रबी फसलों की बुवाई भारत में तेजी से चल रही है और गेंहू की फसल इसमें सबसे ऊपर आती है. भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों ने गेंहू की एक नई किस्म करण आदित्य डीबीडब्ल्यू 332 विकसित की है, जो किसानों की आय के साथ-साथ पैदावार में भी बढ़ोतरी करेंगी और इस किस्म में बीमारियों से लड़ने की क्षमता है, जो किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकती है.
(करण आदित्य डीबीडब्ल्यू 332) कितनी देंगी उपज?
गेंहू की करण आदित्य डीबीडब्ल्यू 332 किस्म की बुवाई किसानों के उत्पादन को बढ़ा सकती हैं. इस किस्म की औसत उपज 78.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और संभावित उपज 83 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो गेंहू की पुरानी किस्मों से कहीं ज्यादा है. वहीं किसान अगर गेंहू की इस किस्म की खेती करते हैं, तो वह इसकी पैदावार लगभग 83 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक कर सकते हैं. इसी कारण गेंहू की यह किस्म काफी लोकप्रिय हो रही है.
इस किस्म की खासियत
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गेंहू की ये किस्म पीले और भूरे रतुआ रोग के प्रति पूरी तरह से प्रतिरोधी है.
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इस किस्म की ऊंचाई करीबन 97 सेंटीमीटर होती है और इस किस्म के दानों का वजन लगभग 46 ग्राम होता है.
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गेंहू की इस किस्म को पकने में लगभग 156 दिनों का समय लगता है.
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इस किस्म में उच्च प्रोटीन (12.2%) और उच्च आयरन (39.2 PPM) पाया जाता है, जो हेल्थ के लिए अच्छा स्रोत है.
किन राज्यों में देंगी ज्यादा पैदावार?
गेंहू की ये किस्म किसानों की पहली पंसद इसलिए है, ये कम समय में ज्यादा पैदावार देती हैं और अगर किसान इस किस्म की बुवाई करना सोच रहे हैं तो इन इलाकों में देंगी ज्यादा पैदावार-
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पंजाब
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हरियाणा
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दिल्ली
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राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर)
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उत्तर-पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर)
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जम्मू-कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिले
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हिमाचल प्रदेश
इन सभी क्षेत्रों के लिए यह गेंहू की किस्म मुख्य तौर से बहुत उपयोगी है.
कब करें बुवाई?
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गेंहू की इस किस्म की बुवाई किसान 20 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच कर सकते हैं.
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साथ ही किसान इस किस्म की प्रति हेक्टेयर में 100 किलों बीज में ही काफी अच्छी पैदावार कर सकते हैं.
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अगर किसान इस किस्म की बुवाई कर रहें है तो किस्म को रोगों से दूर रखने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 से 3 ग्राम वीटावैक्स से उपचारित करें.
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बुवाई के समय किसान खेत की मिट्टी की जांच करना बिल्कुल भी ना भूलें.
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इस किस्म को सिर्फ 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है ध्यान रहें ज्यादा सिंचाई ना करें.
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