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सौंफ की उन्नत खेती करने का तरीका और प्रमुख प्रजातियां

हमारे देश में सौंफ एक महत्वपूर्ण धान्य फसल है. देश में तकरीबन 1784.10 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पर धान्य वर्गीय मसाला फसलों की खेत्ती की जाती है. और उसमे से तकरीबन 1478.64 हजार मेट्रिक टन उत्पादन मिलता है, और उत्पादकता 5826 किलो / हेक्टेयर है. देश में सौंफ की फसल लगभग 76 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पर होती है, और उसमे से 129.35 हजार मेट्रिक टन उत्पादन दर्ज किया गया है, और ऊत्पदाकता 1702 किलो / हेक्टेयर दर्ज की गई है.

विवेक कुमार राय
Fennel farming
Fennel farming

हमारे देश में सौंफ एक महत्वपूर्ण धान्य फसल है. देश में तकरीबन 1784.10 हजार हेक्टेयर  क्षेत्र पर धान्य वर्गीय मसाला फसलों की खेत्ती की जाती है और उसमे से तकरीबन 1478.64 हजार मेट्रिक टन उत्पादन मिलता है, और उत्पादकता 5826 किलो / हेक्टेयर है. देश में सौंफ की फसल लगभग 76 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पर होती है, और उसमे से 129.35 हजार मेट्रिक टन उत्पादन दर्ज किया गया है, और ऊत्पदाकता 1702 किलो / हेक्टेयर दर्ज की गई है. पूरे  भारत में गुजरात राज्य का सौंफ उत्पादन में प्रथम स्थान है (45400 हेक्टेयर क्षेत्र एवं  96770 मेट्रिक टन उत्पादन के साथ). राजस्थान 27590 हेक्टेयर क्षेत्र एवं 30720 मेट्रिक टन उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर है. ( स्त्रोत - भारत मसाला फसल मंडल 2015-16) 

सौंफ की प्रमुख प्रजातियां

सरदार कृषि नगर दांतीवाडा कृषि विश्वविद्यालय के धान्य मसाला फसल संसोधन केंद्र से विकसित गुजरात सौंफ -11, गुजरात सौंफ -12 उन्नत प्रजातियां मानी जाती है.

बुवाई एवं फसल प्रबंधन

बुवाई समय 

गुजरात राज्य में सौंफ की खेती खरीफ एवं रबी दोनों ही मौसम में सफलता पूर्वक की जा सकती है. खरीफ में सौंफ की खेती में अत्यधिक वर्षा के कारण फसल के ख़राब होने का डर रहता है. जबकि रबी मौसम सौफ की खेती के लिए उत्तम माना जाता है. चूंकि इस मौसम में कीटो अथवा रोंगों का प्रकोप कम होता है एवं वर्षा के कारण फसल ख़राब होने का खतरा नहीं होता है एवं खरीफ की अपेक्षा उत्पादन में भी वृद्धि होती है.

री

जुलाई के प्रथम सप्ताह

रबी

अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक

बीज दर

4 से 5 किलो /हे. (मसाला फसल संसोधन केंद्र जगुदन)

बीज उपचार 

बीज बुवाई पहले फफूंद नाशक दवा (कार्बेन्डाजिम अथवा केप्टान से @ 2.5 से 3 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें (लगभग 8 घंटे). इसके अलावा सौंफ के बीज को ट्राईकोडरमा (जैविक फफूंद नाशक @ 8 से 10 ग्राम प्रति किलो बीज) से भी उपचारित किया जा सकता है.

बुवाई की विधि

गुजरात के किसान सौंफ की बुवाई समान्यतौर पर छिटक कर बोते है. परन्तु इस विधि से बुवाई करने पर किसान को सही उत्पादन नहीं मिल पाता. सरदार कृषि नगर दांतीवाडा कृषि  विश्वविद्यालय के धान्य मसाला फसल संसोधन केंद्र जगुदन, में हुए संसोधन के अनुसार यदि किसान सौंफ की बुवाई पंक्ति में करे तो उत्पादन में वृद्धि होती है. सौंफ की पंक्ति में बुवाई करने के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेमी एवं पौध से पौध की दूरी 60  सेमी उपयुक्त मानी गई है. राष्ट्रीय धान्य मसाला फसल संसोधन केंद्र अजमेर, राजस्थान द्वारा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50 से 60 सेमी एवं पौध से पौध की दूरी 25 से 30 सेमी भी अनुशंसित है.

खाद एवं सिंचाई

उत्तर गुजरात के लिए रबी सौंफ फसल हेतु कार्यक्षम खाद एवं जल नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है. अधिक उत्पादन एवं मुनाफा हेतु उत्तर गुजरात के रबी में सौंफ की खेती करने वाले किसानों को सलाह दी जाती है की सौंफ की फसल के लिए खाद प्रबंधन में 90 किलो ग्राम नत्रजन, 40 किलो ग्राम फास्फोरस और 30 किलो ग्राम पोटास प्रति हेक्टेयर देना चहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फोस्फोरस एवं पोटास की संपूर्ण मात्रा बुवाई के समय ही खेत में मिला देना चहियए. और शेष नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के बाद 30 एवं 60 दिनों बाद ट्रैपड्रेसिंग के रूप में सिंचाई के साथ देना चाहिए. मसाला संसोधन केंद्र जगुदन के अनुसार नाईट्रोजन 90 किलो, फास्फोरस 30 किलो प्रति हेक्टेयर दिया जाना चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस और पोटास की पूरी मात्रा बुवाई के समय एवं शेष नाइट्रोजन 30 एवं 60 दिवस के के अंतरालन्त्रल में देना चाहिए.

खरीफ समय में बुवाई के लिए मसाला फसल संसोधन केंद्र जगुदन के द्वारा विकशित गुजरात सौंफ -2 की खेती करने वाले गुजरात के किसानों को सलाह दी जाती है की कुल नाइट्रोजन की मात्रा (100 किलो) का 80 प्रतिशत भाग टपक पद्धति (फर्टीगेशन) के द्वारा अथवा 16 किलो नाइट्रोजन + 60 किलो फोस्फोरस बेसल डोस मे बुवाई के समय दी जानी चाहिए और नाइट्रोजन की शेष मात्रा (64 किलो) चार सामान हिस्सों मे 30 दिवस के अन्तराल में देना चाहिए. उत्तर गुजरात के सौंफ की रबी फसल लेने वाले किसानों को सलाह दी जाती है कि बुवाई समय,  बुआई के 8 दिन और 33 दिन में सिंचाई करना चाहिए शेष 7 सिंचाई 12  से 15  दिन के अंतराल में की जानी चाहिए.

कार्यक्षम सिंचाई हेतु टपक सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल करना जरूरी है. सौंफ की रबी की फसल में टपक पद्धति द्वारा सिंचाई करने के लिए 90 से.मी के अन्तराल में दो लेटरल और 60 से.मी अन्तराल के दो इमिटर, लगभग 1.2 kg / m2 के दबाव वाली एवं 4 लीटर प्रति घंटा पानी के डिस्चार्ज का इस्तेमाल किया जा सकता है. टपक पद्धति के द्वारा रबी सौंफ में सितंबर के महीने में 30 मिनट एवं  अक्टूबर- नवंबर के महीने में 75 मिनट और दिसंबर से जनवरी में 60 मिनट प्रति दिन के सिंचाई करनी चाहिए (धान्य मसाला फसल संसोधन केंद्र जगुदन, सरदार कृषि नगर दांतीवाडा कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात).

English Summary: How to cultivate fennel farming advanced methods Spice cultivation Published on: 25 June 2019, 02:36 PM IST

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