शलजम (टरनिप) एक सफेद कंदमूल वाली सब्जी है, जो पोष्टिकता से भरपूर होने के कारण स्वास्थवर्धक होती है। इसमें कैलोरी बहुत कम होती है। इसलिए जो किसान स्वस्थ रहना चाहते है, उनके लिए बहुत ही फायदेमंद है। लेकिन आयुर्वेद में शलजम को खाने के अलावा औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
शलजम के फायदे
शलजम में पोषक तत्व कई तरह के स्वास्थ लाभ प्रदान करते है, जैसे-
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आतों की समस्याओं से राहत।
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रक्त चाप कम होना।
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कैसर के खतरे को कम करना।
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वजन घटाने और पाचन में सहायता करना।
शलजम में मौजूद पोषक तत्व
किसान भाईयों की जानकारी के लिए बता दें कि शलजम में 36.4 प्रतिशत कैलोरी, 1.17 ग्राम प्रोटीन, 0.13 ग्राम वसा, 8.36 ग्राम कार्बोहाइड्रेड जिसमें 4.66 ग्राम चीनी सम्मिलित होती है। 2.34 ग्राम फाइबर, 39 मिलिग्राम कैल्शियम, 0.39 मिलिग्राम आयरन, 14.3 मिलिग्राम फास्फोरस, 0.13 माइक्रोग्राम विटामिन के, 87.1 मिलिग्राम सोडियम, 0.351 मिलिग्राम जिंक, 27.3 मिलिग्राम विटामिल सी., 19.5 एमसीजी फोलेट यह तभी पोषक तत्व शलजम में पाए जाते हैं।
शलजम की खेती के लिए भूमि
शलजम की खेती करने के लिए बलुई-दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। लेकिन इसे मृत्तिका दोमट भूमि में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
भूमि की तैयारी
शलजम की फसल के लिए खेत को एक बार मिट्टी पलट हल से गहरा जोतकर और 3-4 जुताई देशी हल से की जानी चाहिए और प्रत्येक जुताई के उपरान्त खेत में पटेला घूमाकर भूमि को भुरभुरी एंव समतल बना लेना चाहिये।
बुवाई का समय
मैदानी क्षेत्रों में शलजम की बुवाई किस्म के अनुसार अगस्त से दिसम्बर तक की जाती है।
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एशियाई या देशी किस्मेंः- अगस्त से सितम्बर में बुवाई करते हैं।
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यूरोपियन या विलाइती किस्मेंः- अक्टूबर सें दिसम्बर में बुवाई की जाती है।
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किसान भाईयों को शलजम लगातार प्राप्त करने के लिए 15-15 दिन के अन्तराल में शलजम की बुआई करना चाहिये।
बीज की मात्रा
शलजम का 3-4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर प्रर्याप्त होता है।
बीज बोने की विधि
शलजम का बीज उथले हल की सहायता से 20-25 सेमी. की दूरी पर बने कूडों में बोया जाता है, पौध से पौध की दूरी 8-10 सेमी. रखनी चाहिए.
शलजम की उन्नत प्रजातियां
शलजम की खेती के लिए उन्नत किस्मों का ही चयन करें जो निम्न प्रकार है-
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यूरोपियन किस्में-पूसा स्वर्णिमा, पूसा चन्द्रिमा, गोल्डन बाल, स्नोवाल, पार्पिल टाप व्हाइट ग्लोब।
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एशियाई किस्में-पूसा कंचन, पूसा श्वेती, पंजाब सफेद।
खाद एंव उर्वरक
किसान भाईयों को शलजम के खेत की तैयारी के समय 200 कुन्टल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डालना चाहिए तथा नाईट्रोजन 60 किलोग्राम, फास्फोरस 50 किलोग्राम और पोटाश 50 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से डालना चाहिए।
सिंचाई
शलजम की खेती में सिंचाई 15-20 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए। इस बात का किसान भाई का ध्यान रखें की शलजम में सिंचाई हल्की जाए। कहीं-कहीं पर शलजम को मेंडो पर भी बोया जाता है। मेंडो की ऊॅचाई 15 सेमी. और दूरी 30 सेमी. रखी जाती है। मेड के ऊपर एक 4 सेमी. गहरी कून्ड लकडी से बनाया जाती है। इस कून्ड में बीज डालकर इसे मिट्टी से ढक लिया जाता है। सिंचाई दो मेंडो के बीज में की जाती है और इस बात का ध्यान रखा जाता है, कि मेंडों को पानी में न डूबने पाएं।
निराई व गुडाई
शलजम के खेत को खरपतवार से साफ रखने के लिए खेत में 2-3 बार निराई-गुडाई की जानी चाहिए. यदि पंक्तियों में पौध घने हो जाए तो फालतू पौधों को उखाडकर उनकी आपस की दूरी 8 सेमी. कर देनी चाहिए।
रोग नियंत्रण
शलजम की फसल में निम्नलिखित रोग लगते हैं-
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आर्द्र विगलनः- इस रोग का मुख्य लक्षण बीज का अंकुरण न होने, बीजाकुंर के भूमि से बाहर निकलने पर पौध गलन होने के रूप में दिखाई पड़ते हैं। इस रोग के रोकथाम के लिए किसान भाईयों को बीज को बोने से पहले थायराम से 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
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सफेद रतुआः- इस रोग में पत्तियों पर सफेद फफोले दार धब्बे बन जाते हैं। इस रोग के रोकथाम के लिए किसान भाईयों को इण्डोफिल एम-45 का 0.25 प्रतिशत का एक-दो बार छिडकाव आवश्यक करना चाहिए।
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आल्टरनेरिया पर्णचित्तीः- इस रोग में पत्तियों पर भूरे रंग के गोल धब्बे बनते हैं, जिनके चारों ओर पीला पन दिखाई देता है और इन धब्बों पर चमकदार रेखाएं बनी होती हैं। कभी-कभी धब्बे आपस में मिलकर पूर्ण पत्तियों पर चित्तिया बनाते हैं। इस रोग के रोकथाम के लिए इण्डोफिल एम-45 का 0.25 प्रतिशत घोल बनाकर छिडकना चाहिए।
कीट नियंत्रण
शलजम में निम्नलिखित कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं।
माहुः- यह पीले हरे रंग के छोटे-छोटे कीट होते हैं, जो पत्तियों एंव तनों का रस चूसकर फसल को कमजोर बना देते हैं। जब आकाश में बादल छाए होते है एंव मौसम नम होता है तब इस कीट का प्रकोप बढ जाता है। इस कीट के रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 इ.सी. को 650 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिडकाव करना चाहिए।
आरा मक्खीः- इस कीट की सुंडी पत्तों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाती है। यह गहरे हरे व काले रंग की सुंडी होती है। इस कीट के रोकथाम के लिए किसान भाईयों को फसल पर 0.15 साइपरमेथ्रिन का छिडकाव करना चाहिए।
बंद गोभी का सूंडीः- इनके बच्चे पत्तियों से भोजन प्राप्त करते हैं। जब बड़े हो जाते हैं, तो यह सूंडियों के रूप में फैलकर पत्तियों को खा जाती हैं। इस कीट के रोकथाम के लिए किसान भाईयों को मैलाथियान 50 इ.सी. को 650 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से खेत में छिडकाव करना चाहिए।
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शलजम की खुदाई
किसान भाईयों को शलजम को उस समय से उखाडना शुरू किया जाना चाहिए, जब शलजम की मोटाई 8 से.मी. हो जाएं। खुदाई में देर होने पर खासतौर से यूरोपियन किस्मों में जडें रेसे दार हो जाती है और फटने लगती हैं तथा पीली पडनें लगती हैं।
बीज तैयार करना
शलजम का बीज तैयार करने के लिए नवंबर में अच्छे पौधों को छाटकर जड़ का निचला आधा भाग काटकर अलग कर दिया जाता है, और ऊपर का आधा भाग तैयार खेत से 60-60 सेमी. की दूरी पर रोप दिया जाता है। पत्तियों का आधा भाग भी काटकर अलग कर लिया जाता है। शलजम की रोपी गई गांठ में से जड़ और शाखाएं निकलती हैं, जिनमें फूल फल एंव बीज लगते हैं। बीजों के पक जाने पर बीज को निकालकर सूखा लिया जाता है और सावधानी से बोतल में रख देते हैं। शलजम का बीज उत्पादन करते समय दो किस्मों के बीज की दूरी 1000 मीटर होनी चाहिए ताकि शुद्ध बीज प्राप्त किया जा सके।
शलजम की उपज क्षमता
शलजम की औसतन उपज 200-250 कुन्टल प्रति हैक्टर होती है।
लेखक
मो0 मुईद, पी.एच.डी. कृषि सस्य विज्ञान, इंटीग्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साईंस एण्ड टेक्नोलॅाजी (आई.आई.ए.एस.टी.), इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ (उ.प्र.) 226026
मो0 फैज, रामाकान्त तिवारी, एम.एस.सी. कृषि सस्य विज्ञान, इंटीग्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साईंस एण्ड टेक्नोलॅाजी (आई.आई.ए.एस.टी.), इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ (उ.प्र.) 226026
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