Integrated Nutrient Management in Rabi Onion: रबी सीजन की शुरूआत हो चुकी है और किसान इस समय रबी की प्रमुख फसलों की बुवाई कार्य में लगे हुए हैं. वहीं, प्याज भी रबी की प्रमुख फसलों में से एक है. मालूम हो कि हमारे देश के कई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्याज का उत्पादन किया जाता है. अगर बात विश्व की करें, तो प्याज उत्पादन के मामले में भारत पूरे विश्व में पहले स्थान पर आता है. साथ ही बाकी देशों को बड़े पैमाने पर प्याज का निर्यात भी करता है. यही वजह है कि मौजूदा वक्त में किसान प्याज की खेती करके अच्छा खासा लाभ तो कमा ही रहे हैं. साथ ही इसमें कई नवाचार और शोध कर कृषि वैज्ञानिक भी किसानों की आय़ बढ़ाने में अपना अहम् योगदान दे रहे हैं.
इसी के मद्देनजर ‘कृषि जागरण’ के फेसबुक प्लेटफॉर्म पर ‘प्याज की अच्छी पैदावार के लिए फसल में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन’ विषय के ऊपर चर्चा की गई. इस विषय पर आयोजित किए गए खास लाइव वेबिनार में ICAR-Directorate of Onion and Garlic Research से वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजीव बलिराम काले और कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड कंपनी की तरफ से संभागीय कृषि वैज्ञानिक अमित कुमार मिश्रा मौजूद रहें. ऐसे में आइए जानते हैं इस कार्यक्रम में क्या कुछ खास रहा-
भारत में प्रति हेक्टेयर प्याज उत्पादकता है कम
इस कार्यक्रम में ICAR-Directorate of Onion and Garlic Research से वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजीव बलिराम काले ने बताया कि प्याज एक बेहद महत्वपूर्ण फसल है, और इसका सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में किया जाता है. ऐसे में अगर प्याज के अच्छे उत्पादन की बात की जाए, तो इसमें फर्टिलाइजर मैनेजमेंट बेहद जरूरी है. क्योंकि भले ही हम प्याज उत्पादन के मामले में पहले स्थान पर आते हों, लेकिन प्रति हेक्टेयर हमारी उत्पादकता काफी कम है. इस समय भारत में प्रति हेक्टेयर औसतन 16 टन प्याज का उत्पादन होता है. जिसको बढ़ाने के लिए पोषक तत्वों का प्रबंधन काफी महत्वपूर्ण है.
डॉ. राजीव ने आगे बताया कि हमारी कोशिश प्रति हेक्टेयर 40 टन प्याज का उत्पादन हासिल करने की है. लेकिन उसके लिए हमें माइक्रो न्यूट्रिएंट या मैक्रो न्यूट्रिएंट का संतुलन बनाए रखना काफी जरूरी है.
प्याज में माइक्रो न्यूट्रिएंट या मैक्रो न्यूट्रिएंट का संतुलन
अगर बात करें मैक्रो न्यूट्रिएंट की, तो इनमें नाइट्रोजन, पोटेशियम, फॉस्फोरस और सल्फर का नाम शामिल है. अक्सर हम एनपीके की बात करते हैं, लेकिन प्याज की फसल में सल्फर की मात्रा भी उतनी ही जरूरी होती है जितनी बाकी पोषक तत्वों की. बता दें कि प्याज में तीखापन सल्फर की वजह से होता है.
सीजन के अनुसार एनपीके(NPK) का अनुपात-
खरीफ सीजन - हमें खरीफ सीजन में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम पोटाश और 50 किलोग्राम फॉस्फोरस के साथ ही 30 किलोग्राम सल्फर की आवश्यकता होती है.
पछेती खरीफ और रबी सीजन - इन दोनों ही सीजन में हमें नाइट्रोजन की मात्रा थोड़ी ज्यादा देनी होती है. इस समयावधि में हम प्याज को 110 किलोग्राम नाइट्रोजन देते हैं, जबकि 40 किलोग्राम फॉस्फोरस, 50 किलोग्राम पोटाश और 30 किलोग्राम सल्फर देना जरूरी है.
फसल में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स को बढ़ाने के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल
मौजूदा वक्त में किसानों के पास घरेलू पशुओं की संख्या कम होती जा रही है. नतीजतन, किसान खेतों में जैविक खाद का इस्तेमाल काफी कम कर रहे हैं जिसके कारण फसलों में माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी देखने को मिल रही है. ऐसे में प्याज की फसल में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स को बढ़ाने के लिए हमें बेसल डोस में 5 टन जैविक खाद भी प्रति हेक्टेयर की मात्रा से इस्तेमाल करना चाहिए या फिर 5 मिली प्रति लीटर माइक्रो न्यूट्रिएंट का मिक्स्चर 45-60 और 75 दिनों के अंतराल में स्प्रे करना चाहिए. ऐसा करने से फसल में माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी नहीं होती है.
फसलों में उर्वरकों की जरूरत और सही मात्रा
अगर बात करें फसलों में उर्वरकों की जरूरत की, तो प्याज की खेती में अलग-अलग समय पर इसकी जरूरत भी अलग-अलग होती है, जैसे- बुवाई के समय शुरूआती दो महीनों में पत्तियों की ग्रोथ ज्यादा होती है जिस वजह से इस दौरान नाइट्रोजन की आवश्यकता बढ़ जाती है. इसीलिए शुरूआती दो महीनों में फसल को नाइट्रोजन देना चाहिए. नाइट्रोजन की खासियत है कि ये पानी में जल्दी घुलता है औऱ फसल को जल्दी मिल जाता है. इसे हम तीन भागों में बांटते हैं. शुरू में जब किसान बेसल डोस देते हैं, तो उन्हें एक तिहाई बेसिल डोस में नाइट्रोजन देना है. फिर इसी तरह 15 दिन और 30-45 दिनों के अंतराल पर कुल तीन बार इस प्रक्रिया को दोहराना है और दो महीनों के बाद हमें नाइट्रोजन देना बिल्कुल बंद करना पड़ेगा. क्योंकि इससे प्याज की गर्दन मोटी हो जाती है और इसके जल्दी सड़ने की संभावना बनी रहती है. जब भंडारण का समय आता है, तो नाइट्रोजन की ज्यादा मात्रा के चलते प्याज के भंडारण में दिक्कत आ सकती है.
वहीं, फॉस्फोरस और पोटाश का इस्तेमाल हम प्याज की फसल में अलग कारणों से करते हैं जैसे रोग प्रतिरोधी क्षमता और जड़ों की ग्रोथ के लिए हम इनका इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि ये पानी में ज्यादा घुलनशील नहीं है जिसकी वजह से ये फसल को भी देरी से मिलता है इसीलिए इसे बेसल डोस के समय फसल को देना है.आखिर में जब ब्लब डेवलेपमेंट शुरू होता है 70-80 दिनों के बाद पानी में घुलनशील पोटाश को आप फसल में दे सकते हैं.
प्याज में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के लिए 4R सिद्धांत
इसके बाद ड़ॉ अमित ने बताया कि देश के ज्यादातर क्षेत्रों में इस समय फॉस्फोरस की काफी ज्यादा कमी है. आज हम खाद्यान्न के मामले में तो आत्मनिर्भर हो चुके हैं. लेकिन तिलहनी फसलों के उत्पादन में अभी भी काफी पीछे हैं, क्योंकि इनमें सल्फर की जरूरत होती है जिसकी कमी हम नीचे दिए चित्रों में देख सकते हैं.
जब हम उर्वरीकरण करते हैं तो हमें जिन सबसे महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए उनमें हमारे 4R के सिद्धांत शामिल है.
1. राइट फर्टिलाइजर – सही उर्वरक का इस्तेमाल
2. राइट क्वांटिटी- उर्वरक की सही मात्रा का इस्तेमाल
3. राइट टाइम - उर्वरक देने का सही समय
4. राइट प्लेस - सही स्थान पर उसे देना
डॉ. अमित मिश्रा ने कहा कि फसलों में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के लिए जैविक खाद बहुत जरूरी है. इस समय किसान उत्पादन पर जोर दे रहे हैं लेकिन उत्पादन जितना जरूरी है उतना ही जरूरी मृदा स्वास्थय भी है. ऐसे में अगर हम सड़े हुए गोबर की खाद जितनी मात्रा में खाद के साथ इस्तेमाल करेंगे तो ये फसलों में भी बेहतर काम करेगा. उन्होंने बताया कि 15 टन गोबर खाद मृदा में 75 किलो नाइट्रोजन की आपूर्ति करता है.
ग्रो-प्लस खाद का उपयोग क्यों करें किसान
वहीं फॉसफोरस की कमी को दूर करने के लिए डॉ. अमित मिश्रा ने ग्रो प्लस के इस्तेमाल की सलाह देते हुए कहा कि इसके अंदर फॉस्फोरस के साथ-साथ सल्फर, बोरोन, जिंक, कैल्शियम आदि जैसे पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं. इसमें 16% फॉस्फेट, 11% सल्फर, 19% कैल्शियम, 0.5% जिंक, 0.2% बोरोन होता है। बात करें ग्रो प्लस के फायदों की तो इसके उपयोग से फसलों की जड़ें मजबूत होती हैं और फसल के समग्र विकास में तेजी आती है. ग्रो प्लस पौधे के तने और वानस्पतिक विकास में मदद करता है इसके अलावा पौधे को पाले और बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और तिलहन में तेल की मात्रा और उपज की गुणवत्ता में भी सुधार करता है.
N-Rich- मृदा में जैविक कार्बन का महत्व
इसके आगे मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी को दूर करने के लिए डॉ. अमित ने एन रिच के उपयोग पर जोर देते हुए कहा इसको बनाने में नीम के साथ ही तंबाकू के चूरे का भी इस्तेमाल किया गया है. और एन-रिच में 35 प्रतिशत ऑर्गेनिक कार्बन भी मिला हुआ है, ताकि ऐसे किसान जो गोबर खाद का उपयोग नहीं कर पाते हैं. अपनी फसलों में, वो इसका उपयोग कर मृदा की उर्वरा शक्ति में इजाफा कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि एन रिच का एक बैग 25 किलोग्राम का होता है. अगर किसान करीब चार बैगों का इस्तेमाल कर लेंगे, तो उनकी मृदा में रसायनिक उर्वरकों की मात्रा काफी हद तक कम हो जाएगी. वहीं, इसके उपयोग से मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता में इजाफा होता है. साथ ही फसल में कीट रोगों के लगने का खतरा भी कम होता है.
मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी से पड़ने वाले प्रभाव
इसके बाद डॉ. अमित ने मिट्टी में अगर पोषक तत्वों की कमी हो जाए तो फसलों पर किस तरह से इसका प्रभाव पड़ता है और इसके लक्षण किस प्रकार दिखाई देते हैं उसके बारे में बताते चित्रों के माध्यम से समझाया.
वहीं, डॉ. राजीव ने एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन में मृदा जांच के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सॉयल हेल्थ कार्ड की आवश्यकता और फायदों के बारे में जानकारी दी. साथ ही बताया कि किसान किस प्रकार संतुलित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करके ना केवल मृदा स्वास्थय में सुधार कर सकते हैं, बल्कि अपनी फसल की उपज भी बढ़ा सकते हैं. इसी के साथ कार्यक्रम के आखिर में डॉ. अमित मिश्रा ने बताया कि आज के समय में किसान काफी मात्रा में फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए डीएपी का अंधाधुंध इस्तेमाल करने लगे हैं, लेकिन किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा सेवन नुकसानदायक साबित हो सकता है.
कृषि के क्षेत्र में डीएपी का उपयोग इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. किसान जरूरत से ज्यादा मात्रा में फसलों में डीएपी दे रहे हैं, जिससे मृदा स्वास्थ्य खराब होता जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि किसान अब नैनो फर्टिलाइजर्स की ओर बढ़ें और मिट्टी की सेहत का भी ख्याल रखें. उन्होंने बताया कि ग्रो मोर नैनो डीएपी का इस्तेमाल करके किसान ना केवल मिट्टी की उर्वरा क्षमता में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं, बल्कि धीरे-धीरे उसकी सेहत में सुधार भी ला सकते हैं. साथ ही इसके उपयोग से किसानों की लागत में कमी भी आएगी.
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