हाल ही में, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों के व्यावसायिक रिलीज से पहले बीज उत्पादन को मंजूरी दे दी है. जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अनुसंधान और औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों और पुनःसंयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से संबंधित गतिविधियों के मूल्यांकन के लिए जिम्मेदार है. GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC के विशेष सचिव/अतिरिक्त सचिव तथा सह-अध्यक्षता जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा की जाती है.
जीएम सरसों क्या है?
धरा सरसों हाइब्रिड (डीएमएच-11) एक स्वदेशी रूप से विकसित ट्रांसजेनिक सरसों है. यह हर्बिसाइड टॉलरेंट (एचटी) सरसों का आनुवंशिक रूप से संशोधित रूप है. इसमें दो बाहरी या अलग प्रकृति के जीन ('बार्नसे' और 'बारस्टार') होते हैं, जिन्हें बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स नामक मिट्टी के जीवाणु से अलग किया जाता है, जो उच्च उपज देने वाले वाणिज्यिक सरसों के हाइब्रिड संस्करणों के प्रजनन को सक्षम बनाता है.
इसे दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (CGMCP) द्वारा विकसित किया गया है. 2017 में, GEAC ने HT सरसों की फसल के वाणिज्यिक अनुमोदन की सिफारिश की थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसकी रिलीज पर रोक लगा दी थी और केंद्र सरकार से जनता की राय लेने को कहा. इससे पहले, भारत ने केवल एक GM फसल, BT कपास की व्यावसायिक खेती को मंज़ूरी दी थी, लेकिन GEAC ने व्यावसायिक उपयोग के लिये GM सरसों की सिफारिश की है.
आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें और विवाद :
GM फसलों के जीन कृत्रिम रूप से संशोधित किये जाते हैं, आमतौर इसमें किसी अन्य फसल से आनुवंशिक गुणों जैसे- उपज में वृद्धि, खरपतवार के प्रति सहिष्णुता, रोग या सूखे से प्रतिरोध, या बेहतर पोषण मूल्यों का सम्मिश्रण किया जा सके.
देश में व्यावसायिक खेती के लिए पूर्व में कभी भी किसी जीएम खाद्य फसल को मंजूरी नहीं दी गई है. हालांकि, कम से कम 20 जीएम फसलों के लिए सीमित परिक्षण की अनुमति दी गई है. इसमें जीएम चावल की किस्में शामिल हैं जिनके कीड़ों और बीमारियों के प्रति बेहतर प्रतिरोधक क्षमता होने की अपेक्षा है.
अतीत में कपास की फसलों को तबाह करने वाले बॉलवॉर्म के हमले से निपटने के लिए, बीटी कपास की शुरुआत की गई थी जिसे महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी (महिको) और अमेरिकी बीज कंपनी मोनसेंटो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया था.
2002 में, जीईएसी ने आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे 6 राज्यों में व्यावसायिक खेती के लिए बीटी कपास को मंजूरी दी. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि, बीटी कपास जीईएसी द्वारा अनुमोदित पहली और एकमात्र ट्रांसजेनिक फसल है.
बीटी बैंगन: महिको ने धारवाड़ कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के साथ संयुक्त रूप से बीटी बैंगन का विकास किया. भले ही जीईएसी 2007 ने बीटी बैंगन के व्यावसायिक रिलीज की सिफारिश की थी, लेकिन 2010 में इस पहल को रोक दिया गया था. भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टीईसी) द्वारा जीएम फसलों पर लगाए गए 10 वर्षों के स्थगन के कारण व्यावसायीकरण पर आगे कोई कार्रवाई नहीं की गई .
यदि हम बी टी ब्रिंजल और ऐसी ही अन्य अनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों के परीक्षणों तथा व्यावसायिक उत्पादन क अधर मं लटक होने के कारणों की पड़ताल करें तो स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चिंताएँ प्रमुख रूप से दिखलाई पड़ती हैं. बीज उपलब्धता में जटिलता भी कुछ कृषि विचारकों व विज्ञानियों द्वारा कारण के रूप में गिनाया गया है. उनका कहना है कि संशोधित बीज बनाने और बेचने के लिये केवल कुछ कंपनियां ही प्रभारी हैं. एकाधिकार की स्थिति में बीज खरीदने वालों के पास केवल कुछ ही विकल्प उपलब्ध हैं. बीजों का प्रयोग दोबारा नहीं किया जा सकता, जो एक चुनौती है इसका मतलब यह है कि हर बार जब आप एक नई फसल बोना चाहते हैं, तो आपको नए बीजों का प्रयोग करना होगा.
ऐसा कहा गया कि इन फसलों का उत्पादन प्रजातियों की विविधता को कम कर सकता है. उदाहरण के लिये, यह कीट-प्रतिरोधी पौधे उन कीड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं जो उनका इच्छित लक्ष्य नहीं हैं और उस विशेष कीट प्रजाति को नष्ट कर सकते हैं.
हाल ही में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC), MoEF&CC, भारत सरकार ने 2020-23 के दौरान आठ राज्यों में स्वदेशी रूप से विकसित बीटी बैंगन की दो नई ट्रांसजेनिक किस्मों के जैव सुरक्षा अनुसंधान क्षेत्र परीक्षण की अनुमति संबंधित राज्यों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेने और इसके लिए अलग-अलग भूमि की उपलब्धता की पुष्टि के बाद दी है
हाइब्रिड बैंगन की इन स्वदेशी ट्रांसजेनिक किस्मों - अर्थात् जनक और बीएसएस-793, जिसमें बीटी क्राय1एफए1 जीन (इवेंट 142) शामिल हैं - को नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्लांट बायोटेक्नोलॉजी, (एनआईपीबी, तत्कालीन नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन प्लांट बायोटेक्नोलॉजी, नई दिल्ली) तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर). द्वारा विकसित किया गया है.
बदलता परिदृश्य और भारत में GM फसलों का भविष्य
GM फसलों विशेषकर GM सरसों के पक्ष में अपने विचार रखते हुए श्री ए. नारायणमूर्ति (वरिष्ठ प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र और ग्रामीण विकास विभाग, अलगप्पा विश्वविद्यालय) लिखते हैं कि खाद्य तेल के आयात का मूल्य 2010-11 में ₹29,900 करोड़ से बढ़कर 2020-21 में ₹68,200 करोड़ हो गया है. सरसों भारत में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसलों में से एक है. इसका क्षेत्रफल 1960-61 में 2.88 मिलियन हेक्टेयर (mha) से बढ़कर 2020-21 में 6.69 mha हो गया है लेकिन सीएसीपी द्वारा प्रकाशित मूल्य नीति रिपोर्ट से उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि 2010-11 और 2019-20 के बीच फसल की उत्पादकता और लाभप्रदता में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है.
भारत सालाना केवल 8.5-9 मिलियन टन (एमटी) खाद्य तेल का उत्पादन करता है, जबकि यह 14-14.5 मिलियन टन का आयात करता है, जिसके लिए हमने 31 मार्च, 2022 को समाप्त वित्तीय वर्ष में 18.99 बिलियन अमरीकी डालर का रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा खर्च किया.
हाल के वर्षों में किसानों के सामने बढ़ती श्रम लागत, खेती की बढ़ी हुई लागत और फसलों की ठहरी हुई उत्पादकता दर जैसी कुछ गंभीर समस्याएं हैं और कई कृषि विज्ञानियों का यह मानना है कि जीएम तकनीक कथित तौर पर किसानों को इन समस्याओं का समाधान प्रदान कर सकती है .
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वर्ष 2020 में संसद में सरकार का पक्ष रखे हुए कृषि मंत्री श्री नरेंद्र तोमर द्वारा कहा गया था कि आईसीएआर हमेशा जीएम फसलों पर अनुसंधान सहित विज्ञान आधारित नवीन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देता है. अरहर, चना, ज्वार, आलू, बैंगन, टमाटर और केले के मामले में भिन्न भिन्न लक्षणों और गुणवत्ता आधारित जीएम फसलों के विकास के लिए 2005 में आईसीएआर द्वारा 'फसलों में ट्रांसजेनिक हेतु नेटवर्क परियोजना' (वर्तमान में कार्यात्मक जीनोमिक्स और फसलों में आनुवंशिक संशोधन हेतु नेटवर्क परियोजना) शुरू की गई थी जो कि प्रगति के विभिन्न चरणों में है.
भारत सरकार के पास जीएम फसलों के कृषि मूल्य का परीक्षण और मूल्यांकन करने के लिए बहुत सख्त दिशानिर्देश और नियमावलियां हैं ताकि किसानों के हितों की रक्षा की जा सके. ये दिशानिर्देश जीएम बीजों की सुरक्षा के संबंध में सभी चिंताओं को दूर करते हैं. जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (आनुवंशिक हेरफेर पर समीक्षा समिति; आरसीजीएम) और पर्यावरण और वन मंत्रालय (जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति; जीईएसी) के पास जीएम फसलों के लिए क्रियान्वित नियामक प्रणाली में जीएम फसलों पर परीक्षण हेतु मामला-दर-मामला विचार करने के लिए दिशानिर्देश हैं .
यदि हम भारत की खाद्य ज़रूरतों, बढ़ती आयात कीमतों तथा किसानों की आय बढ़ाने के लक्ष्य को दखें तो ऐसा स्पष्ट हो जाता है कि GM फसलें काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं. उदाहरण के तौर पर जीएम सरसों भारत को तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही विदेशी मुद्रा बचाने में मदद करेगी .
परन्तु इस तरह की नई प्रगति के परिप्रेक्ष्य में , घरेलू और निर्यात उपभोक्ताओं के लिए नियामक व्यवस्था को मजबूत और पारदर्शी करने की जरूरत है जिससे आम जनता का विश्वास प्राप्त हो सकी. यह अत्यंत आवश्यक है कि प्रौद्योगिकी अनुमोदन को सुव्यवस्थित किए जाने के साथ ही विज्ञान आधारित निर्णयों को लागू किया जाना चाहिए. इसके अलावा पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन स्वतंत्र पर्यावरणविदों द्वारा किया जाना चाहिये, क्योंकि किसान पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य पर GM फसलों के दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन नहीं कर सकते हैं.
जय जवान, जय किसान में नए जुड़े 'जय विज्ञान' के नारे को संजीदा तौर पर जीना हमारी आवश्यकता है.
यह लेख शशांक शेखर सिंह, निदेशक अध्ययन फाउंडेशन फॉर पॉलिसी एंड रिसर्च द्वारा साझा किया गया है.
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