वर्तमान समय में बढ़ती आबादी के कारण बाजार में खाने-पीने की चीजों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है. ऐसे में फसलों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए किसान रासायनिक खादों का इस्तेमाल पुरजोर तरीके से कर रहे हैं. एक आंकड़े के अनुसार 2019-2020 में देश में 60,599 टन रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव किया गया. इनमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, हरियाणा व पंजाब राज्य शीर्ष स्थानों पर रहे. किसान ने बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए फसलों में जहर घोल दिया. कृषि विशेषज्ञ, पर्यावरणविद् और सरकारें भी इसको रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं.
खेतों पर दुष्प्रभाव
रासायनिक खाद के उपयोग से खेत की उत्पादन क्षमता अल्पकाल के लिए बढ़ती है. साथ ही रासायनिक खाद से मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरा शक्ति भी क्षीण हो जाती है. खेतों की मिट्टी में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए कीट पतंगों का होना बहुत ही आवश्यक होता है. रासायनिक खाद के उपयोग से फसलों के मित्र कीट पतंग भी नष्ट हो जाते हैं और यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले केचुओं को भी नुकसान पहुंचाता है. यह जमीन को लगातार बंजर और जहरीला भी बना रहा है.
मानव शरीर पर दुष्प्रभाव
रासायनिक खाद का प्रयोग मिट्टी में अम्ल की मात्रा बढ़ाता है. अम्लता बढ़ने से मिट्टी में जिंक और बोरान जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी कमी हो जाती है. इसका हमारे शरीर के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जिंक की लगातार कमी से बाल झड़ने की समस्या होने लगती है और इसके साथ-साथ हमारे शरीर का विकास भी थम जाता है, बच्चों में यह कुपोषण का कारण भी बन जाता है. देश में लगातार बढ़ते भूमि, जल और वायू प्रदूषण में इन रासायनों का बहुत बड़ा योगदान है.
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महामारी का कारण
रासायन युक्त सब्जियों और अनाज के सेवन से जहरीले रसायन हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं. इस कारण कैंसर के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, ब्लड कैंसर जैसे रोग के मरीजों की संख्या पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ रही है. बच्चों से लेकर बूढ़े तक कोई भी इन बीमारियों से अछूता नहीं है. पिछले कई सालों में हृदय रोग के आंकड़े भी बहुत ज्यादा बढ़े हैं. लिवर की बिमारियां, आंतों में सड़न, पाचन क्रिया में बाधा आना जैसी अनेक समस्याएं बढ़ रही हैं. इन सभी बढ़ती बीमारियों का कारण हानिकारक रसायन है.
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