेमंद है.
मखाने का उत्पादन कहां होता है?
भारत में करीब 20000 हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती की जाती है. इसकी सबसे ज्यादा खेती बिहार में होती है, बिहार से कुल उत्पादन का 80 फ़ीसद मखाना आता है. बिहार के मिथिलांचल में मखाने का सबसे ज्यादा उत्पादन किया जाता है. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा और मणिपुर में मखाने की खेती की जाती है. इसके अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मखानों का उत्पादन हो रहा है. अब तो उत्तर प्रदेश में भी कई जगह किसान मखाने की खेती करने लगे हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, तराई और मध्य यूपी के कई इलाकों में मखाने की खेती की जा रही है. उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद में भी कई किसान इसकी खेती कर रहे हैं. भारत के अलावा चीन, जापान और कोरिया में मखानों का उत्पादन किया जाता है.
मखाने की खेती कैसे करें?
मखाने की खेती में लागत ज़्यादा नहीं आती. खेती के लिए कम गहराई वाले तालाबों या झीलों की जरूरत पड़ती है. बंजर जमीन की खुदाई करके उसमें पानी का भराव करने के बाद इसे उपयोग में लाया जा सकता है. मखानों की खेती के लिए करीब 2 से 3 फीट गहरा तालाब भी सही रहती है. इसका मतलब ये है कि अच्छी बारिश वाले इलाकों के साथ-साथ जहां जल संसाधन मौजूद हैं, वहीं बड़ी आसानी से मखाने की खेती का काम किया जा सकता है. मखाने की खेत करने के लिए उसमें 6 से 9 इंच तक पानी जमा रहना चाहिए.
कब करें मखाने की खेती?
वैसे तो इसकी खेती के लिए दिसंबर से जनवरी तक का समय उचित रहता है लेकिन नई कृषि तकनीकि और वैज्ञानिक विधि से उन्नत क़िस्म के मखानों की साल में दो फसलें भी ली जा सकती है. उन्नत किस्म के मखानों की फसल करीब 5 महीनों में तैयार की जा सकती है. सामान्यत: जनवरी में बुवाई के बाद अप्रैल में इस पर फूल आने लगते हैं, जुलाई में फूल पानी पर तैरने लगते हैं, इसके बाद ये पानी में जाकर बैठ जाते हैं, करीब डेढ़ महीने के बाद इसके अक्टूबर महीने में किसान इनके बीजों को उठाकर धूप में सुख लेते हैं. इसके बाद इनकी प्रोसेसिंग की जाती है और बीजों के आधार पर ग्रेडिंग होती है. इसके बाद बीजों को सावधानी से तोड़कर मखाने निकाले जाते हैं.
मखाना उत्पादन में क्या रखें ध्यान?
- ज्यादा गेहरे तालाबों में मखाने निकालने में दिक्कत होती है, कभी-कभी मजदूरों के डूबने का डर रहता है.
- पानी में रहने वाले सांप जैसे जीवों से सावधान रहना चाहिए.
- बीजों से मखाना निकालने के लिए जब उनके छिलके उतारे जाते हैं तो मखानों के टूटने का डर रहता है.
मखानों को कहां बेचे?
आज कल बाजार केवल मंडियों तक ही सीमित नहीं है. इसके किसान ई-कॉमर्स साइट्स पर भी बेच सकते हैं. अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि पर बेच सकते हैं. इसके अलावा थोड़ी पूंजी लगाकर कर इसके प्रॉडक्ट बनाकर भी बाजार में उतार सकते हैं.
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